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videoः हार्ट मरीजों की इसलिए भी होती है मौत..डॉ.के.के.ने बताया..भारत का पहला मशीन…थेरेपी से जवान होती है हृदय की कोशिकाएं

बिलासपुर—एन्जियोग्राफी में  वेसेल्स के ब्लाकेज को जाता है। निश्चित रूप से यह बड़ी तकनिकी है। ईलाज से रूधिर बहाव शुरू हो जाता है। परिणाम भी अच्छा आता है। बावजूद इसके मरीजों की मौत हो जाती है। मौत  कई वजह होती है। एक वजह हृदय कोशिकाओं का लगातार कमजोर होना और रूधिर नहीं पहुंचना भी है। जबकि इसका इलाज है..लेकिन जानकारी के अभाव लोग इलाज नहीं करवा पाते हैं। इसमें खर्च भी गंभीर बीमारियों की तुलना में बहुत कम होता है। यह बातें हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ.के.के.अग्रवाल ने कही।

डॉ.अग्रवाल ने बताया कि हार्ट मरीजों की मौत सिर्फ अटैक और ब्लाकेज से ही नहीं होती है। अच्छा इलाज होने के बाद भी हृदय की कोशिकाओं की लगातार मौत होना भी मरीजों की मौत का कारण है। लेकिन इस तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता है। हमने आज से दस साल पहले विशेष मशीन से थेरेपी कर अब तक 200 से अधिक मरीजों को नया जीवन दिया है। हाल फिलहाल जांजगीर के एक ऐसा मरीज का इलाज किया जिसने भोपाल में बायपास सर्जरी कराया। बावजूद इसके उसकी हालत दिनो दिन बिगड़ती गयी। और मात्र तीन बार के इलाज में स्वस्थ्य होने लगा है।

 

सही इलाज नहीं होने से मौत

 प्रदेश के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ.के.के.अग्रवाल चार दशक से अधिक समय से मरीजों के हृदय में तांकझांक कर रहे है मतलब इलाज कर रहे हैं। शहर का एक मात्र चिकित्सक जिसे दस साल पहले ही पता चल गया कि मरीजों की मौत ना केवल ब्लाकेज से होता है। बल्कि हृदय की कोशिकाओं की लगातार असमय  मौत भी हार्ट पेसेन्ट की मौत का कारण है।

 हाल फिलहाल उन्होने भोपाल के एक नामचीन अस्पताल से बायपास सर्जरी कर लौटे ऐसे मरीज को ठीक किया। जिस रोग को देश के बड़े बड़े डॉक्टर भी नहीं पकड़ पाए। डॉ.के.के.अग्रवाल ने बताया कि जांजगीर निवासी तिवारी को कार्डियो मायोपैथी रोग है। इस रोग में हृदय की कोशिकाओं को रूधिर मिलना बन्द हो जाता है। इसकी मुख्य वजह मसल्स में संकुचन का नहीं होना है।  फिर धीरे धीरे हृदय कोशिकाएं बहुत कमजोर हो जाती है। संकुचन अन्ततः मरीज की मौत हो जाती है।

यह ठीक है कि एन्जियोग्राफी से रूधिर कोशिकायों से अवरोध को दूर कर रक्त बहाव को सामान्य किया जाता है। बायपास सर्जरी से भी मरीजों को नया जीवन मिलता है। बावजूद इसके देखने में आता है कि सही इलाज के बाद भी हार्ट रोगी की मौत हो जाती है। मौत के तमाम वजहों में एक वजह हृदय कोशिकाओं की लगातार मौत होना है। ईएसएमआर से मायो थेरेपी कर हृदय कोशिकाओं को नया जीवन मिलता है। समय पर इलाज नहीं होने से मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती है। बेचैनी बढ़ जाती है। भूख भी नहीं लगती। अन्ततः बिना इलाज के मरीज दम तोड़ देता है।

हृदय कोशिकाओं की थेरेपी

 

हृदय रोग विशेषज्ञ ने बताया कि जिस प्रकार शरीर के अन्य भाग की थैरेपी होती है। ठीक उसी तरह हृदय कोशिकाओं की भी नेचरो थेरेपी होती है। विशेष मशीन से अन्दर पहुंचे बिना हृदय को बाहर से शाक थेरेपी दी जाती है।  इसका कोई साइड इफेक्ट नही होता है। लगातार  और निमयित दिनों के अन्तराल में ईएसएमर पद्धति से हृदय की मृत कोशिकाओं को दूर किया जाता है। थेरेपी से नई कोशिकाए बनने लगती है। नई कोशिकाओ के निर्माण से मसल्स मजबूत होता है। रूधिर कोशिकाएं आसानी से मसल्स के एक एक कोशिकाओं तक पहुंचाने लगती है। और फिर हृदय सामान्य रूप से काम करने लगता है।

भारत में  पहली मशीन

 

डॉ.अग्रवाल के अनुसार ईएमएसआर थेरेपी से अब तक 200 से अधिक मरीजों को ठीक किया है। उन्होने बताया कि आज से दस साल पहले फ्रांस से विशेष मशीन लाया। मशीन आटो मोड में काम करती है। तात्कालीन समय भारत में सिर्फ उन्ही के पास यह मशीन थी। आज इनकी संख्या देश में दो सौ से अधिक हो चुकी है।  छत्तीसगढ़ में आज भी सिर्फ दो ही मशीन है। एक मशीन रायपुर में है। मशीन में दो पार्ट होत है।  एक पार्ट से हृदय को शाक दिया जाता है। दूसरे पार्ट में इसीजी का चित्र दिखता है। चित्र में हृदय की कमजोर और मजबूर सेल्स दिखाई देती हैं। कमजोर कोशिकाओं को ठीक करने मेजरमेन्ट कर बाहर से शाक दिया जाता है। और हम मशीन में देखते है कि धीरे धीरे कमजोर कोशिकाएं मजबूत होने लगती हैं।

 

मौत को मात देकर कर रहे साइकिलिंग

अग्रवाल ने बताया कि उनका सामना हमेशा थके हारे मरीजों से हूआ है। जिन्होंने बायपास सर्जरी और एन्जियोग्राफी भी कराया..लेकिन फायदा नहीं हुआ। दरअसल दोनो इलाज सही है। लेकिन मरीज की परेशानी का कारण हृदय कशिकाओं के लगातार कमजोर होना होता है। इस थेरेपी से परेशानियों से दूर किया जाता है। और खर्च भी कम आता है। उन्होेने इस दौरान कई ऐसे मरीजों को ठीक किया है..जिन्हें कहा गया कि समय नहीं है। लेकिन वही लोग पिछले दस साल से साइकिलिंग कर रहे हैं।

 

सौ प्रतिशत परिणाम

 डॉ.अग्रवाल के अनुसार मशीन का अविष्कार इजराइल ने किया। जर्मनी,जापान और इजराइल ने इसे मिलकर बनाया। और आज यह मशीन मानव जीवन के लिए वरदान साबित हो रही है। इसमें पूर्व के इको मशीन की तरह परिणाम में वरिएशन नहीं है। क्योंकि इसका रिजल्ट सौ प्रतिशत सही होता है।

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