बिलासपुर(मनीष जायसवाल) सत्ता प्रदेश में किसी की भी रही हो स्कूल शिक्षा विभाग (School Education) में प्रयोग होते रहे है। इन अजब के प्रयोग का खामियाजा छात्रों को ही भुगतना पड़ा है। इन प्रयोग के सिस्टम में रच बस जाने के बाद जब छात्र राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका अदा करने निकलते है तब उन्हे पता चलता है कि उनके साथ तो खेला करते हुए उनकी नीव को ही कमजोर कर दिया गया है।
ऐसा ही खेला पूर्व सरकार के दौरान बस्तर और सरगुजा में मिडिल स्कूलों के लिए शिक्षकों की भर्ती में विषय विशेषज्ञ की बाध्यता को खत्म करने के दौरान होता हुआ दिखाई दे रहा है। राज्य में अब मिडिल स्कूल के लिए नई शिक्षक भर्ती पदोन्नति की प्रक्रिया में स्कूल सेटअप के अनुसार विषय विशेषज्ञ के शिक्षक के बंधन से मुक्त है ..।
शिक्षा व्यवस्था के नजरिए यदि विज्ञान ,गणित, कला को अलग अलग विषय समझा जाए तो एक आम व्यक्ति अगर विषय विशेषज्ञ नही है तो मिडिल स्कूल के छात्र को ठीक से गणित, विज्ञान, कला संकाय के विषय और संस्कृत भी अच्छी तरह नही पढ़ा सकता है ..।School Education
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वही व्यक्ति इन विषयों को अच्छी तरह पढ़ा सकता है जिसने उस विषय को लेकर पढ़ाई की है ..। शिक्षक भर्ती के चयन में प्रथम पंक्ति में स्थान रखने वाले बहुत से शिक्षक हो सकता है कि सभी विषयों का ज्ञान देने में दक्ष हो लेकिन सब के सब ऐसे हो यह संभव नहीं है…!
एकदम सरल शब्दों में कहा जाए तो प्रदेश में अब मिडिल स्कूल की भर्ती पदोन्नति में विषयवार सेटअप का अब कोई महत्व नहीं रह गया..। कला विषय में उत्तीर्ण स्नातक स्तर का व्यक्ति मिडिल स्कूल यानी छठवीं से आठवीं तक के शिक्षक बनने के लिए गणित और विज्ञान के शिक्षक की जगह ले सकता है। या गणित और विज्ञान का अर्हताधारी व्यक्ति संस्कृत और सामाजिक विज्ञान के शिक्षक के पद पर भर्ती और पदोन्नति में ले सकता है।
इस अनोखे निर्णय की शुरुआत 6 जुलाई 2023 को मंत्रिपरिषद की बैठक में हुई। जिसमे बस्तर और सरगुजा संभाग में 3722 और 5577 सहायक शिक्षक व शिक्षक के रिक्त पदों को भरने के लिए भर्ती नियम को शिथिल करते हुए स्वीकृत सेटअप में विषयवार पदों की भर्ती की बाध्यता को हटाए जाने का निर्णय लिया गया। जिसका अब राजपत्र में प्रकाशन भी हो गया इसके बाद उन पदों पर भर्ती के लिए आवेदन मंगाए गए। एक प्रक्रिया के तहत नियुक्ति भी हो गई।
आज आलम यह है कि नई नियुक्ति की वजह से सरगुजा और बस्तर के बहुत से मिडिल स्कूलों के सेटअप में यदि चार शिक्षक है तो चारों शिक्षक कला के हैं। तो कई स्कूलों में एक साथ कई विज्ञान और गणित के शिक्षक है।इस व्यव्स्था से अब इन चयनित शिक्षको के लिए भी सवाल कि भविष्य में इन मिडिल स्कूल के शिक्षकों कि अगर व्याख्याता के पद पर पदोन्नति होती है तो वह कैसे होगी ..!School Education
आज स्थिति यह भी है कि पूर्व सरकार के कार्यकाल में पदोन्नति से शिक्षक से व्याख्याता बनने की प्रक्रिया लंबित है। उसकी अगर फिर से नई सूची बनाते हुए नई डीपीसी करते है तब की स्थिति में क्या होगा ..। हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूल जहां विषय संकाय को लेकर पढ़ाई की जाती है वहां पदोन्नति के कैसे नियम होंगे ..!
