दुनिया की सबसे बड़ी जंगल सफारी के साथ करीब 15 किमी की तेंदुआ पार्क की योजना भी जुड़ी है। अतिरिक्त मुख्य वन संरक्षक महेंद्र सिंह मलिक के अनुसार पिछले दिनों तेंदुआ बाहुल्य वाले इलाकों का सर्वेक्षण में पता चला है। किन-किन हिस्सों में तेंदुओं की संख्या ज्यादा है।
गुरुग्राम और नूंह में 10 हजार एकड़ में बनने वाली जंगल सफारी को लेकर हरियाणा के बजट में मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने घोषणा की है। इसको लेकर बीते सोमवार को दिल्ली में संबंधित विभागों ने एक प्रेजेंटेशन भी दिया था। इस योजना से हरियाणा में पर्यटन बढ़ेगा। दुनिया की सबसे बड़ी और अनोखी जंगल सफारी को लेकर देश दुनिया के लोगों में दिलचस्पी है। जंगल सफारी कई चरणों में बनना है। पहला चरण दो वर्षों में पूरा हो जाएगा। इसमें पर्यटन विभाग, वन विभाग, वन्य जीव विभाग, चिड़ियाघर प्राधिकरण शामिल है।
अभी तक जो रूप रेखा सामने आई है, उसमें इसके सात हिस्से होंगे। शाकाहारी वन्य जीव, विदेशी जीव, बिल्ली प्रजाति के जानवर, तेंदुआ, पक्षी उद्यान, प्राकृतिक ट्रेल, मनोरंजन स्थल और बॉयो होम्स की परिकल्पना की गई है। पर्यटन विभाग के प्रबंध निदेशक नीरज चड्ढा के अनुसार यह चिड़िया घर अथॉरिटी को तय करना है कि कौन से वन्य जीव इसमें लाए जाएंगे।
15 किमी में तेंदुआ पार्क की भी योजना
दुनिया की सबसे बड़ी जंगल सफारी के साथ करीब 15 किमी की तेंदुआ पार्क की योजना भी जुड़ी है। अतिरिक्त मुख्य वन संरक्षक महेंद्र सिंह मलिक के अनुसार पिछले दिनों तेंदुआ बाहुल्य वाले इलाकों का सर्वेक्षण में पता चला है। किन-किन हिस्सों में तेंदुओं की संख्या ज्यादा है। यह पता चल पाया है। सोहना से दमदमा तक तेंदुआ पार्क बनाकर तेंदुओं के संरक्षण की योजना पुरानी है, मगर यह जंगल सफारी से जुड़ेगी क्योंकि जंगल सफारी का इलाका भी यही होगा।
इन गांवों के लोगों को होगा लाभ
10 हजार एकड़ की अरावली जंगल सफारी में 6000 एकड़ गुरुग्राम और 4000 एकड़ जमीन नूंह की शामिल होनी है। गुरुग्राम के गांव सकतपुर वास, शिकोहपुर, भोंडसी, घामडौज, अलीपुर टिकली, अकलीमपुर, नौरंगपुर बड़गूजर शामिल हैं। नूंह के कोटा खंडेवला, गंगानी, मोहम्मदपुर अहीर, खरक, जलालपुर, भांगो, चलका गांव इस परियोजना में शामिल हैं। इस गांवों के ग्रामीणों को इसका लाभ मिलेगा।
इन पर है दारोमदार
अरावली जंगल सफारी की डिजाइन और ले आउट की कंसल्टेंसी और आगे इसकी देखभाल की जिम्मेदारी टैगबिन और लॉजिक जू नाम की दो कंपनियों पर है। ये कंपनियां डिजाइन और डीपीआर ये दोनों कंपनियां तैयार कर रही हैं। लॉजिक जू वन्य जीवों से संबंधित सलाह देने वाली विदेशी कंपनी है। जबकि टैगबिन अपने देश की कंपनी है। इस कंपनी ने तकनीकी डिजिटल कार्यों में योगदान है। इंडिया गेट पर नेताजी के चर्चित सुभाष चंद्र बोस की होलोग्राम स्टेच्यू, हर घर तिरंगा, अयोध्या में दीपोत्सव की थ्री डी प्रोजेक्शन मैपिंग आदि कार्य इन्होंने किया है।
जंगल सफारी का सफर आसान नहीं
अरावली जंगल सफारी को लेकर पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा है कि इसके लिए उनसे सहमति लेनी होगी। दूसरी ओर पर्यावरणविदों ने जंगल सफारी के विरोध में जनहित याचिका भी दे रखी है। अरावली में खनन माफिया और उसके जंगलों के बचाव को लेकर कई वर्षों तक काम कर चुके भारतीय वन सेवा के पूर्व अधिकारी डॉ. आरपी बलवान का कहना है कि अरावली के वन क्षेत्र में सफारी या बॉयो डायवर्सिटी पार्क का निर्माण वन्य जीवों और अरावली के पारिस्थितिकी के विनाश की योजना है।
यह वन संरक्षण अधिनियम 1980, पंजाब भू संरक्षण अधिनियम 1900, वाइल्ड लाइफ एक्ट 1972 और वन भूमि अधिनियम 1972 के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट और एनजीटी ने समय-समय पर जो आदेश दिए हैं, उसका उल्लंघन है। 7 अप्रैल 2022 को उच्चतम न्यायालय ने सार्वजनिक भूमि के संबंध में यह फैसला दिया था कि उसका व्यक्तिगत स्तर पर कोई प्रयोग नहीं हो सकता। अरावली की वन भूमि पंचायत की भूमि है। नियमों के अनुसार यहां की जमीन के पेड़ों को काटने के आदेश जिला वन अधिकारी भी नहीं दे सकते। केवल अपनी घरेलू जरूरतों पर यहां के मूल निवासी ही पेड़ काट सकते हैं। अगर किसी ने जमीन खरीदी है, वह नहीं काट सकता।
फिर सफारी या बॉयो डायवर्सिटी पार्क के लिए एजुकेशनल बिल्डिंग, जन सुविधाएं, होटल मोटल आदि का निर्माण नियमों के दायरे में नहीं किया जा सकता है। इससे वन्य जीवों का संरक्षण नहीं होगा। सफारी का निर्माण 10,000 एकड़ की अरावली के वन भूमि पर सफारी का निर्माण सघन वन वाले इलाके में किया जा रहा है। अरावली के पश्चिमी क्षेत्र में गैरतपुरवास से सोहना के सघन वन क्षेत्र में सफारी बनाए जाने की योजना है जहां वन्य जीवों की संख्या ज्यादा है। मनुष्यों की गतिविधियों से उनके सहज जीवन में खलल पड़ेगा। इस इलाके में करीब 40 तेंदुए और गीदड़ आदि है, इनका जीवन असहज हो जाएगा। अरावली के वन क्षेत्र में सफारी बनाने से सड़क बनेगी। इस कारण अरावली में कटाव होगा। कुदरती नाले और भू संरचना खराब होगी। जमीन में पानी नहीं जा सकेगा। इससे गुरुग्राम में भूजल स्तर पर में कमी आएगी।
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