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EXCLUSIVE जानिए कैसे हुआ पोस्टिंग संशोधन का पूरा खेल…डिजिटल सिग्नेचर का जमकर हुआ दुरुपयोग..रिपोर्ट से हुआ खुलासा सबसे पहले NPG ने किया था पर्दाफाश

रायपुर। प्रदेश में चारों तरफ पदोन्नति में हुए संशोधन की चर्चा है लेकिन पोस्टिंग के धंधे में भी जिस तरीके से बेईमानी हुई है वह और हैरत में डालने वाली खबर है । बताया जा रहा है कि जो आंकड़े पहले सामने आए थे उससे कहीं अधिक मात्रा में संशोधन हुए हैं। अब यह खेल आखिर हुआ कैसे । दरअसल पदोन्नति और संशोधन के जितने भी आदेश जारी हुए हैं वह सब जेडी के डिजिटल सिग्नेचर से हुए हैं। ऐसे में सैकड़ों की संख्या में आदेश ऐसे हैं जिसके बारे में स्वयं जेडी को भी जानकारी नहीं थी और वह पूरे मामले से अनभिज्ञ थे। जिन बाबूओ ने यह पूरा खेल खेला उन्होंने नोटशीट से इतर भी बड़े पैमाने पर आदेश बांट दिए ऐसे ही कुछ आदेशों को बाद में फर्जी भी करार दिया गया जबकि वास्तव में वह आदेश उसी कार्यालय में पदोन्नति के कार्य में संलग्न बाबू और उसके सहयोगियों ने ही मोटी धनराशि लेकर शिक्षकों को दी थी। लेकिन जब कहीं पर मामला फंसा तो उस आदेश को फर्जी बताने से नही चूके। जब इस मामले की FIR दर्ज कराई जाएगी तो यह सब मामले अधिकारी और बाबुओं को फसाने के लिए पर्याप्त रहेंगे। क्योंकि इस स्थिति में शिक्षक भी खुलासा करने को तैयार बैठे हैं कि उन्हें वह आदेश किसने दिया था। यही नहीं हड़बड़ी में एक ही आदेश क्रमांक पदोन्नति के मूल आदेश और संशोधन आदेश दोनों में ही चढ़ाए गए है जिससे यह भी प्रमाणित हुआ कि केवल रकम पर ध्यान दी गई गलतियों को छिपाने में नहीं। धांधली करने वालों के हौसले इतने अधिक बुलंद थे की प्रत्याशा में भी पदस्थापना दे दी गई जबकि ऐसा कोई प्रावधान था ही नहीं बिलासपुर में तो ऐसे स्थान में पोस्टिंग दे दी गई जहां पर अक्टूबर में खाली होना है और बकायदा इसके लिए जेडी ने एक आर्डर भी निकाला कि जहां प्रत्याशा में पोस्टिंग की गई है वहां पदस्थापना पद रिक्त होने के बाद की जानी है जो कि उनकी गड़बड़ी को उजागर कर रहा है । पदोन्नति के लिए पद दर्शाते समय सारे शहर के आसपास के स्कूलों को छिपा लिया गया और ऐसे में जो वरिष्ठ थे और दिव्यांग और महिलाओं को जिन्हें पहले अवसर मिला उन्हें मजबूरी में दूरदराज का स्थान लेना पड़ा वहीं बाद में संशोधन में सारे पदों को ओपन करके जमकर कमाई की गई यहां तक कि नई भर्ती के लिए रखे गए पदों में से भी पद निकालकर पदोन्नति दे दी गई । जिन शिक्षकों को उनके घर से 200 किलोमीटर दूर पोस्टिंग दी गई थी उन्हें बाद में पैसे लेकर उनके घर के 2 किलोमीटर के पास पोस्टिंग दे दी गई । जेडी कार्यालय बिलासपुर ने तो इस मामले में हद ही कर दी अपने कार्यालय से जुड़े स्कूल को पहले पदोन्नति में शामिल नहीं किया और बाद में दोनों स्कूलों में संशोधन कर पोस्टिंग दे दी गई जिसका खुलासा जांच रिपोर्ट में हुआ है, बिलासपुर में तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ ने भंडाफोड़ करने में बड़ी भूमिका निभाई है और अब माना जा रहा है की संशोधन निरस्तीकरण की उनकी मांग पर मुहर लगना तय है।