आम लोगो का मानना है कि व्यवस्था के जिम्मेदार लोग अगर कक्षा पांचवी से आठवीं तक की संस्कृति, विज्ञान और गणित की किताब का अध्ययन करते तो संभवत यह विचार ही नहीं आता कि विषय बाध्यता को हटाने का फैसला लिया जाए। लेकिन यह फैसला तो हो गया..!
चूक तो उस दौर में प्रदेश की सियासत में बैठे विपक्ष से भी हुई वह इस मुद्दे को समझ नहीं पाया और सदन में यह बात प्रभावी रूप से नहीं रख पाया कि इस व्यवस्था से नौनिहालों का भविष्य कहीं ना कहीं खतरे में है।
छात्रों के भविष्य निर्माता के रूप में बैठे व्यवस्था की जिम्मेदार लोगों ने बस्तर और सरगुजा में सबसे बड़ी गलती यदि कर दी है। तो उसका खामियाजा वर्तमान सहित भविष्य में छात्रों के शिक्षण कौशल के रूप में दिखाई जरूर देगा। यदि पाठशाला को ज्ञान हासिल करके का मंदिर कहा जाता है। यह भी उतना सच माना जाए कि उन छात्रों को उस ज्ञान के मंदिर में अधूरा ज्ञान व्यवस्था की जिम्मेदार लोगों की वजह से मिलता हुआ दिखाई दे रहा है ..!
इस बात में दो मत नहीं कि प्राथमिक स्कूल में एक बार तो यह व्यवस्था समझ में आ सकती है।लेकिन यह व्यवस्था मिडिल स्कूल की वर्तमान पीढ़ी के लिए यह धीमा जहर तो साबित नही होगी.!रमन सरकार के कार्यकाल के दौरान एक ऐसी बड़ी गलती हो चुकी है। मिडिल स्कूल के सेटअप में विषय विशेषज्ञ शिक्षकों की जब कमी हो रही थी। उस वक्त कला के शिक्षक अधिक हो रहे थे। उस दौरान 10 दिन गणित और 10 दिन अंग्रेजी का प्रशिक्षण देकर प्रमाण पत्र पाने वाले शिक्षकों को मिडिल स्कूल के रिक्त पदों पर भर कर या समायोजित करके खानापूर्ति की गई थी …।School Education
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जिसकी वजह से कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में की गई शिक्षको की पदोन्नति के दौरान कुछ संभागो में यह बात सामने आई थी कि मिडिल स्कूल की पदोन्नति के सेटअप में ही अतिशेष शिक्षकों की संख्या सबसे अधिक थी। इसमें से अधिकांश शिक्षक ऐसे थे जिन्होंने दस दस दिन का प्रशिक्षण लिया था। जिसकी वजह से सेटअप में पद होते हुए भी उन स्कूलों में पदोन्नति नही की गई थी। आज भी बहुत से ऐसे शिक्षक विषय विशेषज्ञ न होते हुए भी मिडिल स्कूलों में पढ़ा रहे है।
सरगुजा और बस्तर में मिडिल स्कूलों में विषय बाध्यता समाप्त करने की क्रोनोलॉजी को नई सरकार में बैठे व्यवस्था के जिम्मेदार लोग और इस सरकार के चिंतक स्वयं सेवक संघ से जुड़े पदाधिकारी चिंतन करे तो व्यवस्था अब भी पटरी पर आ सकती है। जिसकी वजह से प्रदेश के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली वर्तमान पीढ़ी पर आज और कल होने वाला नुकसान कुछ काम हो सकता है।