CG NEWS :बिलासपुर: (मनीष जायसवाल) महिला कर्मचारियों के लिए अलग महिला तबादला नीति होनी चाहिए या नहीं यह चर्चा का विषय शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग से निकल कर आया है। क्योंकि दोनो विभाग सबसे बड़े विभाग है और दोनो में महिला कर्मचारियों की बड़ी और महत्वपूर्ण भागीदारी है..। इन दोनो विभाग में अधिकांश महिला कर्मचारी बीते कई सालो से तबादले का इंतजार कर रही है। कुछ कामयाब रही पर कुछ आज भी अपनी बारी का इंतजार कर रही है ..।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद प्रदेश की सियासत में सत्ता की कुर्सी बदलती रही मुख्यमंत्री के रूप में पहले अजीत जोगी आए उसके बाद फिर आए रमन सिंह जो 15 साल सत्ता की बागडोर संभाले रहे.. उनके जाने के बाद भूपेश बघेल आए .. फिर वो भी चले गए …अब राज्य बनने के 23 साल बाद विष्णु देव साय प्रदेश की सत्ता के सिरमौर मुखिया की भूमिका में है। राज्य बनने के बाद अब तक जितने भी प्रदेश के मुख्यमंत्री बने उनके प्रदेश के मुखिया होने के नाते प्रदेश की महिला कर्मचारियों के लिए ये सभी पिता तुल्य की भूमिका में रहे है..! महिला कर्मचारी के रूप में सेवा दे रही प्रदेश की अधिकांश महिला शिक्षको और अन्य महिला कर्मचारियों को मुख्यमंत्रियों का पिता का वो आशीर्वाद तो मिला लेकिन अधिकांश को पिता की चिंता और उनकी व्यक्तिगत समस्या का हल महिला तबदला नीति का विशेष लाभ नहीं मिला..! यह नीति कोई कानून नीति नही सरकार की उदारता की नीति हो सकती थी। ऐसी नीतियां नही होने की वजह से आज भी कई शिक्षक बेटियां अन्य महिला कर्मचारी कई सालो से अपने ससुराल से दूर मायके के क्षेत्र में ही सेवा दे रही है..। आज महिला शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों की प्रमुख समस्या उनके ससुराल क्षेत्र में तबादले की चाह है..। हालांकि जब भी शिक्षकों और महिला स्वास्थ्य व अन्य कर्मियों के तबादले हुए उसमें महिलाओं के भी तबादले हुए लेकिन महिलाओं की इस समस्या का निदान नीति के तहत नही हुए है..। सबसे लिए एक ही नियम बना है…। कोई विशेषाधिकार की बड़ी पहल नहीं हुई है।
महिला तबदला नीति की वकालत करती हुई महिला शिक्षक नेता ममता मंडल कहती है कि न्याय और समानता की दिशा में एक लंबे समय से प्रतीक्षित महिला आरक्षण विधेयक 2023 नारी शक्ति वंदन अधिनियम बनाया गया है यह महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देने तथा राजनीतिक प्रक्रिया में महिलाओं की अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने वाला एक ऐतिहासिक कानून है। सिर्फ एक कानून नहीं है, बल्कि इसके जरिए राष्ट्र निर्माण में भागीदारी निभाने वाली देश की माताओं, बहनों और बेटियों को उनका अधिकार मिला है। जब यह कानून बन सकता है तो राज्य सरकार महिलाओं के तबादले की नीति क्यों नहीं बना सकते है।
महिलाओं शिक्षकों की विशेष तबादला नीति की पक्ष रखती हुई महिला शिक्षक नेता उमा जाटव का कहना है कि शिक्षा कर्मी के सफ़र से अब तक जितने भी आंदोलन हुए हैं उन सभी आंदोलन में महिला शिक्षकों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। संकुल से लेकर ब्लॉक तक और ब्लॉक से लेकर राजधानी रायपुर तक महिला शिक्षकों ने पुरुष शिक्षकों के साथ कदम से कदम मिलाकर कई लड़ाइयां शासन के खिलाफ लड़ी है। संविलियन का आंदोलन इतिहास में दर्ज है की महिला शिक्षकों को भी जेल जाना पड़ा था। जब हक मिला तो सबको मिला। किसी ने भी महिलाओं का तबदला जरूरी क्यों है इस समस्या की ओर ध्यान नहीं दिया। महिला तबादला नीति लोक कल्याणकारी राज्य के लिए समय की मांग है।सरकार को इस दिशा में विचार करना चाहिए ..।
शिक्षक नेता खिलेश्वरी शांडिल्य का कहना है कि महिलाओं की भूमिका समाज में व्यापक रहती है। कर्मचारी महिला दोहरी जिंदगी जीती है। गृह निवास से दूर यदि सेवा दे रही है तो बच्चे उनके पास ही रहते है। शासकीय सेवा में कार्य करते हुए पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाना एकदम कठिन कार्य हो जाता है। महिलाएं ससुराल क्षेत्र और कार्य क्षेत्र के बीच में उलझ कर रह जाती है। इसीलिए पिता तुल्य प्रदेश के मुख्यमंत्री महिलाओं के लिए विशेष तबादला नीति पर विचार जरूर करें।
कुछ महिला शिक्षको से हुई चर्चा में यह बाद उभर कर आई कि सबसे बड़ी समस्या उन आम महिला शिक्षको और महिला स्वास्थ्य कर्मचारियों की है क्योंकि उन्होंने ने कार्य क्षेत्र में सीनियरिटी लॉस ना हो करके इन्होंने बड़े लंबे समय तक स्वैच्छिक तबादला नहीं करवाया। महिला शिक्षक तो 1998 और 2008 या 2009 से सेवा दे रहे।इसमें से अधिकांश अपने सेवा काल के अंतिम आठ से दस साल के करीब आ चुकी है। अब वे सुकून से अपने घर परिवार के बीच आना चाहती है कई महिला शिक्षक ऐसी हैं तो विवाह के बाद अपने गृह जिले में रह रही हैं लेकिन पति के जिले से दूर है वे भी तबादले की आस लेकर बीते कई सालो आवेदन पर आवेदन दिए जा रही हैं पर ऐसी बहुत से आवेदन पर अब तक विचार नहीं हुआ है। यदि महिला तबदला नीति बनी तो उनको इस नीति का लाभ मिल सकता है। राज्य शासन ऐसी नीति बनाती है तो इससे महिलाओं के कार्य क्षेत्र में आने की दिशा बड़ा कदम हो सकता है।जैसा राजनीति में भागीदारी के लिए महिला आरक्षण विधेयक 2023 नारी शक्ति वंदन अधिनियम बनाया गया है।
देखा जाए तो तबादला नीति सरकारें बनाते रहती है। उस नीति में बस महिला तबादला नीति के नियम जोड़ने है यह कोई बहुत कठिन काम भी नहीं सब कुछ शासन की इच्छा शक्ति पर निर्भर है। इसका लाभ नियमित महिला कर्मचारियों को बड़ी आसनी से मिल सकता है संविदा कर्मी महिला कर्मचारी के लिए शायद नीति नियम में बदलाव की जरूरत पड़ सकती है। इस नीति से लाभान्वित महिला कर्मचारी होंगी यह तो तय है।वही इसके राजनीति लाभ अनेक है..!