CG NEWS:बिलासपुर। गुरू घासीदास विश्वविद्यालय (केन्द्रीय विश्वविद्यालय) के कुलपति एवं कार्यशाला के संयोजक प्रोफेसर आलोक कुमार चक्रवाल ने दिल्ली में विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों में दीक्षांत समारोहों में भारतीय परंपराओं का पालन करने हेतु विषय पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला के उद्घाटन अवसर पर कहा कि भारतीयता को संपूर्ण स्वरूप में अंगीकार करना होगा।अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद, नई दिल्ली, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली एवं भारतीय विश्वविद्यालय संघ नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यशाला को संबोधित करते हुए कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार चक्रवाल ने कहा कि शिक्षा व्यक्ति को मुक्ति प्रदान करती है ऐसे में हमें विद्यार्थियों को भारत की वैभवशाली एवं गौरवशाली ज्ञान परंपरा से अवगत कराना होगा। इस कार्यशाला के माध्यम से दीक्षांत समारोह में वेशभूषा में संपूर्ण रूप से भारतीयता को लाने का प्रयास होना चाहिए। दीक्षांत समारोह किसी भी विद्यार्थी के जीवन का अहम पल है ऐसे में यह हमारा दायित्व है कि इसे यादगार बनाया जाये।
डॉ. अतुल कोठारी, राष्ट्रीय सचिव, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास नई दिल्ली ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में कहा गया है कि नीति का मुख्य उद्देश्य ऐसे नागरिकों के निर्माण पर बल देती है जो विचार, बौद्धिकता और कार्यव्यवहार से भारतीय हों। दीक्षांत शब्द की व्याख्या आवश्यक है क्योंकि शब्दों के अर्थ, अर्थों के भाव और भाव से जीवन को स्वरूप मिलता है।इस कार्यशाला में विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों के नीति निर्धारक उपस्थित हैं ऐसे में दीक्षांत एवं उसकी प्रक्रियाओं से संबंधित विभिन्न विषयों पर सृजनात्मक विचार किया जा सकता है। कार्यशाला के अंतिम भाग में ऐसी पुस्तिका का निर्माण किया जा सकता है जो सभी संस्थानों को आदर्श प्रारूप उपलब्ध कराये।
प्रो. टी.जी. सीताराम, अध्यक्ष, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद नई दिल्ली ने कहा कि एकता और विशिष्टता के लिए दीक्षांत समारोह में भारतीयता की आवश्यकता है। भगवान राम का जीवन भारतीय परंपरता को प्रतिस्थापित करता है। हमें दीक्षांत में छात्र-छात्राओं की संख्या को दृष्टिगत रखते हुए व्यवस्थाओं पर भी ध्यान देना होगा। हमें दीक्षांत समारोह में भारतीयता के साथ शिक्षण की प्रक्रिया में भी भारतीय परंपराओँ को जोड़ना चाहिए।
प्रो. पंकज मित्तल, महासचिव, भारतीय विश्वविद्यालय संघ ने शिक्षा में भारतीय गुणों के समावेश पर बल दिया। उन्होंने कहा कि दीक्षांत समारोह ही नहीं बल्कि आम जीवन में भी भारतीयता को समाहित करने की आवश्यकता है। कॉफी टेबिल बुक बनाई जा सकती है जिससे लोगों को विभिन्न विश्वविद्यालयों में आयोजित होने वाले दीक्षांत समारोह में धारित की जाने वाली वेशभूषा की जानकारी उपलब्ध हो सके।
डॉ. अभय जेरे, उपाध्यक्ष, एआईसीटीई, नई दिल्ली ने कहा कि दीक्षांत समारोह प्रोटोकॉल से परे होने चाहिए और उन्हें परंपराओं से जोड़ा जाना चाहिए ।ताकि छात्रों में भारत के सभ्यतागत मूल्यों के अनुरूप सांस्कृतिक लोकाचार और श्रेष्ठ व्यवहारों का संचार हो सके। भारतीयता विश्वविद्यालय के शैक्षणिक जीवन के हर क्षेत्र में लागू किया जाना चाहिए। दीक्षांत समारोहों की योजना इस तरह से बनाई जानी चाहिए कि इसे छात्रों और पूर्व छात्रों को उनके संबंधित विश्वविद्यालयों से जोड़ने में सहायक हो।
विभिन्न तकनीकी सत्रों में 14 उच्च शिक्षा संस्थानों के कुलपति एवं निदेशकों द्वारा प्रस्तुतियां दी गई जिनमें साउथ एशियन यूनिवर्सिंटी नईदिल्ली, एस व्यासा बैंगलुरू, देव संस्कृति विश्वविद्यलाय हरिव्दार, पतंजलि विश्वविद्यालय हरिद्वार, अमृता विश्व विद्यापीठ्म अमृतपुरी केरल, गुजरात तकनीकी विश्वविद्यालय अहमदाबाद, वनस्थली विश्वविद्यालय राजस्थान, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन, महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोद्य विश्वविद्यालय सतना, डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर, वीर नर्मदा सुथ गुजरात विश्वविद्यालय सूरत गुजरात एवं त्रिपुरा विश्वविद्यालय शामिल हैं।
इससे पूर्व मंचस्थ अतिथियों द्वारा सरस्वती वंदना के साथ द्वीप प्रज्जवलित किया गया। अंग वस्त्र के साथ अतिथियों का स्वागत किया गया। इस कार्यशाला में विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति, विभिन्न तकनीकी संस्थानों के निदेशक, बड़ी संख्या में शिक्षाविदों के साथ शिक्षक व विद्यार्थी उपस्थित रहे ।