Teacher Promotion।बिलासपुर । लगता है जैसे छत्तीसगढ़ सरकार के पदोन्नति /संशोधन/ निरस्तीकरण मामले का गाइडेड मिसाइल दिशाहीन हो गया है। सारा मामला न्यायालय के फैसले और सरकार के निर्णय पर निर्भर करता है कि न्याय किसके हिस्से में आएगा।
लेकिन इन सब खबरों में मातृशक्ति प्रधान तीज त्यौहार के बीच में पदोन्नति के बाद संशोधन का लाभ ले चुकी महिलाओं के लिए यह त्यौहार मानसिक रूप से पीड़ा दायक रहा है।इस संशोधन निरस्तीकरण ने महिला सशक्तिकरण , महिला शिक्षकों की शाला में भूमिका, कामगार महिलाओं की समस्याएं उनकी पारिवारिक जिमेदारियो पर भी ध्यान आकर्षित किया है।
शिक्षक पदोन्नति संशोधन मामले के ताजा घटना क्रम में इस तीज त्यौहार में सरगुजा से बस्तर तक की बहुत सी महिला शिक्षक पहली बार अपनी सेवा के दौरान अपने कार्य क्षेत्र, परिवार और न्यायालय तक की दौड में तीन ओर से घिर गई है।करना क्या है समझ नही आ रहा है। आगे क्या होगा यह भी तय नहीं है।
शासन की वन टाइम रिलेक्सेशन की सौगात इनके लिए अब आफत बन गई है। यही स्थिति उनके लिए भी हैं जिनका संशोधन नहीं हुआ या जिन्हे मनपसंद जगह नहीं मिली फिर भी उन्होंने ज्वाइन कर लिया है।
अरसे बाद हुई सहायक शिक्षकों की शिक्षक और शिक्षकों की मिडिल स्कूल के प्रधान पाठक के पद पर पदोन्नति संशोधन मामले में उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़ में राहत नहीं मिलने की वजह से बड़ी संख्या में शिक्षक पदोन्नति और संशोधित संस्था के बीच में अटक गए । अर्थात नो वर्क की स्थिति में है। तीन हफ्तों का लंबा समय उसके बाद भी अगली तारीख का इंतज़ार है।
जरा बारीकी से समझा जाए तो शासन की ओर से पदोन्नति के बाद हुए संशोधन की रद्द की गई सूची में महिला शिक्षकों की संख्या भी अधिक है। एक तरफ भार मुक्त हो चुकी बहुत सी महिला शिक्षकों की न्यायालय के यथा स्थिति के निर्णय की वजह से स्थिति ऐसी बनी की बहुत सी महिला शिक्षक भी स्कूल नहीं जा पा रही है ।
शिक्षा व्यवस्था तो प्रभावित हो ही रही है इसके अलावा मिडिल स्कूल की छात्राओं को बहुत से व्यावहारिक दिक्कतें आनी शुरू हो सकती है ।जहां कोई और महिला शिक्षक अब नहीं है।
आम मान्यता है की पुरुष शिक्षकों की जगह छात्र-छात्राएं महिला शिक्षकों से अधिक स्नेह करते है। महिला शिक्षक अक्सर छात्रों और समाज के लिए महिला सशक्तिकरण के प्रति आदर्श और प्रेरणा स्त्रोत होती है वे शिक्षा सामर्थ्य, और नैतिकता के मामले में अच्छे उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।
खासकर उन जगहों पर जहां महिलाएं विशेष रूप से शिक्षा के प्रति रुझान नहीं दिखाती हैं। उनका संघर्ष और शिक्षक के रूप में सेवा देना आत्म निर्भरता की ओर सफलता का एक पैमाना छात्राओ के बीच सदा उपस्थित रहता है।
देखा जाए तो महिला शिक्षक कार्य क्षेत्र के अलावा परिवार के प्रति जिम्मेदारियों की भूमिका समाज में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। ये अपने पेशेवर जीवन और परिवार के बीच संतुलन बनाने के लिए कई कठिनाइयों का सामना करती है।
ये महिलाएं अब न केवल अपने परिवार की आवश्कता प्राप्ति करने के लिए काम करती हैं, बल्कि वे अपने सपनों को पूरा करने के लिए भी अपने पेशेवर जीवन को महत्वपूर्ण मानती हैं।
इस सारी कायवाद में महिला कर्मचारी के साथ-साथ, उनके परिवार के जिम्मेदारियों का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। परिवार के सदस्यों को महिला कर्मचारी के समर्थन और समझ की आवश्यकता होती है। जिससे वह अपने पेशेवर और परिवारिक जीवन के बीच संतुलन बना सकें। इसके लिए उन्हें परिवार को भी समय देना पड़ता है। यही वजह है शिक्षक पदोन्नति में पदांकन के बाद संशोधन में महिलाओं की संख्या भी अधिक थी।
क्योंकि उन्हें अपने परिवार की जिम्मेदारियां का ध्यान था। बहुत सी महिलाओ को उच्च पद पर हुई पदोन्नति इनके वर्तमान व्यवस्थित कार्यक्षेत्र से 50 से 200 किलोमीटर दूर हुई हर मिडिल स्कूल तक निवास स्थान से परिवहन सुविधा का ना होना भी एक बड़ी समस्या थी।
बहुत सी महिलाओं के लिए यह पदोन्नति स्थानांतरण का लाभ भी लेकर आई। बहुत से लोगों ने अपना तबादला इसलिए भी नहीं कराया क्योंकि सीनियरिटी लॉस होने का भी उन्हें खतरा था।इसीलिए भी कई सालों से एक जगह पर एक ही पद में सेवा दे रही थी । उन्हें उम्मीद थी कि इस पदोन्नति के बहाने प्राथमिक स्कूल के बहुत सी महिला शिक्षक अपने निवास क्षेत्र के करीब उच्च पद पर आने का भी एक रास्ता देख रही थी। इस शिक्षक पदोन्नति और इस संशोधन में भी ऐसे कई बहुत कुछ रहस्य छुपे हुए थे।माना जाए कि अगर यह घोटाला है तो किसने पैसा दिया… किसने पैसा लिया..? मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर शासन की थ्योरी पर उच्च न्यायालय भविष्य में क्या निर्णय लेगा इस पर फिलहाल कयास ही बने हुए हैं।
अब लग रहा है कि आचार सहिंता लगने के दो तीन हफ्ते पहले छत्तीसगढ़ सरकार का पदोन्नति संशोधन निरस्तीकरण मामले का गाइडेड मिसाइल दिशाहीन हो गया है। इस दिशा हीन मिसाइल ने करीब दो हजार से अधिक स्कूलों में शिक्षकों की कमी कर दी है। शिक्षा व्यवस्था प्रभावित हो रही है। अब आलम यह है कि सवाल तो सरकार की कार्यप्रणाली ही उनके अपने ही उठा रहे है। अब इस मामले को वापस लेने की मांग कर रहे है।
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