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Assembly Election- भाजपा के लिए ‘ओबीसी राजनीति’ की प्रयोगशाला बन सकता है यह राज्य

Assembly Election/नई दिल्ली/ ओबीसी जनगणना और आरक्षण के विरोधी दलों की चुनावी रणनीति की काट के लिए भाजपा दक्षिण भारत के राज्य तेलंगाना को अपनी चुनावी रणनीति की प्रयोगशाला बनाने जा रही है। तेलंगाना में अगर भाजपा की ओबीसी रणनीति कामयाब हो जाती है तो आने वाले दिनों में भाजपा इसका प्रयोग सीधे-सीधे देश के अन्य चुनावी राज्यों में कर सकती है।

दरअसल, तेलंगाना की कुल आबादी में ओबीसी समुदाय का हिस्सा 51 प्रतिशत के लगभग है। भाजपा राज्य में ओबीसी के साथ-साथ दलितों को भी साधने की कोशिश कर रही है, जिसकी आबादी राज्य में 17 प्रतिशत के लगभग है। ओबीसी और दलित समुदाय मिलकर राज्य की कुल आबादी का 68 प्रतिशत हिस्सा हो जाता है। 

सबसे पहले बात, भाजपा की ओबीसी रणनीति की करते हैं। विपक्ष के जातीय जनगणना की हवा निकालने के लिए देशभर में ओबीसी सर्वे करवाने की योजना बना रही भाजपा तेलंगाना की 51 प्रतिशत ओबीसी आबादी का समर्थन हासिल करने के लिए जहां एक तरफ ओबीसी समुदाय के लिए घोषणाओं की झड़ी लगा रही है, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस खासतौर से राहुल गांधी और के चंद्रशेखर राव की पार्टी बीआरएस को ओबीसी विरोधी पार्टी साबित करने की कोशिश कर रही है।Assembly Election

 तेलंगाना में अपने आपको ओबीसी राजनीति का चैंपियन साबित करने में जुटी भाजपा ने राज्य में सरकार बनने पर ओबीसी समुदाय का ही मुख्यमंत्री बनाने का बड़ा दांव खेल दिया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 27 अक्टूबर को ही तेलंगाना के सूर्यापेट में जनसभा को संबोधित करते हुए राज्य के वोटरों से यह वादा कर दिया कि अगर राज्य में भाजपा की सरकार बनती है तो ओबीसी नेता को ही राज्य का मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। 

वहीं दूसरी तरफ भाजपा कांग्रेस खासकर राहुल गांधी को ओबीसी विरोधी साबित करने की कोशिश में भी जुटी हुई है। भाजपा यह आरोप लगा रही है कि ‘जितनी आबादी उतना हक’ का राग अलापने वाले राहुल गांधी की कांग्रेस ने तेलंगाना के लिए जारी किए गए अपने उम्मीदवारों की तीन सूचियों में घोषित 114 उम्मीदवारों में से पिछड़ी जाति के उम्मीदवारों को सिर्फ 23 सीटों पर ही टिकट दिया है। Assembly Election

भाजपा ने यह भी आरोप लगाया है कि तेलंगाना की आबादी में 51 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाली पिछड़ी जाति को सिर्फ 20 प्रतिशत सीटों पर ही भागीदारी का मौका देकर कांग्रेस ने उनके साथ विश्वासघात किया है।

 दरअसल, कर्नाटक विधान सभा चुनाव में हारने के बाद भाजपा अपने ‘मिशन साउथ’ को धार देने के लिए तेलंगाना में हर कीमत पर चुनाव जीतना चाहती है और यही वजह है कि अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव लाते हुए भाजपा ने सीधे-सीधे खुलकर जाति आधार पर वोटरों को लुभाना शुरू कर दिया है। 

भाजपा आलाकमान का यह मानना है कि तेलंगाना की जीत पार्टी के मिशन साउथ को बल दे सकती है और इसका फायदा भाजपा को केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य में भी मिल सकता है। Assembly Election

पार्टी का यह भी मानना है कि अगर राज्य में भाजपा कांग्रेस से भी आगे निकलने में कामयाब हो जाती है तो इससे न केवल तेलंगाना में कांग्रेस के अस्तित्व पर सवालिया निशान लग जाएगा बल्कि इसके साथ ही राहुल गांधी के ओबीसी राग का असर भी कम हो जाएगा और इसका फायदा भाजपा को 2024 के लोक सभा चुनाव में देशभर में हो सकता है। 

भाजपा राज्य में ओबीसी और दलित वोट बैंक में सेंध लगाकर अपने लिए राज्य में सॉलिड जनाधार का बेस तैयार करना चाहती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार, 11 नवंबर को मडिगा रिजर्वेशन पोराटा समिति द्वारा सिकंदराबाद में आयोजित एक रैली को संबोधित करते हुए राज्य के दलित समुदाय में 60 प्रतिशत के लगभग भागीदारी वाले मडिगाओं को लुभाने की पुरजोर कोशिश की। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मडिगाओं को सशक्त बनाने और अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण पर विचार करने के लिए एक समिति के गठन की घोषणा कर दी जिसकी मांग यह समुदाय पिछले तीन दशकों से कर रहा है। समिति के संस्थापक मंदा कृष्णा मडिगा का मोदी के मंच पर रोते हुए और प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उन्हें सांत्वना देने का वीडियो भी शनिवार को नजर आया।

 दरअसल,जब पीएम मोदी ने कहा कि वे समिति का और उनके उद्देश्यों का समर्थन करते हैं तो मंदा कृष्णा मडिगा भावुक होकर मंच पर ही रोने लगे। प्रधानमंत्री का यह वादा तेलंगाना की चुनावी रणनीति के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि मडिगा जाति का प्रभाव तेलंगाना विधान सभा की दो दर्जन के लगभग सीटों पर बताया जाता है। 

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