रायपुर. मां कालरात्रि नाम से ही अभिव्यक्त होता है कि दुर्गा की यह सातवीं शक्ति घने अंधकार की तरह एकदम काली हैं. इनका रूप भयानक है. सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है. अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं कालरात्रि. काल से भी रक्षा करने वाली यह शक्ति है. माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं. इसी कारण इनका एक नाम शुभंकारी भी है. अतः इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है.
क्योंकि कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं. इसलिए दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत उनके स्मरण से ही भाग जाते हैं. ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं. इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते. इनकी कृपा से वह सर्वथा भय-मुक्त हो जाता है.
मां को गुड़ का भोग प्रिय है
सप्तमी तिथि के दिन भगवती की पूजा में गुड़ का नैवेद्य अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए. ऐसा करने से शोकमुक्त हो सकते हैं.
मां कालरात्रि की पूजा करने से शनि ग्रह संबंधी दोष दूर हो जाते हैं. इतना ही नहीं मृत्यु तुल्य कष्टों से भी मुक्ति मिलती है. मां की आराधना करने से सभी क्षेत्रों में सफलता मिलती है. यह माना जाता है कि मां कालरात्रि की पूजा से हड्डी संबंधी रोगों, श्वांस, फालिस आदि में लाभ होता है. इतना ही नहीं निराशा, चिंता व भय भी दूर होता है.
कथा
शारदीय नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि के पूजन में बेला का फूल मां को अर्पित करें. कथा है कि जब देवी पार्वती ने शुंभ व निशुंभ नामक दैत्यों के नाश के लिए अपनी वाह्य त्वचा को हटाया, तब उन्हें कालरात्रि नाम मिला. देवी पार्वती का यह सबसे भयंकर रूप है, वह अपने भक्तों को अभय व वरद मुद्रा में आशीर्वाद देती हैं. अपनी शुभाशुभ शक्तियों के कारण देवी कालरात्रि को देवी शुंभकरी कहकर भी बुलाया जाता है.
पूजा की विधि, भोग
माँ दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की पूजा विधि
नवग्रह, दशदिक्पाल, देवी के परिवार में उपस्थित देवी देवता की पूजा करनी चाहिए, फिर मां कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए. सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करें, इसके पश्चात माता कालरात्रि जी की पूजा कि जाती है. पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान किया जाता है. सप्तमी की पूजा अन्य दिनों की तरह ही होती परंतु रात्रि में विशेष विधान के साथ देवी की पूजा की जाती है. इस दिन कहीं कहीं तांत्रिक विधि से पूजा होने पर मदिरा भी देवी को अर्पित कि जाती है. सप्तमी की रात्रि ‘सिद्धियों’ की रात भी कही जाती है. लाल चम्पा के फूलों से माँ प्रसन्न होती हैं. दूध, खीर या अन्य मीठे प्रसाद का भोग लगाना चाहिए. लाल चन्दन, केसर, कुमकुम आदि से माँ को तिलक लगाएँ. अक्षत चढ़ाएं और माँ के सामने सुगंधित धूप आदि भी लगाएँ.
मंत्र पढ़ें
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
सावधानी
मां काली की उपासना का सबसे उपयुक्त समय मध्य रात्रि का होता है.
इनकी उपासना में लाल और काली वस्तुओं का विशेष महत्व होता है.
शत्रु और विरोधियों को शांत करने के लिए मां काली की उपासना अमोघ है.
किसी गलत उद्देश्य से मां काली की उपासना कतई नहीं करनी चाहिए.
मंत्र जाप से ज्यादा प्रभावी होता है मां काली का ध्यान करना.
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