CG NEWS:( गिरिजेय ) मौजूदा लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ की सभी 11 सीटों के लिए वोट डाले जा चुके हैं। अब से लेकर 4 जून तक लोगों की गपशप में यही मुद्दा शामिल रहेगा कि किस पार्टी को – कितनी सीटें मिल रही है और कौन-कौन जीत रहा है… ? लाख टके के इन सवालों का जवाब पाने के लिए लंबा समय है। लेकिन गपशप के बीच यह सवाल भी अपने लिए जगह बना रहा है कि इस चुनाव में कौन से मुद्दे हावी रहे और माहौल कैसा रहा… ? इस नजरिए से अगर बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र के चुनावी माहौल पर नजर डालें तो लगता है कि सोशल एक्टिविस्ट और सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने चुनाव मैदान में उतरकर बिलासपुर इलाके की उपेक्षा के मुद्दे को जरूर चर्चा में ला दिया। इसके चलते बिलासपुर के दूसरे उम्मीदवार और नेताओं को भी इस बात का जिक्र करना पड़ा। अब लोगों ने अगर इसे संजीदगी से लिया तो इस टॉपिक पर चुनाव बाद भी बहस चल सकती है ।
कोई भी चुनाव हो आमतौर पर मतदान के ठीक पहले उम्मीदवारों के इंटरव्यू मीडिया में आते हैं। जाहिर सी बात है कि ऐसे इंटरव्यू में जीत के दावे किए जाते हैं और चुनाव के प्रमुख मुद्दों की बात होती है। इस बार बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र के प्रमुख उम्मीदवारों से जो सवाल किए गए, उनमें विकास के मुद्दे पर बिलासपुर की उपेक्षा का सवाल भी शामिल था। जिसके जवाब में यह बात कही गई कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद बिलासपुर इलाका तरक्की के मामले में कहीं ना कहीं पिछड़ा तो है ।इसकी चर्चा के साथ ही ये बातें भी सामने आईं कि बिलासपुर की बात और यहां की जनभावनाओं को दमदारी के साथ दिल्ली में रखा जाना चाहिए। इस बात का भी जिक्र आया कि बिलासपुर को अब तक जो कुछ भी मिला है, वह संघर्ष के सहारे ही मिला है। यहां की जन भावनाओं को लीडरशिप की जरूरत है। लोकसभा चुनाव में जीत किसकी होगी यह तो 4 जून को नतीजों से ही पता चलेगा। और उम्मीदवारों को मिले वोट का हिसाब – किताब सामने आने के बाद शायद यह भी समझना आसान होगा कि बिलासपुर इलाके की उपेक्षा और यहां के नेतृत्व से जुड़े सवाल को वास्तविक में लोगों ने कितनी अहमियत दी है ।
तमाम बड़ी-बड़ी पार्टियों को मिलने वाले वोट के साथ यह मुद्दा कितना नत्थी हो रहा है, इस पर बहस हो सकती है। बहस इस पर भी हो सकती है कि चुनाव के दौरान कितने लोगों तक यह बात पहुंची और कितने लोगों के वोट की प्राथमिकता में यह मुद्दा आया। लेकिन ज्यादातर लोग इस बात पर एक राय होंगे कि इस चुनाव में बिलासपुर लोकसभा सीट पर हमर राज पार्टी से मैदान में उतरे सुदीप श्रीवास्तव ने इस मुद्दे को लोगों तक पहुंचाने में अपने हिस्से की पूरी ताक़त लगाई। सुदीप श्रीवास्तव ने जब बिलासपुर सीट से अपना पर्चा दाखिल किया था, तब से ही सोशल मीडिया में इस पर इस बात को लेकर दिलचस्प चर्चा शुरू हुई थी। इसके पीछे की वजह शायद यही है कि एक सोशल एक्टिविस्ट और सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता के रूप में सुदीप श्रीवास्तव बिलासपुर इलाके के हित से जुड़े मुद्दों को लेकर लड़ाई में हमेशा आगे रहे हैं। बिलासपुर में रेलवे का जोनल मुख्यालय बनाने की मांग से लेकर हवाई सेवा को लेकर चल रहे संघर्ष तक हर जगह उन्होंने अपनी सक्रिय हिस्सेदारी निभाई है। जन सुविधाओं और विकास से जुड़े मुद्दों का बारीकी से अध्ययन कर मजबूत दलीलों के साथ अपनी बात रखने में सक्षम सुदीप श्रीवास्तव ने एक समय बिलासपुर से मुंगेली होकर बनने वाली रेल लाइन के मसले पर लम्बी साइकिल यात्रा भी की थी। इसके साथ ही पर्यावरण और बिलासपुरिया पहचान को लेकर भी उन्होंने हर समय संघर्ष में हिस्सा लिया। चुनाव मैदान में आने के बाद से सुदीप श्रीवास्तव ने सार्वजनिक मंचों पर यह बात उठाई कि छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना विकास के नाम पर हुई थी । लेकिन विकास का सही संतुलन नहीं बन पाया। जिससे बिलासपुर इलाके को भी जायज हक नहीं मिल सका । कई संस्थान यहां नहीं खुल सके। यहां तक की इस इलाके से खनिज और ऊर्जा का दोहन करने वाली कंपनियां भी राजधानी में बड़े संस्थान खोल देती हैं और इस इलाक़े के लोगों के हिस्से में सिर्फ़ धूल ही आती है । रेलवे और हवाई सेवा जैसी सुविधाओं को लेकर भी बिलासपुर इलाका लगातार उपेक्षित रहा है। ऐसी सूरत में बिलासपुर से ऐसा सांसद चुनकर भेजा जाना चाहिए, जो दमदारी के साथ दिल्ली में बिलासपुर का पक्ष रख सके।
चुनाव के समय इस तरह के मुद्दों को सामने रखने का भी मौक़ा होता है।अगर कोई टॉपिक इलाक़े की तरक़्की की बुनियाद से जुड़ा हो तो चुनाव जैसै मौके पर बहस होनी ही चाहिए । शायद बिलासपुर के हितों को अनदेखा किए जाने और नेतृत्व की कमज़ोरी के सवाल को बहस का हिस्सा बनाने की गरज़ से ही सुदीप श्रीवास्तव ने चुनाव मैदान में उतरने का फ़ैसला किया होगा। अपने सीमित संसाधनों के बावज़ूद इस मायने में वे कामयाब़ नज़र आए । जब मीडिया ने भी बिलासपुर की उपेक्षा का सवाल उठाया और उम्मीदवारों को भी अपने तरीक़े से जवाब देना पड़ा। हमर राज पार्टी के उम्मीदवार के रूप में सुदीप श्रीवास्तव को जितना समय मिला, उसमें बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र के कई हिस्सों में जाकर अपनी यह बात रखने की कोशिश की। इसका कितना असर मतदाताओं पर होगा यह तो नतीजे के बाद ही पता चलेगा । अब देखना यह है कि एक ज़रूरी बहस के साथ चुनाव मैदान में उतरकर सुदीप श्रीवास्तव ने जो मुद्दा उछाल दिया है, चुनाव के बाद भी उस पर बात होती रहेगी या नहीं…। यह ऐसा टॉपिक है, जिसे इस इलाक़े के लोग हर पल महसूस भी करते हैं और आपस में सवाल भी करते हैं कि तरक़्की की पायदान पर अपना बिलासपुर कहां पर खड़ा है …..? चुनाव में हार-जीत किसी की भी हो, इस सवाल का जवाब मिलते तक बहस ज़िंदा रहेगी तो शायद हमारे नुमाइंदों की जवाबदेही भी बनी रहेगी।