CG NEWS:5 सितंबर को डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के दिन देश – प्रदेश में शिक्षकों के सम्मान में शिक्षक दिवस मनाया जाता है। इस दिन शिक्षकों के मान -सम्मान में कसीदे पढ़े जाते रहे हैं। पर अजीब विडंबना है कि प्रदेश में शिक्षक दिवस से ठीक एक दिन पहले “करें कोई और भरे कोई” की तर्ज पर प्रदेश के दो हजार से अधिक शिक्षकों की पदोन्नति के बाद हुए संशोधन के आदेश को रद्द कर उन्हें खून के आंसू रोने को मजबूर कर दिया गया …. ।ठीक चुनाव आचार संहिता की दहलीज पर यह राजनीतिक उठा पटक थी, या ब्यूरोक्रेसी का कोई दांव या फिर सत्ता के रणनीतिकारों की बिठाई गई चौसर की चाल…. हर एंगल में सहायक शिक्षको के हिस्से में मोहरे बनने की भूमिका बनी है।
शिक्षक दिवस के दिन सम्मानित होने वाला शिक्षक शासन की बहुत सी सरकारी योजनाओ को पोस्टर के रूप में जनता के बीच चिपकाने वाला होता है । इसमे प्राथमिक स्कूल का सहायक शिक्षक सरकारी सिस्टम में एक ऐसा अभागा शिक्षक संवर्ग है। जिसे उच्च अधिकारी अपनी प्रयोगशाला,स्थानीय प्रशासन मुफ्त का कर्मी, यूनियन लीडर अपनी भीड़ , राजनेता वोट बैंक, ब्लॉक जिला के अधिकारी अपना एटीएम मानते रहे है और अब बताए जा रहे पोस्टिंग संशोधन घोटाले के मामले में इस इस वर्ग के दो हजार से अधिक सहायक शिक्षको ने अगर अपनी जेब से खर्च कर यदि संशोधन करवाया है तो यह वर्ग आर्थिक और मानसिक शोषण का शिकार हो गया है। इधर करोड़ रुपये जिनके जिनके जेब में जाने थे सो अलग चले गए। दोहरी नुकसानी शिक्षक झेल गया।
सहायक शिक्षक से पदोन्नति के बाद मिडिल स्कूल के उच्च वर्ग के शिक्षक और मिडिल स्कूल के हेड मास्टर बने शिक्षकों की स्थिति किसी हाईवे के किनारे बने स्कूल के बच्चों जैसी हो गई थी..!इस मौक़े पर एक सीन की कल्पना कर सकते हैं। जिसे हम हाईवे पर आते-जाते रोज़ाना देखते हैं…। सीन ऐसा है कि हाईवे के किनारे हर एक स्कूल से कुछ दूरी पर एक साइन बोर्ड लगा होता है। जिसमें बस्ता लेकर दौड़ रहे बच्चे का रेखा चित्र दर्ज़ होता है। उधर से गुजरने वाली गाडियों पर बैठे ड्राइवर को यह बोर्ड बताता है कि आगे कुछ दूरी पर बच्चों का स्कूल है। लिहाज़ा सावधानी के साथ अपनी गाड़ी चलाएँ। यानी सड़क पर सावधानी की उम्मीद ड्राइवर से की जाती है…. बच्चों से नहीं। बच्चे तो मासूम होते हैं..। क्लास में उन्हे लाख समझाया जाए कि स्कूल से निकलते समय सड़क के किनारे सतर्क होकर चलें। लेकिन बच्चे तो आख़िर बच्चे हैं…. । स्कूल से निकलेंगे तो उछल-कूद करते हुए जिधर रास्ता दिखेगा… उधर दौड़ लगाएंगे…। ऐसे में बच्चों से सतर्कता की उम्मीद करने का बज़ाय ड्राइवर से ही की जाती है।
