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गोहत्या : साबिर और आर्यन की हत्याएं

कनक तिवारी
मौजूदा हुकूमत दोहरा आचरण जी रही है. देश की बड़ी और बुनियादी समस्याओं के लिए गांधी और नेहरू पर तोहमत लगाने में संकोच नहीं करतीं. पाकिस्तान बनने, हिन्दू मुस्लिम इत्तहाद को मुस्लिम तुष्टिकरण कहने, हिन्दू भारत बनाने के बदले सेक्युलर हिन्दुस्तान बनाने, हिन्दू कानूनों में तब्दील करने, मुसलमानों के निजी कानूनों को यूं ही छोड़ देने, मुसलमानों को वोट बैंक बनाने जैसी तोहमतें लगाई जाती रही हैं.

झूठ, अफवाह, निन्दा और रूढ़ियों का सियासी असर धीरे धीरे जनता में हो ही गया. खुशहाल भारत, सामाजिक समरसता, सियासी परिपक्वता, सांस्कृतिक बहुलता, भौगोलिक एकता वगैरह के मुकाबले ‘लव जेहाद’, ‘बीफ’, ‘पाकिस्तान, ‘कश्मीर’, ‘राम मंदिर’, ‘गंगा’, ‘गोमाता’, ‘श्मशान बनाम कब्रिस्तान’, ‘तीन तलाक’, ‘समान नागरिक संहिता’, ‘घर वापसी’ जैसे भूकंप की तरह उथल पुथल कर लेते हैं. ताज़ा तरीन मामला गोमांस या बीफ के बेरोकटोक खानपान और उसके निर्यात के साथ जातीय और धर्मगत विद्वेष का हो गया है. बीफ से ज़्यादा इंसान के गोश्त के कारेाबार की हविश बढ़ रही है.

गाय को लेकर गांधी ने सबसे ज्यादा विचार विमर्श और चिंतन किया. ‘दी वेजिटेरियन’ पत्रिका में 1891 में ही गांधी ने गाय को हिन्दुओं के लिए पूज्य बताकर आजा़दी की दहलीज तक गाय से जुड़ी समस्याओं से खुद का सरोकार रखा. गांधी का सपाट जवाब था कि केवल कानून गोहत्या रोक नहीं सकता. हम गाय को उपयोगी पशु मानते हुए उसे अधमरा, भूखा और हड्डियों का ढांचा नहीं बनाएं. वही हिंसा है. गोशालाएं भी उन्हें ठीक तरह नहीं रखतीं.

अपनी अद्भुत किताब ‘हिन्द स्वराज’ में 39 वर्ष के बैरिस्टर 1909 में ही साफ लिखते हैंः ”मैं खुद गाय को पूजता हूं यानी मान देता हूं……..लेकिन जैसे मैं गाय को पूजता हूं वैसे मैं मनुष्य को भी पूजता हूं…….तब क्या गाय को बचाने के लिए मैं मुसलमान से लड़ूंगा? क्या उसे मैं मारूंगा? गाय को दुख देकर हिंदू गाय का वध करता है, इससे गाय को कौन छुड़ाता है? जो हिन्दू गाय की औलाद को आरी भोंकता है, उस हिन्दू को कौन समझाता है?”

बेतिया और मुजफ्फरपुर की सभाओं में गांधी ने बताया, रोज तीस हजार गायें और बछड़े अंगरेजों के लिए काटे जाते हैं. कसाई ज़्यादातर मुसलमान होते हैं. बकरीद के पर्व पर भी व्यापक गोसंहार होता है. अधिकतर हिन्दू गाय को नहीं मारते लेकिन गोवंश से पूरा जीवन काम लेने के बाद उनकी हड्डियों तक खरोंच कर ही छोड़ देते हैं. भरपेट चारा दाना तक नहीं देते. गोवंश की रक्षा को देश के बुनियादी मकसदों में शामिल करने पर ही गायों की रक्षा हो सकेगी.

