तरकश, 5 नवंबर 2023
संजय के. दीक्षित
नई सरकार…कठिनतम चुनौती
3 दिसंबर को काउंटिंग के बाद हफ्ते-दस दिन में छत्तीसगढ़ में नई सरकार का गठन हो जाएगा। अब सरकार किसी की भी बने, उसके समक्ष बड़ी चुनौती होगी करीब 20 हजार करोड़ एक्सट्रा राजस्व जुटाने का। अगर ऐसा नहीं हुआ तो विकास कार्यो का बंटाधार हो जाएगा। दरअसल, विधानसभा चुनाव को लेकर सूबे में जिस तरह घोषणाएं की जा रही, उससे खजाने पर बड़ी चोट पड़ने वाली है। बीजेपी ने कल संकल्प पत्र में 3100 में धान खरीदने का वादा किया है। धान का समर्थन मूल्य 2300 है। इस हिसाब से 800 रुपए अलग से देना होगा। ये करीब 10 हजार करोड़ होता है। इसके अलावा महिलाओं को 12 हजार सलाना मिलेगा। छत्तीसगढ़ में करीब 70 लाख विवाहित महिलाएं हैं। इस योजना से खजाने पर करीब साढ़े नौ हजार करोड़ का व्यय आएगा। भाजपा ने अपने समय के दो साल का बोनस भी देगी, इस पर करीब चार हजार करोड़ खर्च होंगे। ये तो बीजेपी का है। जाहिर है, कांग्रेस भी कुछ अलग करने की कोशिश करेगी। 10 हजार करोड़ की कर्ज माफी ऐलान कांग्रेस पहले ही कर चुकी है। घोषणा पत्र में हो सकता है, धान का रेट 3200 हो जाए। अर्थशास्त्र को समझने वाले एक बड़ी सियासी पार्टी के एक बड़े नेता ने इस स्तंभकार से अपनी चिंता साझी की…अगर सलाना 20 हजार करोड़ अतिरिक्त राजस्व नहीं जुटाया गया तो छत्तीसगढ़ के विकास की लाइन, लेंग्थ इस कदर बिगड़ जाएगा कि इसे फिर संभालना मुश्किल हो जाएगा।
पति-पत्नी मंत्री
एक मंत्रिमंडल में पति, पत्नी दोनों मंत्री…! देश में ऐसा आपने कभी सुना नहीं होगा। मगर एक बार ऐसा हुआ है। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय 1952 में। चूकि छत्तीसगढ़ से जुड़ा मामला है इसलिए इसकी प्रासंगिकता भी है। तब देश में पहली बार विधानसभा का चुनाव हुआ था। रविशंकर शुक्ल मंत्रिमंडल में वीरेन्द्र बहादुर सिंह और उनकी पत्नी पद्मावती देवी दोनों ही एक साथ मंत्री बने। वीरेन्द्र बहादुर सिंह खैरागढ़ से और उनकी पत्नी रानी पद्मावती देवी बोरी देवकर से जीतकर विधायक बने। इस तरह पद्मावती छत्तीसगढ़ की पहली महिला मंत्री भी रहीं। 1918 में यूपी के प्रतापगढ़ जन्मी पद्मावती प्रतापगढ़ के राजा प्रताप बहादुर सिंह की छोटी बेटी थीं। सोलह साल की उम्र में पद्मावती की शादी खैरागढ़ के राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह के साथ हुई। वे 1952 से 1967 तक विधानसभा और 1967 से 1971 तक लोकसभा सांसद भी रहीं। पद्मावती देवी का इंदिरा गांधी से बहुत करीबी रिश्ता था। 1956 से 1967 तक मध्यप्रदेश शासन के लोक स्वास्थ्य, समाज कल्याण, यांत्रिकी और नगर निकाय आदि विभागों में मन्त्री पद पर रहीं थीं। पद्मावती देवी इतनी लोकप्रिय थीं कि 1957 के विधानसभा चुनाव में वे वीरेन्द्र नगर से निर्विरोध निर्वाचित हुई थीं। खैरागढ़ के विश्व प्रसिद्ध इंदिरा संगीत विश्वविद्यालय की स्थापना पद्मावती देवी ने ही की थीं।
अपवाद मंत्री
छत्तीसगढ़ बनने के बाद 23 साल में चार विधानसभा चुनाव हुए हैं। इनमें से दो विभाग ऐसे हैं, जिनके मंत्री आमतौर पर चुनाव नहीं जीतते। विभाग हैं वन और कृषि। इन दोनों में सिर्फ बृजमोहन अग्रवाल अपवाद रहे हैं। रमन सरकार के दौरान अलग-अलग पारियों में दोनों मंत्रालयों को उन्होंने संभाला और चुनाव भी जीते। उनके अलावा कोई भी मंत्री अपनी सीट नहीं बचा पाया। पहले कृषि की बात करते हैं….डॉ. प्रेमसाय सिंह अजीत जोगी मंत्रिमंडल में इस विभाग के मंत्री थे। 2003 के चुनाव में वे हार गए। इसके बाद 2008 में ननकीराम साहू और 2013 में चंद्रशेखर साहू भी चुनाव हारे। 2013 में बृजमोहन अग्रवाल कृषि मंत्री बने और 2018 में जीतने में कामयाब रहे। इसी तरह डीपी धृतलहरे जोगी सरकार में वन मंत्री रहे, 2003 के चुनाव में वे अपनी सीट नहीं बचा पाए। उनके बाद गणेशराम भगत, विक्रम उसेंडी और महेश गागड़ा अलग-अलग समय में वन मंत्री रहे और हारे। बृजमोहन अग्रवाल जरूर चुनाव जीतने में कामयाब रहे।
