NPG DESK रायपुर I 10 सितंबर को श्राद्ध की पूर्णिमा से श्रादध की शुरूआत हो रही है।जो 15 दिनों तक चलेगा। इस दौरान पितृपक्ष पर पूर्वजों के लिए श्राद्ध कर्म किया जाता है। इन दिनों में पिंडदान, तर्पण, हवन और अन्न दान मुख्य होते हैं। मान्यता है कि जो लोग पितृ पक्ष में पूर्वजों का तर्पण नहीं कराते, उन्हें पितृदोष लगता है। श्राद्ध के बाद ही पितृदोष से मुक्ति मिलती है। श्राद्ध से पितरों को शांति मिलती हैं। वे प्रसन्न रहते हैं और उनका आशीर्वाद परिवार को प्राप्त होता है।
पितृपक्ष के दौरान वैदिक परंपरा के अनुसार ब्रह्म वैवर्त पुराण में कहा गया है कि इस संसार में आकर जो गृहस्थ अपने पितरों को श्रद्धा पूर्वक पितृपक्ष के दौरान पिंडदान, तिलांजलि और ब्राह्मणों को भोजन कराते है, उनको इस जीवन में सभी सांसारिक सुख और भोग प्राप्त होते हैं। वे उच्च शुद्ध कर्मों के कारण अपनी आत्मा के भीतर एक तेज और प्रकाश से आलोकित होते है। मृत्यु के उपरांत भी श्राद्ध करने वाले सदगृहस्थ को स्वर्गलोक, विष्णुलोक और ब्र्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।
श्राद्ध के दौरान बनाये ये चीजे
श्राद्ध के लिए तैयार भोजन की तीन तीन आहुतियों और तीन तीन चावल के पिण्ड तैयार करने बाद प्रेत मंजरी के मंत्रोच्चार के बाद ज्ञात और अज्ञात पितरों को नाम और राशि से सम्बोधित करके आमंत्रित किया जाता है । कुशा के आसन में बिठाकर गंगाजल से स्नान कराकर तिल जौ और सफेद फूल और चन्दन आदि समर्पित करके चावल या जौ के आटे के पिण्ड आदि समर्पित किया जाता है । फिर उनके नाम का नैवेद्ध रखा जाता है श्राद्ध के दिन लहसुन प्याज रहित सात्विक भोजन घर की रसोई में बनना चाहिए जिसमें उड़द की दाल, बडे, चावल, दूध घी बने पकवान, खीर, मौसमी सब्जी जो बेल पर लगती है .जैसे तोरई, लौकी, सीतफल, भिण्डी कच्चे केले की सब्जी ही भोजन मे मान्य है ।
श्राद्ध विधि और सामग्री
श्राद्ध के दौरान रोली, सिंदूर, छोटी सुपारी , रक्षा सूत्र, चावल, जनेऊ, कपूर, हल्दी, देसी घी, माचिस, शहद, काला तिल, तुलसी पत्ता , पान का पत्ता, जौ, हवन सामग्री, गुड़ , मिट्टी का दीया , रुई बत्ती, अगरबत्ती, दही, जौ का आटा, गंगाजल, खजूर, केला, सफेद फूल, उड़द, गाय का दूध, घी, खीर, स्वांक के चावल, मूंग, गन्ना लेकर .किसी सुयोग्य विद्वान ब्राह्मण के जरिए ही श्राद्ध कर्म (पिंड दान, तर्पण) करवाना चाहिए। आर्थिक कारण या अन्य कारणों से यदि ऐसा संभव न हो तो आप खुद पूर्ण श्रद्धा भाव से अपने सामर्थ्य अनुसार श्राद्ध कर सकते हैं। इस दौरान सुबह उठकर स्नान कर देव स्थान व पितृ स्थान को गाय के गोबर लिपकर व गंगाजल से पवित्र करें।
महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं। ब्राह्मण से पितरों की पूजा एवं तर्पण आदि कराएं। फिर पितरों के निमित्त अग्नि में गाय का दूध, दही, घी एवं खीर अर्पित करें। उसके बाद ब्राह्मण को आदरपूर्वक भोजन कराएं, मुखशुद्धि, वस्त्र, दक्षिणा आदि से सम्मान करें।
यदि किसी परिस्थिति में यह भी संभव न हो तो 7-8 मुट्ठी तिल, जल सहित किसी योग्य ब्राह्मण को दान कर देने चाहिए।
श्राद्ध किसे और कब करना चाहिए
श्राद्ध करने का अधिकार पहले बड़े पुत्र का होता है । अगर बड़ा बेटा जीवित न हो तो उससे छोटा पुत्र श्राद्ध करता है। बड़ा बेटा शादी के बाद पत्नी संग मिलकर श्राद्ध तर्पण करता है। जिसका पुत्र न हो तो उसके भाई-भतीजे श्राद्ध कर्म कर सकते हैं।
अगर केवल पुत्री है तो उसका पुत्र श्राद्ध करता है
• मतलब की पिता के श्राद्ध का अधिकार उसके बड़े पुत्र को है लेकिन यदि जिसके पुत्र न हो तो उसके सगे भाई या उनके पुत्र श्राद्ध कर सकते हैं। यदि कोई नहीं हो तो उसकी पत्नी कर सकती है।
• श्राद्ध का अधिकार पुत्र को प्राप्त है। लेकिन यदि पुत्र जीवित न हो तो पौत्र, प्रपौत्र या विधवा पत्नी भी श्राद्ध कर सकती है।
• पुत्र के न रहने पर पत्नी का श्राद्ध पति भी कर सकता है। हालांकि जो कुंआरा मरा हो तो उसका श्राद्ध उसके सगे भाई कर सकते हैं और जिसके सगे भाई न हो, उसका श्राद्ध उसके दामाद या पुत्री के पुत्र (नाती) को और परिवार में कोई न होने पर उसने जिसे उत्तराधिकारी बनाया हो, वह व्यक्ति उसका श्राद्ध कर सकता है।
• यदि सभी भाई अलग-अलग रहते हों तो वे भी अपने-अपने घरों में श्राद्ध का कार्य कर सकते हैं। यदि संयुक्त रूप से एक ही श्राद्ध करें तो वह अच्छा होता है।
• यदि कोई भी उत्तराधिकारी न हो तो प्रपौत्र या परिवार का कोई भी व्यक्ति श्राद्ध कर सकता है।
चौथ भरणी या भरणी पंचमी- को जिनकी मृत्यु हुई है उनका श्राद्ध मातृनवमी- अपने पति के जीवन काल में मरने वाली स्त्री का श्राद्ध इस तिथि पर किया जाता है।