कोरबा। इस जिले में आदिवासी विकास विभाग द्वारा जिला खनिज संस्थान न्यास (DMFT) के मद से आश्रम छात्रावासों में शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के बहाने करोड़ों के आरओ प्लस यूवी टेक्नोलॉजी युक्त वॉटर प्यूरिफिकेशन सिस्टम लगा तो दिए गए हैं, मगर अधिकांश मशीनें गारंटी अवधी में ही ख़राब हो गई हैं और जिम्मेदार लोगों की अनदेखी के चलते इन मशीनों का कोई इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है।
काले हीरे की नगरी कोरबा में हर वर्ष DMF के मद में प्रदेश भर से सर्वाधिक रकम जमा होती है। सन 2015 में जब से DMF कानून लागू हुआ है, तब से कोरबा जिले में तत्कालीन कलेक्टरों द्वारा बिना किसी जरुरत के ही बड़े निर्माण कार्यों में अरबों रूपये खर्च कर दिए गए। आज DMF से बनाये गए कई भवन बेकार पड़े हुए हैं, वहीं कुछ तो अब भी बन रहे हैं। कांग्रेस की सरकार के आने के बाद निर्माण कार्यों पर अंकुश लगाया गया तब अधिकारियों ने सामग्रियों की सप्लाई के जरिये कमाई का नया जरिया ढूंढ लिया। आलम ये है कि विभागों में कब किन सामग्रियों की खरीदी कर ली जाती है, पता ही नहीं चलता।
ऐसा ही कुछ लगभग दो वर्ष कोरबा जिले में हुआ। यहां आदिवासी विकास विभाग के अधीन से 180 से अधिक आश्रम-छात्रावासों का संचालन हो रहा है। तत्कालीन जिलाधीश की अनुशंसा पर इन छात्रावासों में DMF के मद से करोड़ों रुपए के आरओ प्लस यूवी टेक्नोलॉजी युक्त वॉटर प्यूरिफिकेशन सिस्टम लगाए गए थे। इनमे से अधिकांश मशीनें तो चंद महीनों में ही खराब हो गईं। मरम्मत के अभाव में ये मशीनें अब भी बेकार पड़ी हुई हैं।
आदिवासी बाहुल्य जिले कोरबा में संचालित छात्रावास आश्रमों पर अगर नजर डालें तो वहां DMF के मद से भवनों का जीर्णोद्धार किया जा चुका है, वहीं सुविधाओं के नाम पर भारी मात्रा में सामग्रियों की आपूर्ति कर दी गई है। आलम ये है कि इनमे से अनेक सामग्रियां तो छात्रावासों के स्टोर रूम की शोभा बढ़ा रही हैं, वहीं अनेक तो घटिया क्वालिटी के चलते टूट-फूट चुकी हैं। ऐसा ही हाल लाखों की लागत से हॉस्टल्स में लगाए गए RO वाटर सिस्टम का है। यहां के दूरस्थ वनांचल गांवों ही नहीं शहरी इलाके में स्थित हॉस्टल में लगी मशीनें भी जवाब देने लगी हैं।
कोरबा जिले के वनांचल ग्राम कुदमुरा में बोरवेल ही नहीं लगा है। बावजूद इसके यहां सप्लायर द्वारा RO सिस्टम को लाकर रख दिया गया है। अधीक्षक की सूचना के बावजूद यहां अब तक बोरवेल स्थापित नहीं किया गया है और वॉटर प्यूरिफिकेशन सिस्टम शो पीस बनकर रखा हुआ है।
बताया जा रहा है कि छात्रावासों में लगे वॉटर प्यूरिफिकेशन सिस्टम अब भी गारंटी पीरियड में हैं, मगर सप्लायरों द्वारा इनके मरम्मत की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ऐसा लगता है कि उन्हें तो सिर्फ सप्लाई से मतलब था। तत्कालीन अधिकारियों को सप्लाई के बदले कमीशन बांटा और रकम बटोर कर चलते बने। यही वजह है कि यहां पूर्व के अफसरों द्वारा की गई गड़बड़ियों को लेकर वर्तमान में पदस्थ अधिकारियों पर निशाना साधा जाता है।
कोरबा जिले के छात्रावासों का आलम यह है कि छात्रावासों के बच्चे या तो बोरवेल या फिर नल या कुओं का पानी पीने मजबूर हैं। इस संबंध में कोबा जिले के कलेक्टर संजीव झा का कहना है कि अगर गारंटी पीरियड में उपकरण खराब हो रहे हैं, तो फर्म को बनाना पड़ेगा। खराब उपकरणों की मरम्मत कराई जाएगी। बहरहाल जरुरत तो इस बात की है कि जिले छात्रावासों में लगे वॉटर प्यूरिफिकेशन सिस्टम की सप्लाई और उपकरणों की गुणवत्ता की जांच की जाये और इसके जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाये।
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