किस्मत ईवीएम में
पहले चरण की 20 विधानसभा सीटों की 7 नवंबर को मतदान होंगे, वहां आज पांच नवंबर की शाम प्रचार खतम हो जाएगा। इन 20 सीटों पर भाजपा से सबसे बड़ा नाम पूर्व मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह का है। वे राजनांदगांव सीट से चौथी बार चुनावी मैदान में हैं। वहीं कांग्रेस से प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज का चुनाव भी पहले चरण में है। उनके अलावा मंत्रियों में कवर्धा से मोहम्मद अकबर, कोंडागांव से मोहन मरकाम और कोंटा से कवासी लखमा शामिल हैं। तो पूर्व मंत्रियों में केदार कश्यप नारायणुपर से और लता उसेंडी कोंडागांव से किस्मत आजमा रही हैं। इनमें बीजेपी के सबसे बड़े नेता रमन सिंह हैं…आज प्रचार समाप्त होने के बाद वे अपनी सीट से फ्री हो जाएंगे। जाहिर है, दूसरे चरण वाले चुनाव के 70 प्रत्याशियों में सबसे अधिक डिमांड रमन सिंह की है। वे अब फ्री होकर चुनाव प्रचार कर सकेंगे तो पीसीसी चीफ दीपक बैज भी दीगर सीटों पर अपना फोकस बढ़ाएंगे।
थैंक्स गॉड!
पहले चरण वाले 11 जिलों के कलेक्टर, एसपी दिन गिन रहे कि कैसे तीन दिन निकल जाए। इसके अलावा दो रेंजों के आईजी भी तनाव में हैं। इन 11 जिलों में 20 सीटें आती हैं। इनमें बस्तर में सात जिले हैं और 12 विस सीटें। बस्तर में अभी चुनाव आयोग की कोई कार्रवाई नहीं हुई है। राजनांदगांव एसपी का विकेट चुनाव का ऐलान होते ही गिर गया था। वहां के कलेक्टर पहले से चुनाव आयोग के राडार पर हैं। कवर्धा भी कम संवेदनशील नहीं है। वहां धर्म का भी तड़का है। ऐसे में, इलेक्शन खतम होने की इन अधिकारियों की खुशी समझी जा सकती है।
ओबीसी कार्ड
कांग्रेस के जवाब में बीजेपी भी अब छत्तीसगढ़ में ओबीसी कार्ड चलने लगी है। इसकी शुरूआत कल केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पंडरिया की सभा में की। उन्होंने बताया कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में ओबीसी से कितने मंत्री हैं। उसके अगले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुर्ग की सभा में कहा, मैं ओबीसी से हूं, इसलिए कांग्रेस के लोग मुझे बर्दाश्त नहीं करते। उन्होंने ये भी कहा कि कांग्रेस साहू समाज को गाली देती है। पिछले चुनाव के दौरान भी पीएम मोदी ने साहू कार्ड चला था, जब उन्होंने कहा था कि मैं तेली हूं और मेरे समाज के बड़ी संख्या में लोग छत्तीसगढ़ में रहते हैं।
हफ्ते भर शेष
दूसरे चरण की 70 सीटों पर वोटिंग भले ही 17 नवंबर को है मगर बीच में दिवाली, भाईदुज और गोवर्द्धन पूजा है। याने अगले हफ्ते गुरूवार तक ही कैम्पेनिंग स्मूथली चलेगा। इसके बाद शुक्रवार याने 10 नवंबर को धनतेरस है और 12 को दिवाली। इसके बाद दो दिन भाईदुज और गोवर्द्धन पूजा। धनतेरस से लोग दिवाली की तैयारियों में जुट जाते हैं और दिवाली के अगले दिन फिर छुट्टी जैसा आलम। धनतेरस से लेकर भाईदुज तक किसी बड़े नेता की सभा हुई तो उसमें भीड़ नहीं जुट पाएगी। उसके बाद सिर्फ दो दिन बचेंगे प्रचार के लिए। 14 और 15 को। 15 नवंबर की शाम पांच बजे के बाद प्रचार समाप्त हो जाएगा। कुल मिलाकर प्रत्याशियों के पास अब हफ्ते भर का समय बचा है।
अंत में दो सवाल आपसे
1. छत्तीसगढ़ अस्मिता की बात करते-करते कांग्रेस ने एक ही जिले में किन दो बाहरी नेताओं को टिकिट दे दिया?
2. छत्तीसगढ़ में बृजमोहन अग्रवाल को छोड़कर कोई भी कृषि और वन मंत्री चुनाव नहीं जीता है…रविंद्र चौबे और मोहम्मद अकबर क्या इस मिथक को अबकी तोड़ पाएंगे?