CG NEWS:बिलासपुर (मनीष जायसवाल) ।राज्य में सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को अपने मुख्यालय में रहना अनिवार्य होता है। इस नियम का कड़ाई से पालन करवाना नियोक्ता और जिले के शासन प्रशासन के ऊपर निर्भर रहता है। अभी मान्यता के रूप में प्रचलित यह नियम है कि अधिकारी, कर्मचारी अपने मुख्यालय में ही रहे या फिर कार्यक्षेत्र के आसपास के आठ किलोमीटर के परिक्षेत्र में निवास कर सकते है। लेकिन इस मान्यता से जुड़ा कोई नवीन आदेश या नए दिशा निर्देश बीते कुछ सालो में सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से जारी हुए हो इसकी जानकारी बहुत से जानकर कर्मचारी अधिकारी संघ ने नेताओं को भी नहीं है। वही व्यवहारिक रूप में इस नियम का पालन आज के परिवेश पूर्ण रूप से संभव भी नहीं है। इसलिए अब यह नियम अव्यवहारिक होकर सिर्फ कागजों में सिमटा हुआ है ..! क्योंकि व्यवस्था में मौजूद अनेकों विभाग के नियोक्ता ही इस नियम का पालन करें यह संभव नहीं है।
मुख्यालय में रहने की पृष्ठभूमि
एक आम सी धारणा है कि राज्य के सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों को शासन कार्यक्षेत्र में सरकारी आवास भी उपलब्ध कराता है ताकि कर्मचारियों को कार्य क्षेत्र में निवास की समस्या नहीं हो और शासन की कार्य क्षेत्र में पकड़ मज़बूत हो सके..!लेकिन सबको यह सुविधा देना संभव नहीं ऐसे में शासन सरकारी आवास नहीं देने की स्थिति में हाउस रेंट अलाउंस (HRA) यानी मकान किराया भत्ता किराए भी देता है। लेकिन मौजूदा समय में कर्मचारी के वेतन के हिसाब से जो हाउस रेंट अलाउंस (HRA) जो मिलता है ।वह बहुत कम है उससे अधिक कुछ लोगों के घर का बिजली बिल आता है। वही छोटी जगहों पर सुविधा जनक आवास भी नहीं मिलती है और किराया भी अधिक होता है। इसलिए अधिकांश लोग अपने निवास स्थान अंतर जिला या फिर कार्य क्षेत्र से दूर निवास करते हैं।
छोटी होती जिले की सीमा और अप डाउन हुआ आसान
मुख्यालय और कार्य क्षेत्र से आठ किलोमीटर की दूरी पर रहने का नियम आउट ऑफ सिलेब्स और पुराना दिखाई दे रहा है। राज्य में आज 33 जिलों में से अधिकांश जिले की सीमाएं 40 से 50 किलोमीटर के बीच में सिमटी हुई है। जैसे-जैसे राज्य का विकास हुआ है। वैसे वैसे यातायात के सार्वजनिक और निजी साधन बढ़ते गए। चालीस से पचास किलोमीटर की दूरी अब एक घंटे से कम समय में पूरी हो रही है। इसलिए अप डाउन करना आसान हुआ है। बिलासपुर से रायपुर के बीच चार जिले हो जाते है। वही सरगुजा, सूरजपुर, कोरिया और एमसीबी जिले के बीच करीब 120 किलोमीटर की दूरी में इन चारों जिलों के मुख्यालय पड़ते है।ठीक ऐसे ही कांकेर, कोंडागांव, नारायणपुर और जगदलपुर जिले भी करीब 160 किलोमीटर के बीच में ही लगे हुए है।
नए जिलों और कार्य कार्य क्षेत्र में सुविधाओं की कमी
मूल निवास छोड़ कार्य क्षेत्र में सेवा दे रहे कर्मचारी और अधिकारियों के लिए नए और छोटे छोटे जिले में मूलभूत स्वास्थ्य और परिवार के लिए आवास, शिक्षा की उच्च स्तरीय सुविधाएं भी फिलहाल उपलब्ध नहीं है। यही वजह है कि कर्मचारी अधिकारी अपने कार्य क्षेत्र वाले छोटे जिलों की बजाय बड़े और महत्वपूर्ण जिलों में रहना पसंद करते है। इन्हें आवागमन के निजी और सार्वजनिक साधन सरल और सुलभ होने की वजह से कार्य क्षेत्र में आने और जाने में समय नहीं लगता है। और इनका कार्य प्रभावित भी नहीं होता है।
नियम का डर
प्रचलित नियमों के अनुसार तो मुख्यालय में निवास नहीं करने वाले अधिकारियों एवं अधीनस्थ कर्मचारियों पर सिविल सेवा आचरण के तहत कार्यवाही का डर हमेशा बना रहता है।जिला प्रशासन और नियोक्ता की ओर से समय समय पर अपने कर्मचारियों, अधिकारियों को मुख्यालय में नहीं रहने पर कड़ी चेतावनी भी दी जाती रही है। ऐसे में कभी किसी के ऊपर गलती से कार्यवाही हो जाती है तो इसमें अकेला वह कर्मचारी दोषी हो जाता है..। जबकि ऐसा करने वाले चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी से लेकर राजपत्रित अधिकारी तक की संख्या राज्य भर में बहुत अधिक होगी..!
कौन छेड़े नया बखेड़ा
अधिकारी, कर्मचारी के अपने मुख्यालय में रहने का नियम सब पर लागू होता है राज्य का कर्मचारी कल्याण प्रकोष्ठ भी इस मामले से अनज़ान रहा है। इनकी ओर से इस नियम में बदलाव और सुधार की बातें अब तक सामने नहीं आई है। जो चर्चा का विषय बनी हो। कर्मचारी अधिकारी संघ इस मामले में हमेशा कुछ कहने से बचते रहे है। कितने कर्मचारी मुख्यालयों में निवास करते है इसका किसी के पास कोई आधिकारिक डाटा शायद ही होगा। इस मामले में सुधार की बात करना मतलब नया बखेड़ा खड़ा होना तय है।
कुल मिला कर देखा जाए तो सिस्टम अधिवास भूगोल के वर्तमान स्वरूप को देखते हुए लोक प्रशासन की वर्तमान परिस्थितों सहित कार्मिकों के कार्य क्षेत्र तक पहुंच के टाइम टेबल के गणितीय प्रबंधन के नियमों में बदलाव नहीं करने की वजह से बेमेल हो रहा है। यदि ऐसे नियम बनाए गए जिसमें अधिकारी, कर्मचारी अपने मुख्यालय में ही रहे या फिर कार्यक्षेत्र के आसपास के आठ किलोमीटर के परिक्षेत्र में निवास कर सकते है ..! और उसका पालन नहीं हो रहा है। मतलब कुछ बड़ी समस्या है। अभी तो आपसी सामंजस्य में काम चल रहा है। लेकिन इस नियम पर मंथन होना चाहिए। जिले की सीमाएं छोटी हो गई और नियम बड़े के बड़े बने हुए है।इसलिए समय समय पर शासन के अव्यवहारिक नीति नियमो में सुधार और बदलाव होते रहना चाहिए। ऐसे बदलाव के कदम लोक कल्याणकारी राज्य के विकास क्रम में मील का पत्थर साबित होते है।