ऐसे ही स्कूलों में नौनिहालों का भविष्य गढ़ रहे शिक्षकों को भी क्यों नहीं देखा जाना चाहिए…? जो बच्चों की माफ़िक निश्छल भी हैं… सरल भी हैं । प्रमोशन-पोस्टिंग जैसा कोई भी मौक़ा आता है तो सतर्कता की उम्मीद शिक्षकों से ही क्यों की जाए…? क्या शिक्षा विभाग के दफ़्तरों में बैठकर स्टीयरिंग व्हील संभालते हुए ड्राइवर की भूमिका निभा रहे साहबों और बाबुओं पर सतर्कता की ज़िम्मेदारी अधिक नहीं है…? सब जानते हैं कि व्यवस्था ऐसी है कि प्रमोशन – पोस्टिंग या दूसरे मौके पर यही “ड्राइवर” अपनी गाड़ी की रफ़्तार-दिशा सबकुछ तय करते हैं। शिक्षकों के सामने ऐसी सूरत पैदा कर देते हैं कि उन्हे यदि आगे बढ़ना है तो इन्हीं “ड्राइवरों” के हिसाब से सड़क पर चलना पड़ेगा। सीधे-सीधे कहें तो साहब और बाबू ही शिक्षकों को पोस्टिंग के लिए ख़ाली ज़गह की लिस्ट दिखाते हैं और मनचाही ज़गह पाने का रेट भी समझा देते हैं।उस सीन को याद कर लीज़िए कि स्कूल के सामने सड़क के उस पार मेला लगा हुआ है….। और बच्चे को मालूम है कि उसकी पसंद का “खिलौना” सीमित मात्रा में है… और पहले आया-पहले पाया की तर्ज़ पर जो बच्चा पहले आएगा वही खिलौना पाएगा…। कोई दूसरा साथी उसकई पसंद का ख़िलौना ना खरीद ले , इसलिए कोई भी बच्चा मुंहमांगी कीमत देकर उसे पहले खरीदना चाहेगा।और घंटी बजते ही उसकी ओर लपक कर दौड़ेगा। शायद उसे किसी हादसे का अंदेशा भी हो तो वह जोख़िम उठाने से भी नहीं चूकेगा। प्रमोशन – पोस्टिंग के पूरे खेल में भी कुछ ऐसा ही सीन घूम रहा है। समझा जा सकता है कि शिक्षकों की हालत भी स्कूली बच्चों से कम नहीं रही होगी । जो अपनी मन पसंद – सुविधाजनक जगह पाने के लिए मेले की तरफ़ दौड़ पड़े और हादसे का शिकार हो गए । शिक्षा विभाग के दफ़्तर में बैठे साहब और बाबुओं ने अपने हिसाब़ से स्टीयरिंग का चक्का घुमाकर शिक्षकों को आंख मूंदकर दोड़ने पर मज़बूर कर दिया और शिक्षक दूध- दोहनी दोनों से हाथ धो बैठे….। अब ऐसी स्थिति में कसूर स्कूली बच्चों के रूप में पदोन्नति के बाद संशोधन पाए शिक्षकों का है, या फिर वाहन चलाने वाले व्यवस्था के जिम्मेदार लोग कसूरवार है ..?
व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों ने सहायक शिक्षकों की वेतन विसंगति दूर करने के लिए बनाई गई कमेटी, एलबी संवर्ग के शिक्षकों के लिए संविलियन के पूर्व की प्रथम नियुक्ति तिथि से सेवा गणना की मांग, पुरानी पेंशन के लिए जब से उनका एनपीएस कट रहा है उसके बारे में विचार विमर्श तक नहीं किया। ऐसे तमाम मुद्दों पर परदेदारी करने चौसर इस तरह बिठाई गई कि प्रमोशन-पोस्टिंग ही सबसे बड़ा मुद्दा बन गया । अब सभी लोग इसके चारों ओर चक्कर लगा रहे हैं। चुनाव के ठीक पहले यह ऐसे दांव के रूप में देखा जा रहा है , जिसके चलते शिक्षक समाज ही कटघरे में नज़र आने लगे…। जो भी पाए आंदोलन के दम पर पाए….. कहने वाले एकदम खामोश हो गए। चौसर की गोटियां कुछ ऐसी घूमी कि शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर आदेश ज़ारी कर दो हजार से अधिक शिक्षकों को कथित घोटाले में अप्रत्यक्ष रूप में शामिल कर लिया गया। क्योंकि अगर घूस लेना अपराध है तो घूस देना भी अपराध ही माना जाता है ..।
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