रायपुर | संवाददाता : छत्तीसगढ़ में असम के मुकाबले की चाय उगाने के सपने, ध्वस्त हो गए हैं. जशपुर में वन विभाग के अफ़सरों की लापरवाही के कारण कांटाबेल में डेढ़ करोड़ रुपये की लागत से बनाया चाय बगान उजाड़ हो गया है.
वन विभाग के अफसरों का कहना है कि यह योजना पांच साल के लिए थी. पांच साल की मियाद पूरी हो गई. वन विभाग का काम पूरा हो गया.
2019 में जब मनोरा विकासखंड के कांटाबेल में 40 एकड़ में चाय बगान लगाया गया था तो इसे एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर प्रचारित किया गया था. इस चाय बगान के लिए ज़िला खनिज न्यास यानी डीएमएफ से 75 लाख रुपये, रोजगार गारंटी योजना के मद से 49 लाख रुपये और वन विभाग की और से 30 लाख रुपये मिले थे.
किसानों को चाय की खेती के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहा गया कि यह आजीविका का इतना बड़ा साधन बन जाएगा कि अकेले इस बगान में चायपत्ती की तोड़ाई से लेकर प्रसंस्करण और पैकेजिंग तक हज़ारों लोगों को रोजगार मिलेगा.
चाय बगान की सीमा में ही नाशपाती के पौधे लगा कर अतिरिक्त आमदनी की योजना भी बनी.
दावा यह किया गया था कि अगले कुछ सालों में जशपुर में 1000 एकड़ में चाय की खेती शुरु हो जाएगी.
लेकिन रौशन महिला स्व-सहायता समूह एवं गोपाल स्व-सहायता समूह को काम सौंप कर वन विभाग ने छुट्टी पा ली.
समय पर भुगतान नहीं होने और अफ़सरों की उदासीनता के कारण चाय बगान फाइलों में ही फलता-फूलता रहा.
हालत ये है कि पांच सालों तक पैसे खर्च करने के बाद कांटाबेल का चाय बगान, चायपत्ती उत्पादन से पहले ही उजाड़ हो चुका है.
चाय बगान में काम करने वाले किसान अपने खेतों में लौट गए हैं.
इस चाय बगान की देखभाल करने वाला कोई नहीं है.
स्वसहायता समूह के सदस्यों का कहना है कि सरकारी मदद नहीं मिलने के कारण हमारी मजबूरी थी कि हम अपनी खेती बाड़ी देखें.
वहीं वन विभाग का कहना है कि हमारी योजना ही पांच साल की थी. अब अगर किसान उसकी देखभाल नहीं कर रहे हैं तो यह हमारी ज़िम्मेवारी नहीं है.
जाहिर है, इस बात का जवाब किसी के पास नहीं है कि जनता की गाढ़ी कमाई के लगभग डेढ़ करोड़ रुपये चाय बगान के नाम पर फूंक देने की
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