CG NEWS: “बिलासपुर में हमारे घर पर चार लोग काम करते हैं…. जो ड्राइवर और दूसरा काम करते हैं…..। सभी किसी न किसी गांव के रहने वाले हैं….। सभी ने मतदान के एक दिन पहले छुट्टी ली और वोट डालने के लिए गांव गए । इसके लिए ट्रेन – बस में आने जाने का खर्चा भी किया…। वोट डालने जरूर गए। लेकिन हमारे ही शहर के लोग पता नहीं क्यों यह बात नहीं समझ पाते कि वोट डालना क्यों जरूरी है…? हैरत की बात है कि शहर के लोगों में मतदान के लिए गांव जैसा उत्साह नजर नहीं आता…। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या लोकतंत्र के प्रति गांव के लोगों की जागरूकता अधिक है और क्या शहरी लोगों के मुकाबले गांव के लोग दिल से चुनाव को लोकतंत्र के महापर्व के रूप में मनाते हैं…..।” बिलासपुर शहर के एक प्रतिष्ठित उद्योगपति ने जब यह बात कही तो लगा कि वास्तविक में लोकतंत्र के प्रति शहर के लोगों में कितनी जागरूकता है। जब मतदान का प्रतिशत सामने आया तो यह जाहिर भी हो गया की मतदान के मामले में गांव के लोग शहर वालों से कितना आगे हैं।
पिछले कुछ चुनाव से यह बात लगातार गौर की जा रही है कि मतदान के लिए लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। इसके लिए चुनाव आयोग के निर्देश पर प्रशासन की ओर से अभियान भी चलाया जाता है। इस बार के लोकसभा चुनाव में भी यह अभियान चलाया गया। मीडिया में बाकायदा रिपोर्ट आई है कि वोट प्रतिशत बढ़ाने के लिए कब-कब , क्या-क्या आयोजन हुए। लेकिन जब वोट का प्रतिशत सामने आया तो लोगों को निराशा हुई। शुरुआती दौर में जो आंकड़े सामने आए हैं, उनके मुताबिक सरगुजा जैसे आदिवासी बहुल इलाके में पूरे लोकसभा क्षेत्र में करीब 80 फ़ीसदी लोगों ने वोट डाले। इस इलाके में लुंड्रा विधानसभा क्षेत्र में 84 फ़ीसदी तक मतदान हुआ है। इसी तरह अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत धर्मजयगढ़ विधानसभा क्षेत्र में भी 84 फ़ीसदी मतदाताओं ने वोट डाले। बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र में 64 फ़ीसदी का आंकड़ा सामने आया है। जो पूरे छत्तीसगढ़ के लोकसभा क्षेत्र में सबसे कम है।
गौर करने वाली बात यह है कि ज्यादातर शहरी क्षेत्र में कम मतदान की खबर आ रही है। बिलासपुर विधानसभा क्षेत्र में यह आंकड़ा मुश्किल से 60 फ़ीसदी तक नहीं पहुंच सका है। छत्तीसगढ़ रायपुर लोकसभा क्षेत्र अंतर्गत रायपुर शहर पश्चिम और रायपुर शहर उत्तर विधानसभा क्षेत्र में भी 56 से 57 फ़ीसदी मतदान की खबर है। मरवाही और पाली तानाखार जैसे आदिवासी बहुल इलाके में जहां करीब 78 से 79 फ़ीसदी लोग वोट डालने पहुंच रहे हैं। वहां यदि बिलासपुर रायपुर जैसे शहरों में मतदान अगर कम हो रहा है तो कई सवाल अपनी जगह बना लेते हैं। यदि छत्तीसगढ़ के सभी इलाकों में मतदान का प्रतिशत देखें तो बस्तर के बीजापुर और कोटा में कम प्रतिशत का मतलब समझा जा सकता है। ये दुर्गम इलाके हैं।लेकिन शहरी इलाके में रहने वाले लोगों का रुख क्या कहता है। शहरी इलाके में लोग जागरूक माने जाते हैं। लेकिन गांव – देहात के लोग जागरुक होने का परिचय भी देते हैं। वैसे भी पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के बाद गांव – देहात के लोग हर पंचायत चुनाव में पंच, सरपंच, जनपद सदस्य और जिला पंचायत सदस्य के चार वोट एक ही समय में डालते रहे हैं। जब भी चुनाव को लोकतंत्र का महापर्व कहा जाता है, गांव के लोग उसमें अधिक उत्साह से हिस्सा लेते हुए नजर आते हैं। और वाकई चुनाव को त्यौहार की तरह मानते हैं। यह इस बात से पता चलता है कि गांव के लोग उसी उत्साह के साथ वोट डालने भी आते हैं। जानकार इसके पीछे एक वजह यह भी मानते हैं कि गांव के लोगों को सरकार से अधिक उम्मीदें भी रहती हैं और योजनाओं के साथ उनका सीधा जुड़ाव भी होता है। यहां तक कि शहरों में आकर काम करने वाले गांव के लोग भी छुट्टी लेकर वोट डालने के लिए गांव जाते हैं। इसमें उन्हें अपनी जेब से खर्च भी करना पड़ता है। लेकिन उनके चेहरे पर देखा जा सकता है कि 5 साल में एक बार आने वाले त्योहार में सक्रिय हिस्सेदारी निभाकर गांव के लोगों लोग कितने खुश होते हैं। दूसरी तरफ शहर में बहस और दावे तो खूब होते हैं। यहां अधिक वोटिंग के लिए अभियान भी चलाए जाते हैं। लेकिन उनका वैसा असर नहीं होता, जैसी उम्मीद की जाती है । इस बारे में जानकार यह भी कहते हैं कि तरह-तरह की तरकीबेम आजमाई जा रही है । लेकिन यदि यह इसका भी बहुत अधिक असर नजर नहीं आ रहा है तो क्या सिर्फ चुनाव के समय ही नहीं, बल्कि पूरे समय ऐसे अभियान चलाए जाने की जरूरत है। जिससे लोगों को को सही मायने में जागरूक किया जा सके।