(गिरिजेय)वो खबर किसी सिनेमा कलाकार से जुड़ी हुई नहीं थी….और ना ही उस खबर में किसी सेलिब्रिटी का जिक्र था ….। उस खबर में ना तो किसी बड़े नेता के बारे में कोई बात लिखी गई थी… ना ही उसमें किसी बड़े क्राइम का खुलासा किया गया था… और ना ही किसी हादसे की भयानकता का ज़िक्र आया था। लेकिन सोशल मीडिया में आते ही वह खबर कुछ ही मिनट में एक हाथ से दूसरे हाथ होते हुए हजारों लोगों तक पहुंच गई….। वो खबर थी कि Chhattisgarh में किसानों के खाते में सरकार की ओर से राजीव गांधी किसान न्याय योजना की 15 वीं किस्त की रक़म जमा की जा रही है।
इस वायरल खबर का ज़िक्र करने के पीछे का मकसद यही है कि इसकी रफ्तार देखकर कुछ तो अंदाज़ा लगाय जा सकता है कि विधानसभा चुनाव के पहले छत्तीसगढ़ की बड़ी आबादी किस बारे में जानना, सुनना और समझना चाह रही है। सीधी सी बात है कि छत्तीसगढ़ में किसानों की बड़ी आबादी है, जिनके बीच सबसे बड़ा मुद्दा धान की कीमत है। 2018 के चुनाव में जब यह मुद्दा पहली बार आया तो भी मतदान और मतगणना के बीच लोगों को संकेत मिल गए थे कि इस मुद्दे से कितना बड़ा उलटफ़ेर होने वाला है। इस बार भी लगता है कि छत्तीसगढ़ में धान का मुद्दा ही सबसे अधिक असरदार हो सकता है।
2018 के विधानसभा चुनाव को याद करते ही बहुत से लोगों के सामने से वह माहौल गुज़र जाता है जब धान के मुद्दे ने छत्तीसगढ़ में बड़ा उलट फेर करने में अपनी हिस्सेदारी निभाई थी। उस चुनाव के समय कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में ढाई हजार रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से धान खरीदी का वादा किया था।चुनाव ऐसे समय में हो रहे थे, जब किसानों की धान फ़सल तैयार होकर ख़लिहानों में पहुंच जाती है। धान की कीमत को लेकर कांग्रेस के वादे का किसानों पर ऐसा असर था कि सोसाइटियों में धान की ख़रीदी शुरू होने का बाद भी किसान अपना धान बेचने नहीं पहुंच रहे थे ।
मतदान और मतगणना के बीच किसानों के इस रुख़ को देखकर चुनावी पंडितों नें भी भांप लिया था कि कुछ तो होने वाला है ….। और जब नतीजे आए तो पन्द्रह साल से चली आ रही बीजेपी की सरकार सिर्फ़ पन्द्रह सीटों पर ही सिमट गई थी । कांग्रेस को जबरदस्त बहुमत मिला था ।
भूपेश बघेल की सरकार ने अपनी पहली कैबिनेट मीटिंग में किसानों की कर्ज़ माफ़ी के फैसले पर मुहर लगाने के साथ ही ढाई हज़ार रुपए प्रति क्विंटल के भाव से धान खरीदी भी चालू कर दी । यह सिलसिला लगातार चलता रहा। इसके बाद से सरकार की ओर से राजीव गांधी किसान न्याय योजना के तहत हर साल चार किस्तों में बोनस की रक़म किसानों के ख़ाते में ज़मा की जाती रही। इसकी वज़ह से किसानों की हालत में जो बदलाव आया उसका सीधा असर गांवों की इकॉनामी पर भी पड़ा और व्यापार से लेकर कई क्षेत्रों में तब्दीली आई। इसकी कहानी लम्बी है।
लेकिन शार्ट कट में मुद्दा यह है कि इसके बाद से भूपेश सरकार ने गांव- किसान और छत्तीसगढ़ की अस्मिता को लेकर लगातार संवाद कायम रखा। नतीजतन छत्तीसगढ़ में यह अब भी सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है। लोग भूपेश बघेल की लोकप्रियता के पीछे भी इसे प्रमुख आधार मानते हैं । यह मुददा इस वज़ह से भी चुनाव से जुड़ जाता है कि प्रदेश में करीब 75 फ़ीसदी आबादी खेती- किसानी के सहारे बसर करती है। केन्द्र की सरकार हो या प्रदेश की सरकार हो… उसकी हर योजना किसानों तक पहुंचे या ना पहुंचे । लेकिन धान खरीदी का पैसा ज़रूर सभी के खाते में जमा होता है।
