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Chhattisgarh Tarkash: फ्लैशबैक…चार्टर प्लेन से बी फार्म

तरकश, 27 अगस्त 2023

संजय के. दीक्षित

फ्लैशबैक…चार्टर प्लेन से बी फार्म

विधानसभा चुनाव का मौका है तो फ्लैशबैक की कुछ घटनाओं की चर्चा भी लाजिमी है। आज हम बी फार्म की अहमियत को इस वाकये से बताना चाहेंगे कि मध्यप्रदेश के समय 1998 में बिलासपुर में कांग्रेस प्रत्याशी का बी फार्म नामंकन जमा होने से घंटे भर पहले चार्टर प्लेन से भेजना पड़ा। दरअसल, कांग्रेस पार्टी ने पहले अनिल टाह को प्रत्याशी घोषित करने के साथ ही बी फार्म भेज दिया था। मगर नामंकन के आखिरी दिन की पूर्व संध्या भोपाल में पर्दे के पीछे बड़ी सियासी उठकपटक हुई। और पार्टी ने प्रत्याशी चेंज कर पूर्व मंत्री बीआर यादव के बेटे राजू यादव का नाम फायनल कर दिया। चूकि नामंकन जमा करने का आखिरी डेट था और सड़क या ट्रेन से भोपाल से बी फार्म भेजा जाता तो समय पर पहुंच नहीं पाता। सो, आनन-फानन में मुंबई से किराये पर चार्टर प्लेन मंगाया गया। नामंकन जमा होने के दो घंटे पहले बिलासपुर के चकरभाटा हवाई पट्टी पर चार्टर प्लेन उतरा। इसके बाद कांग्रेस प्रत्याशी ने अपना नामंकन दाखिल किया। प्रत्याशी बदलने का खामियाजा यह हुआ कि बिलासपुर से कांग्रेस 20 साल के लिए बाहर हो गई। इस चुनाव में बीजेपी के कद्दावर नेता लखीराम अग्रवाल के बेटे अमर अग्र्रवाल को पार्टी ने अपना प्रत्याशी बनाया था। कांग्रेस बिलासपुर के अपने सबसे मजबूत गढ़ में चुनाव हार गई जहां 1977 में जनता पार्टी की लहर में भी वह जीत गई थी।

कलेक्टर, एसपी की क्लास

निर्वाचन आयोग की बैठक में कल कलेक्टर, एसपी के साथ जो हुआ, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। पूरी बैठक में इन अफसरों की हालत फुटबॉल की तरह रही। कोई इधर से मार रहा था, कोई उधर से। ऐसा भी नहीं कि एक बार पूछे, कमी पाई गई तो डपट दिए और चेप्टर क्लोज। घूम फिरकर चुनिंदा अधिकारियों की दिन भर खिंचाई…तुमने ऐसा क्यों नहीं किया…समझ लो, ऐसा नहीं हुआ तो हटा देंगे। आयोग के तेवर देख लगा कि क्या करना है, वे इसका पूरा होम वर्क करके आए थे। खास बात यह रही कि उन्होंने सिर्फ बड़े जिलों के कलेक्टर, एसपी को टारगेट किया। दोपहर लंच तक अफसरों की स्थिति ये हो गई थी खौफ में लंच भी ठीक से नहीं कर पाए, पता नहीं शाम तक और क्या होगा। किसी ने सैलेट का दो-एक टुकड़ा खाया तो कुछ सूप पीकर कांफ्रेंस हॉल में लौट गए…अब कोई निकम्मा करार दे तो खाना खाया भी कैसे जाएगा। कलेक्टर, एसपी इलेक्शन कमिश्नर अनूपचंद पाण्डेय का चेहरा नहीं भूल पाएंगे। रात में सपने में भी उन्हें पाण्डेय दिखाई पड़ रहे थे। पाण्डेय यूपी के चीफ सिकरेट्री रह चुके हैं। उनके तीर इतने मारक थे कि कलेक्टर-एसपी को भीतर तक वेध जाता था। मीटिंग के बाद एक कलेक्टर ने अपनी व्यथा इन शब्दों में प्रगट की…धोबी की तरह धो दिया।

