Jagannath Rath Yatra 2024 Date/ओडिशा का पुरी मंदिर अपने रहस्यों और चमत्कारों की वजह से चर्चा में बना रहता है. पुरी मंदिर की जगन्नाथ रथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध है जो कि हर साल आषाढ़ माह में शुरू होती है. जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से होती है. इस दिन भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ तीन अलग-अलग रथों पर सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं और अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाते हैं.
भारत के ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर पारंपरिक रूप से हर साल अनवसर या अनासार काल के दौरान 15 दिनों के लिए बंद रहता है. इन 15 दिनों के बाद रथ महोत्सव या रथ यात्रा निकैली जाती है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, जगन्नाथ रथ यात्रा में शामिल लोगों को मोक्ष प्राप्त होता है.Jagannath Rath Yatra 2024 Date
जगन्नाथ शब्द का अर्थ है ‘ब्रह्मांड के भगवान’. जगन्नाथ जी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है. हर साल ओडिशा के पुरी शहर में रथ यात्रा आयोजित की जाती है. इस त्योहार के दिन मुख्य रूप से तीन देवताओं की पूजा की जाती है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और उनकी छोटी बहन सुभद्रा शामिल हैं.
हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि 7 जुलाई, 2024 को सुबह 04 बजकर 26 मिनट पर शुरू हो रही है. द्वितीया तिथि का समापन 8 जुलाई, 2024 को सुबह 04 बजकर 59 मिनट पर होगाय ऐसे में उदया तिथि के अनुसार 2024 में जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत 7 जुलाई से होने वाली है.
ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि पर भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र को गर्भगृह से बाहर लाया जाता है और उनका स्नान किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि इसके बाद भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं और उन्हें बुखार चढ़ जाता है. इस कारण भगवान जगन्नाथ 15 दिनों तक शयन कक्ष में विश्राम करते हैं. इस दौरान पुरी मंदिर 15 दिनों के लिए बंद कर दिया जाता है और भक्तों को दर्शन की अनुमति होती है. इसके बाद आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर वे स्वस्थ होकर अपने विश्राम कक्ष से बाहर आते हैं और इसी खुशी में भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है.Jagannath Rath Yatra 2024 Date
भव्य पुरी रथ यात्रा के लिए जगन्नाथ जी, बलभद्र और देवी सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथों का निर्माण किया जाता है. यात्रा में सबसे आगे बलभद्र जी का रथ चलता है, बीच में बहन सुभद्रा और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ जी का रथ निकलता है. विशाल रथों पर विराजमान होकर भगवान, अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर पहुंचते हैं, जहां वह कुछ दिनों के लिए आराम करते हैं. इसके बाद वह दोबारा अपने घर लौट आते हैं.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण धरती पर पुरी में भगवान जगन्नाथ जी के रूप में विराजमान हैं. साल में एक बार उनकी रथ यात्रा निकालने का विधान है, जिसमें शामिल होने वाले भाग्यशाली लोगों को 100 यज्ञों के बराबर पुण्य प्राप्त होता है. भगवान जगन्नाथ की कृपा से लोगों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. ऐसी मान्यता है कि आषाढ़ माह में पुरी में स्नान करने से सभी तीर्थों के दर्शन करने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है.
सवाल- रथ यात्रा से पहले जगन्नाथ मंदिर क्यों बंद हो जाता है?
जवाब- ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ को सर्दी और बुखार हो जाता है. इसलिए, वह 14 दिनों के लिए विश्राम करते हैं और इस काल को अनासर कहा जाता है. इस दौरान भक्त उनके दर्शन नहीं कर पाते हैं.
सवाल- रथ यात्रा कहां से शुरू और खत्म होती है?
जवाब- पुरी के जगन्नाथ मंदिर से मथुरा के गुंडिचा देवी मंदिर तक की यह यात्रा जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा के नाम से जानी जाती है.
सवाल- रथ यात्रा कितने समय तक चलती है?
जवाब- पुरी रथ यात्रा त्योहार नौ दिनों तक मनाया जाता है, जिसके दौरान भगवान जगन्नाथ और अन्य दो देवता मौसी मां के मंदिर गुंडिचा मंदिर जाते हैं.
सवाल- रथ यात्रा में कितने लोग शामिल होते हैं?
जवाब- साल 2023 में ओडिशा में पुरी जगन्नाथ रथ यात्रा में 10 लाख भक्तों ने हिस्सा लिया था.
सवाल- रथ यात्रा के दौरान क्या होता है?
जवाब- त्योहार के दौरान, तीन देवताओं (जगन्नाथ जी, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा) को बड़ी संख्या में भक्तों द्वारा लकड़ी के तीन विशाल रथों में बड़ा डंडा से गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है, जहां वे एक सप्ताह तक रहते हैं और फिर लौट आते हैं.
सवाल- पुरी रथ यात्रा क्यों प्रसिद्ध है?
जवाब- भगवान जगन्नाथ की दिव्य यात्रा का उद्देश्य है जश्न मनाना. यह एक उत्कृष्ट वार्षिक उत्सव है जो भगवान कृष्ण, जिन्हें भगवान जगन्नाथ के नाम से भी जाना जाता है, को बीमार होने के बाद फिर से स्वस्थ होने पर श्रद्धांजलि अर्पित करता है.
सवाल- पुरी रथ यात्रा में कितने रथ भाग लेते हैं?
जवाब- जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा में तीन रथ होते हैं जिनमें बलरामजी के रथ को ‘तालध्वज’ कहते हैं. देवी सुभद्रा के रथ को ‘दर्पदलन’ या ‘पद्म रथ’ कहा जाता है. भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘नंदीघोष’ या ‘गरुड़ध्वज’ कहा जाता है.