CG NEWS:बिलासपुर लोकसभा सीट के चुनाव में इस बार बिलासपुर के हक के मुद्दे को लेकर चर्चा बन रही है। सोशल एक्टिविस्ट और सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव की उम्मीदवारी को लेकर सोशल मीडिया में चल रही चर्चाओं से इसके संकेत मिल रहे हैं। जिसमें लोग कमेंट कर रहे हैं कि बिलासपुर को अब तक जो कुछ मिला है , वह सड़क पर उतरकर ही मिला है और इस लड़ाई में हमेशा साथ खड़े होने वाले सुदीप श्रीवास्तव की उम्मीदवारी से यह मैसेज जाना चाहिए कि बिलासपुर के साथ अब तक न्याय नहीं हो सका है।
बिलासपुर शहर के ऐतिहासिक रेल जोन आंदोलन से लेकर हवाई सेवा के संघर्ष तक हर जगह सक्रिय रहने वाले सुदीप श्रीवास्तव ने जब बिलासपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवार के रूप में अपना फॉर्म भरा तब से ही सोशल मीडिया में लोगों के बीच चर्चा में बने हुए हैं।उन्हें लेकर सोशल मीडिया में भी कमेंट पढ़ने को मिल रहे हैं। अव्वल तो यह कहा गया कि सुदीप श्रीवास्तव का नामांकन रद्द हो सकता है। लेकिन उनकी ओर से दाखिल किए गए तीनों फॉर्म मंजूर होने के बाद इस बारे में कहीं जा रही बातों पर विराम लग गया।
अब सोशल मीडिया के साथ ही लोगों के बीच भी इस बात की चर्चा है कि बिलासपुर लोकसभा सीट से सुदीप श्रीवास्तव की उम्मीदवारी के क्या मायने हैं। आपस की चर्चाओं में ऐसा कहने वाले लोग भी मिलते हैं की सुदीप श्रीवास्तव नतीजे की बजाय अपने मुद्दों को चर्चा में लाने के लिए चुनाव मैदान में कूदे हैं। इस बहाने यह बात भी उठ रही है कि बिलासपुर के हक की लड़ाई लड़ने वालों को मौका दिया जाना चाहिए। लोग याद करते हैं कि रेलवे का जोनल हेडक्वार्टर बिलासपुर में बनाने के लिए लड़ाई शुरू हुई तो छात्र युवा जोन संघर्ष समिति के बैनर तले लगातार धरना भी दिया गया और करीब – करीब पूरे बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र के तहत लोरमी, मुंगेली, पथरिया, तखतपुर,बिल्हा,कोटा, सीपत -बेलतरा, मस्तूरी के तमाम इलाकों से लोगों को इस आंदोलन में जोड़ने की मुहिम भी चलती रही। लोग भागीदार भी बने। इस मुहिम में सुदीप श्रीवास्तव ने पूरी सक्रियता के साथ हिस्सा लिया था ।
चर्चा तो इस बात को लेकर भी है कि बिलासपुर को मेडिकल कॉलेज ,रेलवे जोन, हाई कोर्ट, केंद्रीय विश्वविद्यालय जो भी मिला है – उसके लिए सड़क पर उतरकर संघर्ष करना पड़ा है। इसी सिलसिले में पिछले कुछ समय से हवाई सेवा संघर्ष समिति के बैनर पर आंदोलन चल रहा है। सुदीप श्रीवास्तव बिलासपुर – मुंगेली – डोंगरगढ़ रेल लाइन को लेकर भी सक्रिय रहे हैं। अपने दौर के साथियों से उनका लगातार संपर्क भी रहा है । उनकी उम्मीदवारी के बहाने लोग यह भी प्रतिक्रिया जाहिर कर रहे हैं कि 2024 का चुनाव भी महत्वपूर्ण है और इस चुनाव के बाद बनने वाली संसद भी महत्वपूर्ण होगी। क्योंकि इस दौरान परिसीमन पर भी फैसला हो सकता है और व्यवस्था में बदलाव को लेकर भी फैसले हो सकते हैं। ऐसे में संसद के अंदर तमाम मुद्दों पर तार्किक ढंग से अपनी बात रखने में सक्षम प्रतिनिधि को चुनकर भेजना महत्वपूर्ण होगा । सुदीप श्रीवास्तव बिलासपुर इलाके के मुद्दों को अलग-अलग मंचों पर उठाने के साथ ही मजबूत दलील के साथ पक्ष रखने की क्षमता रखते हैं। ऐसे में उन्हें मौका दिया जाना चाहिए।
दिलचस्प बात यह भी है कि सुदीप श्रीवास्तव को अब तक दलगत राजनीति में किसी पार्टी विशेष के साथ जोड़कर नहीं देखा गया । ऐसे में उन्हें अवसर मिलता है तो अनुभवी और जुझारू प्रतिनिधि का लाभ मिल सकता है। सुदीप श्रीवास्तव की उम्मीदवारी के साथ ही चर्चा इस बात को लेकर भी हो रही है कि छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण विकास के नाम पर हुआ था। लेकिन राज्य बनने के बाद विकास के संतुलन पर गौर नहीं किया गया। एक ही शहर के विकास पर अधिक ध्यान दिया गया। जबकि बिलासपुर सहित प्रदेश के कई छोटे – बड़े शहर और इलाके अभी भी काफी पीछे हैं। इस सिलसिले में लोग आईआईएम ,आईआईटी , एम्स जैसे संस्थाओं का नाम लेते हैं। हवाई सेवा के मामले में भी छत्तीसगढ़ के दूसरे शहरों की उम्मीदें पूरी नहीं हो सकी है।
चर्चा का मुद्दा यह भी है कि उत्तर छत्तीसगढ़ के हिस्से में खनिज का दोहन करने वाली कई कंपनियां राजधानी में अस्पताल और बड़े शिक्षा संस्थान खोल रही हैं। जबकि उत्तर छत्तीसगढ़ के लोगों के हिस्से में सिर्फ़ धूल ही आ रही है। बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र 1996 के बाद से भाजपा के कब्जे में है। करीब सात बार यहां के मतदाताओं ने भाजपा के सांसद चुनकर भेजे। लेकिन इस दौर में ऐसी कोई बड़ी उपलब्धि दर्ज नहीं है, जिसे उल्लेखनीय माना जाए। बड़े मुद्दों की तो बात ही दूर है, जब ट्रेनें लगातार केंसिल हो रही हैं, तब भी सांसदों ने कुछ बोलना ज़रूरी नहीं समझा।
मौजूदा चुनाव में एक पार्टी ने काफी दूर भिलाई से लाकर अपना उम्मीदवार मैदान में उतारा है। इसे लेकर सवाल है कि क्या जरूरत पड़ने पर सांसद को ढूंढते हुए दुर्ग – भिलाई जाना होगा। इसी तरह दूसरी पार्टी ने पूर्व विधायक को इस बार लोकसभा का उम्मीदवार बनाया है। सवाल यह भी किया जा रहा है कि वे अपने कार्यकाल में अपने विधानसभा क्षेत्र के लिए कभी कोई मुद्दा उठाया है और क्या बिलासपुर इलाक़े के हक की लड़ाई में कभी शामिल रहे हैं।
आम लोगों के बीच चर्चा और सोशल मीडिया में चल रही इस तरह की बहस से चुनाव नतीजे पर कितना असर होगा यह कहना अभी मुश्किल है। लेकिन इस बहाने बिलासपुर के हक के का मुद्दा जरूर चर्चा में शामिल होता दिखाई दे रहा है।