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Karwa Chauth 2023 : कब है 2023 में करवा चौथ का त्योहार, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

Karwa Chauth 2023 /  सुहागिन महिलाओं के लिए करवा चौथ विशेष माना गया है। हर साल करवा चौथ व्रत को कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को किया जाता है। सुहागिन स्त्रियों द्वारा अपने पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा जाता हैं। इस दिन निर्जला उपवास का पालन किया जाता है और चंद्र दर्शन से ही व्रत तोड़ा जाता है।

करवाचौथ व्रत 2023 की तिथि एवं मुहूर्त

करवा चौथ – 01 नवम्बर 2023

करवा चौथ पूजा मुहूर्त – 05:49 PM से 07:05 PM

अवधि – 01 घण्टा 16 मिनट

करवा चौथ व्रत समय – 06:32 AM से 08:36PM

चतुर्थी तिथि प्रारम्भ – अक्टूबर 31, 2023 को 09:30 PM बजे

चतुर्थी तिथि समाप्त – नवम्बर 01, 2023 को 09:19 PM बजे

करवाचौथ की पूजा विधि

करवा चौथ पर सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करने के बाद पूजास्थल की सफाई करें। अब सास द्वारा दी गई सरगी को ग्रहण करना चाहिए। इसके बाद भगवान की आराधना करें और व्रती निर्जला व्रत का संकल्प लें।करवाचौथ के व्रत को सदैव सूर्यास्त होने के पश्चात संध्याकाल में चंद्र दर्शन के बाद ही तोड़ना चाहिए। व्रत के दौरान जलपान करने से बचें।

  • संध्या के समय एक मिट्टी की वेदी पर समस्त देवी-देवताओं को स्थापित करें। करवाचौथ पूजन में 10 से 13 करवे (मिट्टी से बने कलश) को रखना चाहिए।
  • इस व्रत की पूजन सामग्री के लिए सिन्दूर, रोली,दीप, धूप, चन्दन आदि को थाली में सजाएं। इस पूजा में उपयोग किये जाने वाले दीपक में पर्याप्त मात्रा में घी भरे, जिससे वह काफ़ी देर तक जलता रहे।
  • करवाचौथ पूजा को चंद्रोदय से लगभग एक घंटे पहले शुरू करना चाहिए। अगर परिवार की सभी स्त्रियाँ एकसाथ पूजा करती हैं, तो ये श्रेष्ठ होगा। करवाचौथ पूजन के दौरान करवा चौथ व्रत की कथा अवश्य करनी चाहिए।
  • करवाचौथ व्रत के दौरान चंद्र देव के दर्शन छलनी द्वारा करने चाहिए। दर्शन करने के बाद चंद्र देव को अर्घ्य देते हुए उनकी पूजा करनी चाहिए।
  • इस दिन चन्द्रमा दर्शन के बाद बहू को एक थाली में सजाकर मिठाई, फल, मेवे, रूपये, वस्त्र आदि अपनी सास को देकर उनके पैर छूकर आशीष लेना चाहिए।

करवा चौथ का धार्मिक महत्व

धार्मिक दृष्टि से भी करवा चौथ का अत्यंत महत्व है। करवा चौथ व्रत को संकष्ठी चतुर्थी भी कहा जाता है जो भगवान श्रीगणेश को समर्पित होती हैं। इस दिन विवाहिताएं अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हुए भगवान शंकर का पूजन करती हैं, साथ ही विघ्नहर्ता गणेश सहित शिव परिवार की उपासना भी की जाती है तथा चन्द्रमा के दर्शन करने के उपरांत व्रत को तोड़ा जाता है। चंद्रोदय के बाद चंद्र देव को जल चढ़ाया जाता है। करवचौथ के व्रत को समस्त व्रतों में से कठिन माना जाता है जिसमे सूर्योदय से जल की एक बूँद या भोजन के एक ग्रास का भी सेवन करना निषेध होता हैं।

करवा चौथ व्रत कर्क चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मिट्टी के जिस पात्र से चन्द्रमा को अर्घ्य दिया जाता है उसे करवा अथवा कर्क कहा जाता है। चंद्रमा को जल चढ़ाने की सम्पूर्ण प्रक्रिया को अर्घ कहते है। करवा चौथ पूजन में कर्क का अत्यंत महत्व है जिसका दान किसी योग्य स्त्री या ब्राहमण को किया जाता है।

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