अगर इस बार भी चुनाव के पहले लोग धान को ही प्रमुख मुद्दा मान रहे हैं, तो इसके पीछे भी मज़बूत दलील नजर आती है। अभी हाल ही में जब प्रदेश सरकार ने राजीव गांधी किसान न्याय योजना की इस साल की चौथी किस्त ( अब तक की पन्द्रहवीं किस्त ) की रक़म किसानों के ख़ाते में ज़मा की तो लोगों ने इस ख़बर को जिस तरह हाथों-हाथ लिया, उससे भी इस बात की झलक मिल गई है कि धान का मुद्दा इस बार भी क्यों असरदार रहेगा।बल्कि धान के मामले में किसानों के इस रुख़ से 2018 का सीन दूसरे रूप में एक बार फ़िर रिपीट होता हुआ नज़र आया।
दरअसल छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से पिछले 28 सितंबर को भाठापारा के सुमाभाठा में कृषक सह श्रमिक सम्मेलन का आयोजन किया गया था । जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की मौज़ूदगी में सीएम भूपेश बघेल ने करीब साढ़े चौबीस लाख किसानों के खाते में 1,895 करोड़ की राशि ट्रांसफ़र की।
अब तक कुल 23,893 करोड़ रुपए का इसी तरह भुगतान किया जा चुका है। ज़ाहिर सी बात है कि यह रकम सीधे किसानों को मिली है।जिससे करीब पचीस लाख किसानों का परिवार जुड़ा हुआ है। यह ख़बर सोशल मीडिया के ज़रिए जिस तरह हजारों – लाखों के हिसाब से वायरल हुई है,उसे देखकर इस फ़ील्ड के जानकारों को भी हैरत हुई है। चुनावी पंडित भी इसे 2018 के माहौल से जोड़कर देख रहे हैं, जब किसानों ने धान बेचने के लिए नई सरकार के आने का इंतज़ार किया था ।
कुछ वैसी ही दिलचस्पी लोगों ने बोनस की किस्त को लेकर भी दिखाई है। वैसे आम तौर पर माना जाता है कि सोशल मीडिया में किसी सेलिब्रिटी से जुड़ी हुई ख़बरें ही अधिक पापुलर होती है। ऐसे में अगर किसानों से जुड़ी कोई ख़बर तेज़ी से ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच रही हो तो इसे लेकर लोगों की दिलचस्पी का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।इस बीच यह बात भी सामने आई है कि धान की कीमत और बोनस की रक़म खाते में जमा होने को लेकर किसान तो ख़बरों का इंतज़ार करते ही हैं। इसके साथ ही व्यापारियों- कारीगरों और किसानों से जुड़े दूसरे लोग भी इसका इंतज़ार करते हैं।
इस बीच चुनावी माहौल का अनुमान लगाने के लिए गांव के लोगों के बीच पहुंचने वाले भी महसूस कर रहे हैं कि इस बार भी किसानों के बीच धान की कीमत को लेकर ही अधिक चर्चा हो रही है। बल्कि किसानों की नज़र इस पर टिकी है कि धान की कीमत पर बीजेपी क्या वादा करने जा रही है। लोग इस मामले में बीजेपी के स्थानीय नेताओं के बयानों को लेकर भी आपस में बहस करते मिल जाएंगे और बड़े नेताओं के दौरे के समय भी लोग यह जानना चाहते हैं कि भाषण में धान के मुद्दे पर किसने – क्या कहा…। पीएम नरेन्द्र मोदी ने भी अपनी बिलासपुर रैली में धान किसानों की बात की ।
उन्होने ज़ोर देकर कहा कि धान खरीदने के लिए केन्द्र की सरकार एक लाख करोड़ से अधिक की राशि प्रदेश सरकार को देती है।उन्होने पीएम किसान योजना और सस्ते दाम पर यूरिया मुहैया कराने की बात भी अपने भाषण में कहीं । लेकिन छत्तीसगढ़ के किसान यह सुनना चाहते हैं कि धान की कीमत को लेकर बीजेपी कौन सा वादा कर रही है।
इस मामले में लोग यह भी याद कर लेते हैं कि बीजेपी की प्रदेश सरकार के समय किस तरह वादा करके भी किसानों को बोनस नहीं दिया गया था । धान के मामले में बीजेपी नेताओं की बातों पर भरोसा कायम करने के रास्ते में छत्तीसगढ़ की बीजेपी सरकार के पन्द्रह साल अवरोध की तरह दिखाई दे रहे हैं।
इधर सूब़े की कांग्रेस सरकार ने एक तरफ़ जहां प्रति एकड़ बीस क्विंटल धान खरीदी के फैसेल पर मुहर लगा दी है। साथ ही कुछ समय पहले यह संकेत दिया है कि कांग्रेस की सरकार फ़िर से आई तो आने वाले पांच साल के भीतर धान की कीमत प्रति क्विंटल तीन हजार रुपए तक मिल सकती है।जिससे धान को लेकर कांग्रेस सरकार के प्रति भरोसा कायम करने में मदद मिलती दिखाई दे रही है। ऐसे में चुनाव के बाकी मुद्दे पर धान का मुद्दा इस बार भी हावी रहे तो हैरत की बात नहीं होगी।
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