“””हमसे भी मिलती है किसी जहां को रोशनी हम भी चिराग हैं
किसी के आस्था के”” सुबह की धूप घास पर पड़े ओस की बूदें किसी फुटबॉल किसी टेनिस बॉल पर मैदान में खेलने का अधिकार हमें भी है हमारे होंटो पर मुस्कान का अधिकार हमें भी है किसी खिलौने से खेलने का और उसके टूट जाने पर रोने का अधिकार हमें भी है—– । बाल श्रम उन्मूलन क्या सिर्फ कानून से संभव है??
ILO अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने 12 जून को बाल श्रमिक निषेध दिवस मनाने का संकल्प लिया । आज पूरी दुनिया में 10 में से एक बच्चा बाल श्रमिक है । एक अनुमान के मुताबिक दुनिया के एक तिहाई बाल श्रमिक भारत में कार्यरत हैं ।””चलो अपने प्रतिबद्धताओं पर काम करें बाल श्रम खत्म करें”” । जर्मन के प्रसिद्ध— विद्वान मैक्स मूलर ने बहुत पहले कहा था पूर्व में बच्चे संपत्ति समझ जाते हैं –जबकि पश्चिम में दायित्व -यह बात भारत के संदर्भ मे 100% सही कहा था। कितनी बड़ी विडंबना है ,जब भी किसी गरीब मजदूर के यहां या गरीब के यहां कोई भी पैदा होता हो चाहे लड़का हो या लड़की उसे लगता है एक कमाने वाला और आ गया। हम देखते हैं ईटा बनाने वाले पथेरे के बच्चे पथेरे ही बनते हैं । घरों में काम करने वाली किसी बाई की बच्ची का भविष्य आसपास के घर में काम करने वाला ही रहता है। होटल में काम करने वाले पिता के बच्चे किसी होटल में काम करते हैं ।यह सही है कि पूर्व में बच्चे संपत्ति ही समझ जाते हैं।
बाल श्रम उन्मूलन में सिर्फ कानून का ही सहारा नहीं लिया जा सकता ।वह समाज के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि बाल श्रमिक उन्मूलन में अपनी भागीदारी निश्चित करें। शासन के द्वारा बाल श्रमिक उन्मूलन हेतु अनेक योजनाएं और कानून प्रभावशील की गई है। शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार से जोड़ते हुए पूरे देश में बच्चों के लिए निशुल्क शिक्षा का प्रावधान पूर्ण सुविधायुक्त रखा गया है। उनके उज्जवल भविष्य के निर्माण के लिए गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवार के बच्चों के लिए आरटीई के तहत बड़े-बड़े पब्लिक स्कूल में भी उन बच्चों को शिक्षा का अधिकार है । भवन निर्माण कल्याण अधिनियम 1990 के अंतर्गत मजदूरों के बच्चों को उच्च शिक्षा के के लिए प्रेरित करने हेतु विभिन्न योजनाओं के तहत सहायता राशि दी जाती है ।उनके कैरियर के लिए उन्हें निशुल्क कोचिंग की व्यवस्था भी शासन के द्वारा की जाती है तथा शैक्षणिक फीस आवास भोजन एवं उनके पठन सामग्री की व्यवस्था भी शासन के द्वारा की जाती है।
बाल श्रमिक अधिनियम 1986 में अनेक कार्य पर विशेष कर खतरनाक उद्योग में बाल श्रमिक नियोजन प्रतिबंधित किया गया था । परंतु 2010 में बाल श्रमिक अधिनियम में संशोधन करते हुए समस्त कार्यों में 14 साल से कम बच्चों को नियोजित किया जाना अपराध की श्रेणी में आता है। चाहे आप अपने निजी आवास में उनसे घरेलू काम करवा रहे हो। अक्सर देखा जाता है बड़े-बड़े पैसे वालों के घर में ,अधिकारियों के घर में बाल श्रमिक कार्य करते हैं ।जो कि दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है। अब 14 साल से काम के बच्चों से काम लेना समस्त कार्य में प्रतिबंधित कर दिया गया है ।यह संशोधन बाल श्रम उन्मूलन में एक क्रांतिकारी कदम शासन का है। साथ ही बाल श्रमिक उन्मूलन में 2016 का एक संशोधन आया। जिसमें 14 वर्ष से 18 वर्ष तक कार्य करने वाले बच्चों को ऊपर शासन का नियंत्रण रहेगा । उनके कार्य के घंटे काम रहेंगे तथा जिस व्यवसाय में वह कार्यरत हैं उन्हें उसने कुशल बनने के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाए । यह श्रम विभाग की जिम्मेदारी है ।
बाल श्रमिक अधिनियम 1986के अंतर्गत धारा 16 में यह प्रावधान है कि भारत का प्रत्येक नागरिक इसमें इंस्पेक्टर घोषित है जो की नियोजक के विरुद्ध सक्षम न्यायालय में अभियोजन दायर कर सकता है ।आज छोटे शहरों में भी बाल श्रमिक उन्मूलन हेतु विशेष अभियान चलाकर उन्हें मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास निरंतर किया जा रहा है। परंतु शर्त है “”इनके घर में भी आएगी बहार बस पहले आपको आना होगा”” कैफ़ी आज़मी की ग़ज़ल की एक लाइन है –मैं भी उठो तुम भी उठो सब उठो
देखना कोई खिड़की इस दीवार में खुल जाएगी”” समाज के सहयोग के बिना बाल श्रम उन्मूलन के सौ प्रतिशत लक्ष्य को पाना संभव नहीं है ।
दीपक पाण्डेय (सेवानिवृत श्रम अधिकारी )