Lote se pani peena behtar kyo : आपने कभी सोचा है कि कम उम्र में हम तमाम बीमारियों की चपेट में क्यों आने लगे हैं? किसी को पाचन की समस्या है तो किसी को आंखों की। किसी को बेचैनी और तनाव ने मारा है तो किसी को तमाम दर्दों ने। जबकि गांवों में 70-80 साल के बुजुर्ग भी सही-सलामत हैं। अपने काम अपने आप कर रहे हैं। इसका एक कारण है।
दरअसल, हमारे बड़े- बुज़ुर्गों द्वारा अपनाई गई हर एक चीज़ के पीछे एक वैज्ञानिक कारण था। वे जानते थे कि किस चीज का शरीर पर कैसा प्रभाव होगा। उन्होंने हमें भी सब सिखाया पर हम अपनी जड़ों से कट गए। आधुनिकता के फेर में उनकी सीखों को भुला बैठे। नतीजा सामने है।
ग्रामीणों के दैनिक जीवन मे रची-बसी एक चीज़ के उदाहरण से हम यह बात आपको बताते हैं। वह चीज़, पात्र या बर्तन है एक ‘लोटा’। लोटा तो आप जानते ही होंगे। छोटी मटकी या संतों के कमंडल जैसा एक बर्तन। खान-पान से लेकर पूजा-पाठ तक लोटे का प्रयोग पहले किया जाता था। गिलास का तो कहीं नाम ही नहीं था। और इसकी वजह थी लोटे के भीतर भरे पानी का शरीर पर होने वाला सकारात्मक प्रभाव। जो गिलास से हासिल नहीं हो सकता था। ये प्रभाव कैसे पड़ता है, इसके पीछे वैज्ञानिक कारण क्या है, ये सब हम इस आर्टिकल में आपको बताएंगे।
‘लोटा’ खास क्यों, इसका प्रयोग क्यों गिलास से है बेहतर
लोटा की खासियत है उसका गोल आकार और पानी की खासियत है इसका दूसरे में घुल-मिल जाना, एकाकार हो जाना, गुण धारण कर लेना। एक कटोरी पानी आप दूध में मिलाएं तो वो दूध बन जाएगा, पानी नहीं रहेगा। यही पानी जब हम लोटे में डालते हैं तो वो लोटे का गुण धारण कर लेगा, गोलाकार हो जाएगा। लोटे के आकार की खासियत यह है कि वह कभी भी एकरेखीय नहीं होता।
वागभट्ट जी सरीखे विद्वान की बात माने तो जो बर्तन एकरेखीय हैं उसका पानी पीना शरीर के लिए उचित नहीं है। गिलास एकरेखीय है। इसलिए उसके इस्तेमाल को टालना चाहिए। और ‘टालना क्यों चाहिए’ इसके पीछे एक वैज्ञानिक वजह है।
जानिए क्यों नहीं पीना चाहिए गिलास से पानी
विज्ञान के अनुसार हर गोल चीज का सरफेस टेंशन कम रहता है। चूंकि सरफेस एरिया कम होता है तो सरफेस टेंशन भी कम होगा। स्वास्थ्य की दृष्टि से कम सरफेस टेंशन वाली चीज ही हमारे लिए लाभदायक है। इसलिए लोटे से पानी पीना आपके लिए फायदेमंद हैं। वहीं ज्यादा सरफेस टेंशन वाले बर्तन जैसे कि गिलास से पानी पीने से शरीर पर एक्स्ट्रा प्रेशर आता है जो हमारे लिए नुकसानदायक है।
कम सरफेस टेंशन वाले लोटे के पानी का फायदा ऐसे समझें
कम सरफेस टेंशन वाले बर्तन ‘लोटे’ में कम पानी के गुण लंबे समय तक बरकरार रहते हैं। पानी का गुण है कि यह सफाई करता है। हमारे शरीर में पाचन का महत्वपूर्ण कार्य आमाशय और आंत के जरिए होता है। आमाशय भोजन को तोड़ देता है और आगे छोटी आंत को भेजता है। पाचन की पूरी प्रोसेस में भोजन का लाभदायक हिस्सा शरीर के काम आ जाता है और कचरा मेम्ब्रेन में फंसा रहता है। पेट की सफाई के लिए इस कचरे को बाहर करना ज़रूरी है। और यह तभी संभव है जब कम सरफेस टेंशन वाला पानी आप पी रहे हों। अगर ज्यादा सरफेस टेंशन वाला पानी है तो ये कचरा बाहर नहीं आएगा, आंतों में ही फंसा रह जाएगा और आप विभिन्न समस्याओं के शिकार होंगे।
इसे दूध का उदाहरण ले कर आसानी से समझें
अगर आप चेहरे पर दूध का लेप करें और फिर एक काटन बाल से उसे पोंछे तो चेहरे की सारी गंदगी स्किन से बाहर निकलकर काटन बाॅल पर इकट्ठी हो जाती है। ऐसा क्यों होता है?
दरअसल दूध का सरफेस टेंशन बहुत कम होता है। दूध चेहरे पर लगाते ही स्किन के सरफेस टेंशन को कम कर देता है और त्वचा थोड़ी सी खुल जाती है। और भीतर का कचरा बाहर आ जाता है। यही क्रिया लोटे का पानी पेट में करता है। आपने पानी पिया। जब यह पानी आंतों में पहुंचा तो बड़ी आंत और छोटी आंत का सरफेस टेंशन कम हुआ और वे खुल गईं। और सारा कचरा उसमें से बाहर आ गया जिससे आपकी आंत बिल्कुल साफ़ हो गई।
अब इसकी जगह अगर आप गिलास का हाई सरफेस टेंशन का पानी पीयेंगे तो आंते सिकुडेंगी क्योंकि तनाव बढेगा। विज्ञान के अनुसार तनाव बढ़ते समय चीज सिकुड़ती है। तनाव कम होते समय चीज खुलती है। गिलास का पानी पीने से तनाव बढेगा तो सारा कचरा अंदर ही जमा रहेगा और यही कचरा बवासीर-भगंदर जैसी बीमारियाँ पैदा करेगा। इसलिए कम सरफेस टेंशन वाला लोटे का पानी पीना ही शरीर के लिए उचित है।
अगर आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि हमारे यहां सदियों से कुंए का पानी पीने का चलन रहा है। गांव में औरतें कई-कई किलोमीटर चलकर पीने के लिए कुएं का पानी लाती थीं। साधू-संत भी सिर्फ कमंडल का ही पानी पीते थे। इस सबके पीछे भी यही कारण था कि कम सरफेस टेंशन वाले कुएं और कमंडल का पानी शरीर के लिए फायदेमंद था। इस विज्ञान को विद्वानों ने जाना और सरल तरीके से आमजनों के जीवन में शामिल करने के लिए ‘लोटे’ के प्रयोग की सलाह दी। हमारे बुजुर्गों ने उनकी बात मानी और स्वस्थ शरीर पाया। यह हम भी कर सकते हैं। बस जड़ों की ओर लौटना होगा।