नई दिल्ली | डेस्क: भारत के जाने-माने संविधान विशेषज्ञ, मानवाधिकार के विद्वान और राजनीतिक टिप्पणीकार एजी नूरानी का 93 साल की उम्र में निधन हो गया. 1930 में बॉम्बे (अब मुंबई) में जन्मे अब्दुल गफूर अब्दुल मजीद नूरानी ने सेंट मैरी स्कूल से शुरुआती पढ़ाई की थी. उन्होंने गवर्नमेंट लॉ कॉलेज मुंबई से क़ानून की डिग्री ली थी.
1953 में बॉम्बे हाई कोर्ट में एक वकील के रूप में उन्होंने अपने करियर की शुरूआत की.
एजी नूरानी ने अपना अधिकांश समय कानूनी, राजनीतिक और ऐतिहासिक विषयों पर लिखने में लगाया. उनकी तीक्ष्ण बुद्धि और संवैधानिक मामलों के गहन ज्ञान ने उन्हें भारतीय राजनीति और न्यायशास्त्र पर एक लोकप्रिय टिप्पणीकार बना दिया.
नूरानी इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली, द हिंदुस्तान टाइम्स और द स्टेट्समैन जैसे प्रमुख प्रकाशनों में नियमित लिखते थे.
एक लेखक के रूप में, नूरानी ने भारतीय संवैधानिक कानून, राजनीति और इतिहास के विभिन्न पहलुओं पर एक दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखीं. उनकी कुछ उल्लेखनीय कृतियों में द कश्मीर क्वेश्चन (1964), मिनिस्टर्स मिसकंडक्ट (1973), कॉन्स्टीट्यूशनल क्वेश्चन एंड सिटिज़न्स राइट्स (2006), और द आरएसएस: ए मेनेस टू इंडिया (2019) शामिल हैं.
नूरानी नागरिक स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता की अपनी मज़बूत वकालत के लिए जाने जाते थे. वे उन कानूनों के मुखर आलोचक थे, जिनके बारे में उनका मानना था कि वे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं.
हालाँकि उन्होंने कभी कोई आधिकारिक पद नहीं संभाला, लेकिन नूरानी की राय कानूनी और राजनीतिक हलकों में वज़न रखती थी. संवैधानिक मामलों पर अक्सर उनसे सलाह ली जाती थी और उनके लेखन को अकादमिक कार्यों और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में भी उद्धृत किया जाता था.
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