आयोग के शिकार

चुनाव आयोग ने कलेक्टर, एसपी की बैठक में जिस तरह तेवर दिखाए उससे साफ हो गया है कि आचार संहिता प्रभावशील होते ही कई कलेक्टर, एसपी आयोग के शिकार बनेंगे। दरअसल, बैठक में आयोग ने कुछ खास अफसरों को टारगेट किया। इससे प्रतीत होता है कि सारे कलेक्टर, एसपी की कुंडली आयोग के पास है। मीटिंग का मजमूं पढ़ कई अफसर भी मान रहे हैं कि इस बार आधा दर्जन कलेक्टर, एसपी की छुट्टी हो सकती है। तीन-से-चार कलेक्टर और दो-से-तीन एसपी।

कैरियर पर फर्क नहीं?

निर्वाचन आयोग की कार्रवाइयों से कलेक्टर, एसपी के कैरियर पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता। हां…उन्हें अपमान से जरूर गुजरना पड़ता है। असल में, किसी भी कलेक्टर के लिए प्रेसिडेंट और प्राइम मिनिस्टर का विजिट कराना तथा चुनाव कराना प्राउड की बात मानी जाती है। ऐसे में, ठीक चुनाव के बीच छुट्टी हो जाए तो जाहिर तौर पर पीड़ा तो होगी ही, देश भर में खबर पहुंच जाती है कि फलां कलेक्टर, एसपी को आयोग ने हटा दिया। छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आने के बाद तीन विधानसभा और तीन लोकसभा चुनाव हुए हैं। इन चुनावों में अब तक करीब दर्जन भर आईएएस, आईपीएस अधिकारियों पर कार्रवाई हुई है। सबसे अधिक कलेक्टर, एसपी 2003 के विधानसभा चुनाव में इलेक्शन कमीशन के शिकार हुए। बता दें, छत्तीसगढ़ में अब तक जितने अफसरों के खिलाफ कार्रवाई हुई, उनमें से अधिकांश उच्च पदों पर पहुंचे या फिर अभी भी ठीक-ठाक मुकाम पर हैं। सिर्फ मंत्री से मिलने के कारण चुनाव आयोग के निशाने पर आ गए एक कलेक्टर विधानसभा के बाद लोकसभा इलेक्शन में भी हटाए गए। वे अभी भारत सरकार में पोस्टेड हैं। दूसरा मामला…आयोग ़द्वारा हटाए गए एक कलेक्टर न केवल बाद में फिर बड़े जिले के कलेक्टर बने बल्कि ब्यूरोक्रेसी के शीर्ष पद तक पहुंचे। कहने का आशय यह है कि चुनावी कार्रवाइयों की चर्चा चुनाव के बाद खतम हो जाती है। कैरियर पर उसका कोई असर नहीं होता। वैसे भी आयोग की कुछ कार्रवाइयां कौवा मारकर टांगने जैसी भी होती है। ताकि बाकी कलेक्टर, एसपी चौकस हो जाएं।