रायपुर में भी ऐसे ही जबरदस्त गड़बड़ी की गई है जिसकी लिखित शिकायत प्रदेश शिक्षक सेवी कल्याण संघ के प्रदेश अध्यक्ष चेतन बघेल ने पूरे दस्तावेजों के साथ मुख्य सचिव से लेकर शिक्षा सचिव तक की है जिसमें सारे साक्ष्य उपस्थित हैं उन्होंने अपनी शिकायत में एक ही दिन यानी 12 जून की तारीख पर 650 संशोधन होने की शिकायत की है । दुर्ग जेडी के मामले में छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष रमेश चंद्रवंशी ने लिखित शिकायत की और बताया कि किस तरीके से पूरे संशोधन का खेल खेलते हुए समय समाप्त होने के बाद भी डेट बढ़ा बढ़ा कर मौके पर मौका दिया जाते रहा। हालांकि यह बात अलग है कि छत्तीसगढ़ शिक्षक मोर्चा के नेताओ द्वारा संशोधन निरस्त न करने की मांग की गई है। संशोधन को लेकर जो रकम बटोरी गई है वह प्रत्येक संशोधन के पीछे 1 लाख से लेकर 3.5 लाख तक की बताई जा रही है और सबसे अधिक रेट बिलासपुर संभाग में था जहां शिक्षकों से साढ़े 3 लाख तक वसूले गए हैं । वहां ऐसे भी मामले सामने आ गए हैं जिसमें कुछ शिक्षकों ने तो 2 बार संशोधन कराए है ।

संशोधन निरस्त कर सरकार देगी जीरो टॉलरेंस का संकेत !

चुनाव के ठीक पहले मचे इस बवाल को सरकार शांत तो करना ही चाहती है साथ ही यह भी बताना चाहती है की इस सरकार में दोषी अधिकारी और कर्मचारियों पर गाज गिराने से कोई ताकत नहीं रोक सकती और यदि गड़बड़ियां होंगी तो बड़े-बड़े लोग नपेंगे भी । यही वजह है कि जेडी और बाबू से लेकर कई डीईओ और बीईओ भी इसकी जद में आने की खबरें हैं जिनका प्रशासनिक तबादला होना लगभग तय माना जा रहा है। दरअसल जितने संशोधन हुए हैं उसकी तुलना में कई गुना लोग ऐसे हैं जिनको इसके चलते नुकसान हुआ है साथ ही आम शिक्षक संवर्ग भी यह चाहता है कि दोषियों पर कार्रवाई हो और गलत व्यवस्था बंद हो तो वोट बैंक के लिहाज से भी संशोधन निरस्तीकरण सरकार के लिए फायदे का सौदा है । जैसे ही संशोधन निरस्तीकरण होगा वैसे ही इसकी दलाली में लगे लोगों के बीच चेहरे उजागर होने की संभावनाएं हैं और जो लोग न्यायालय जाएंगे उन्हें भी राहत मिलने की संभावनाएं कम है क्योंकि सरकार की जिम्मेदारी पदोन्नति देने की है मनचाहे जगहों पर नियुक्त करने की नहीं। ऐसे में उन्हें काउंसलिंग में जिस जगह पर पदस्थापना मिली थी उसी जगह पर जोइनिंग देनी होगी। कोरबा मामले में कलेक्टर ने जब डीईओ की गड़बड़ी देखकर पदोन्नति आदेश को निरस्त कर दिया था तब भी शिक्षक कोर्ट पहुंचे थे और वहां न्यायालय ने कलेक्टर के आदेश को सही मानते हुए राज्य कार्यालय द्वारा दिए गए निर्देश के आधार पर ही पदस्थापना देने के निर्देश दिए थे हालांकि आदेश की गलत व्याख्या कर और शिक्षकों से सहमति लेकर वहां मामले को कुछ हद तक सेटल कर लिया गया लेकिन राज्य में मामला अब दूसरा हो चुका है और सरकार की तरफ से जो वकील न्यायालय में खड़े होंगे वह भी इस बात को न्यायालय के संज्ञान में लाएंगे कि जो निर्देश दिए गए थे उससे हटकर कार्यवाही की गई है इसीलिए संशोधन निरस्त किए गए हैं। शिक्षकों के साथ-साथ पदोन्नति संशोधन के खेल में लगे शिक्षक नेताओं और अधिकारी कर्मचारियों के लिए भी आने वाले कुछ दिन संकट भरे रहेंगे इससे इनकार नहीं किया जा सकता।

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