गाय
गो हत्या रोकने के नाम पर इंसान की हत्या का आतंक बढ़ रहा है

खिलाफत आंदोलन के दौरान गांधी को सुझाव मिला. गोरक्षा को प्राथमिकता देकर स्वदेशी आंदोलन को स्थगित कर दें. खिलाफत आंदोलन में मुसलमानों को सशर्त समर्थन दिया जाए कि वे गोहत्या नहीं करेंगे. 1919 में ही गांधी ने दोनों अनुरोध ठुकरा दिए. कहा हिन्दुओं के मन में गाय को माता कहने के बावजूद मां की सेवा करने का भाव और व्यवहार जागना चाहिए. पशु जीवन को नष्ट करने का किसी को कुदरती अधिकार नहीं है.

‘यंग इंडिया’ में गांधी ने लिखा- हिन्दुओं का धार्मिक विश्वासनामा महज़ जबानी जमा खर्च है. गोवंश के मालिक हिन्दू भी जितने क्रूर हैं उसकी कोई इंतिहा नहीं है.

1920 के आसपास गांधी ने मुसलमानों की आत्मा झिंझोड़ते कहा इस्लाम तो दया का भी धर्म है. हिन्दू और मुसलमान भाइयों को बैठकर तय करना चाहिए कि गोहत्या की आखिर ज़रूरत क्यों है? गोरक्षा का आंदोलन मुस्लिम समुदाय के सहयोग से ही संभव है. हिन्दू समाज गाय की रक्षा चाहता है तो खुद हिंदू मांसाहार क्यों करते हैं? बकरीद या बूचड़खाने में गोवध रोकना हो, तब हिन्दू धर्म में पशु को बचाने के लिए मनुष्य को मार डालने की हिदायत ढूंढ़ने पर भी नहीं मिलेगी. साफ समझा जा सकता है गांधी होते तो अखलाक जैसे इंसानों की हत्या को लेकर क्या करते.

एक बार झल्लाकर तो गांधी ने यह भी कहा था कि यदि गाय को बचाने के बदले किसी इंसान की हत्या करनी पड़े. तो वैसा नहीं करके गायों को नहीं बचाना चाहिए. चाहे कुछ हो मनुष्य कुदरत में सबसे महत्वपूर्ण है. इंसानों की जान लेना सबसे बड़ा गुनाह है. सामाजिक विद्वेष बढ़ाकर गाय की रक्षा को गांधी ने तरजीह नहीं दी. आज लेकिन यही हो रहा है.

स्वामी विवेकानन्द ने बार बार लिखा. कभी ऐसा भी था ब्राह्मण गोमांस नहीं खाता था तो उसे बाह्मण नहीं समझा जाता था. धीरे धीरे यह कुप्रथा खत्म होती गई. विवेकानन्द के भी अनुसार गोमांस नहीं खाने का सामाजिक आग्रह जड़ जमाता गया. मृत गायों की खाल से बने जूते चप्पलों का भी गांधी ने उल्लेख किया. 24 मार्च 1929 को ‘नवजीवन’ में उन्होंने रंगून में दिया 10 मार्च का अपना भाषण छापा. गाय के चमड़े से बने के जूते चप्पल पहनकर मंदिर में जाया जा सकता है.

उनकी समझाइश की मुख्य धारा यही थी. जो गाय का दूध पीता है और बैलों को खेत में हल जोतने के काम में लाता है. यह उसका धर्म है कि गोवंश की इस तरह रक्षा करे कि उनके कटने की जरूरत ही नहीं हो. आज़ादी के लिए अहिंसा का भाव भी जरूरी है. हिन्दू मुसलमान के बीच सद्भाव रखकर ही गोवंश की रक्षा की जा सकती है.

आज इस तरह की सरकारी और सामाजिक अपीलें क्यों नहीं निकलतीं. कानून, परम्परा, धार्मिक कट्टरता, सरकारी आदेश, सामाजिक हंगामा और गोगुंडों की रवायत के आधार पर गोहत्या रोकते इंसान की हत्या बिना संकोच कर दिए जाने का आतंक जड़ जमा रहा है. अंगरेज़ सैनिक गोमांस के बिना भोजन नहीं करते थे.

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