कुल्हाडी पर पैर

संसदीय सचिव और कुनकुरी के विधायक यूडी मिंज ने लगता है सोगड़ा आश्रम की खिलाफत कर कुल्हाड़ी पर पैर मार लिया है। सोगड़ा का अघोरेश्वर आश्रम आस्था का ऐसा केंद्र है, जहां आम आदमी से लेकर बड़े-बड़े नेता और ब्यूरोक्रेट्स मत्था टेकने जाते हैं। इस आश्रम पर कभी किसी पार्टी का लेवल नहीं लगा। मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह भी वहां जाते थे और वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी। मगर यूडी मिंज का पत्र वायरल होते ही जशपुर में बीजेपी को वहां एक संवेदनशील मुद्दा मिल गया। बीजेपी के चुनाव प्रभारी ओम माथुर अध्यक्ष अरुण साव को लेकर जशपुर पहुंच गए। दिलीप सिंह जूदेव के दौर में इस जिले की तीनों सीटें बीजेपी को मिलती थी। मगर उनके परिवार वाले इसे मेंटेन नहीं रख पाए। 2018 के चुनाव में तीनों सीटें कांग्रेसी की झोली में चली गई। अलबत्ता, कांग्रेस की अभूतपूर्व लहर में भी यूडी मिंज करीब साढ़े चार हजार वोट से जीत पाए थे। इस बार सोगड़ा आश्रम के खिलाफत के बाद कुनकुरी में बीजेपी ही नहीं, बल्कि दो पूर्व आईएएस भी सक्रिय हो गए हैं। एसीएस से रिटायर हुए सरजियस मिंज पिछले बार भी दावेदार थे और इस बार सरगुजा कमिश्नर से रिटायर जेनेविवा किंडो का नाम भी दावेदारों में जुड़ गया है। जेनेविवा हाल ही में कांग्रेस पार्टी ज्वाईन की हैं। कुल मिलाकर यूडी मिंज ने अपनी मुश्किलें बढ़ा ली हैं।

एक सीट, दो दावेदार

जशपुर जिले के कुनकुरी में एशिया का सबसे बड़ा चर्च होने का दावा किया जाता है। उस विधानसभा सीट पर टिकिट के लिए बीजेपी नेताओं में जमकर शह-मात का खेल चल रहा है। इस सीट से खड़े होकर पूर्व केंद्रीय मंत्री और चार बार के सांसद विष्णुदेव साय विधानसभा पहुंचना चाहते हैं तो उधर रायगढ़ से लोकसभा सदस्य गोमती साय अपना दावा ठोक रही हैं। गोमती कुनकुरी विधानसभा की रहने वाली हैं और विष्णुदेव कुनकुरी के बार्डर के गांव का। गोमती पढ़ी-लिखी हैं…लोकसभा में उनका प्रदर्शन भी ठीक रहा है। इसलिए उनके समर्थकों को लग रहा वे अगर विधायक बन गई तो आगे चलकर आदिवासी महिला होने की वजह से सीएम फेस भी हो सकती हैं।

बीजेपी की दूसरी सूची

बीजेपी के प्रत्याशियों की दूसरी सूची सितंबर के पहिला सप्ताह में किसी दिन जारी हो जाएगी। कांग्रेस की पहली लिस्ट भी छह-सात सितंबर को आनी है। इसी के आगे-पीछे भाजपा की दूसरी सूची भी आएगी। पार्टी ने पहली सूची में 21 उम्मीदवारों के नाम घोषित किया था। दूसरी सूची में दसेक प्रत्याशियों के नाम होंगे। पता चला है, बीजेपी इसी तरह तीन-चार सूची जारी करेगी। उसकी रणनीति यह है कि बड़े चेहरों के नाम आखिरी लिस्ट में जारी किए जाएंगे। क्योंकि, अभी से बड़़े नेताओं का नाम जारी हो जाने से वे अपने विधानसभा ़क्षेत्रों में फोकस हो जाएंगे। पार्टी के रणनीतिकारों की कोशिश है कि बड़े नेताओं का दूसरी सीटों पर कार्यक्रम कराकर माहौल बनाया जाए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. बीजेपी ने जिन 21 प्रत्याशियों के नाम घोषित किए हैं, उनमें जितने वाले कितने होंगे?

2. इस खबर में कितनी सच्चाई है कि कुछ मंत्रियों को विधानसभा चुनाव में ड्रॉप कर उन्हें लोकसभा चुनाव में उतारा जाएगा?

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