Women Day Special।चिकित्सक बनने के बाद युवा आमतौर पर समाजसेवा से दूर भागने लगते हैं, जबकि पटना के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) से मास्टर ऑफ मेडिसिन कर चुकीं एक महिला चिकित्सक गांवों और स्कूलों में पहुंचकर महिलाओं और बच्चियों को एनीमिया (खून की कमी) से बचने का पाठ पढ़ा रही हैं।
Women Day Special।यही नहीं छुट्टियों के दिनों में सुदूरवर्ती गांवों में पहुंचती हैं, मुफ्त चिकित्सा शिविर भी लगाती हैं और मुफ्त में दवाईयां भी बांटती हैं। पटना एम्स से एमडी कर चुकीं डॉ. सरिता आज गांवों में ‘डॉक्टर दीदी’ के रूप में चर्चित हैं।
बातचीत में मुजफ्फरपुर के चैनपुर गांव की रहने वाली डॉ. सरिता बताती हैं कि बचपन में मैंने गांव में हेल्थ क्राइसिस को झेला है तभी से इन गांवों में कुछ करने की तमन्ना जगी थी। ईश्वर की कृपा और लोगों के आशीर्वाद से जब डॉक्टर बन गई तो उन सपनों को साकार करने में लगी हूं और गांव पहुंच जाती हूं।Women Day Special
जनरल फिजिशियन डॉ. सरिता अब तक 100 से ज्यादा गांवों में जाकर महिलाओं और बच्चियों की न केवल एनीमिया की जांच कर चुकी हैं, बल्कि, मुफ्त दवाईयां भी बांट चुकी हैं। वह बताती हैं कि आज बिहार की दो तिहाई महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं। जब गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित होती हैं, तो आने वाली उनकी संतान भी इससे पीड़ित होंगी। इस कारण पीड़ितों की संख्या बढ़ती जाती है।Women Day Special
डॉ. सरिता स्कूलों में भी जाकर बच्चियों को एनीमिया के प्रति जागरूक करती हैं। आयरन और फोलिक एसिड की दवाइयां बांटती हैं। वह कहती हैं कि इस बीमारी का सबसे बड़ा कारण जागरूक नहीं होना तथा खान-पान में लापरवाही है।Women Day Special
डॉ. सरिता रोहतास और कैमूर की पहाड़ियों पर बसे गांवों तथा दियारा क्षेत्र के सुदूरवर्ती गांवों तक पहुंच चुकी हैं, जहां सही अर्थों में सड़क तक नहीं है। गांवों में वह मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को स्वच्छता का भी पाठ पढ़ाती हैं। यही नहीं, गांवों तक पहुंच बनाने के लिए वह मेडिकल कैंप लगाती हैं, जिसमें कई अन्य डॉक्टर भी शामिल होते हैं।
बातचीत के दौरान वह बताती हैं कि बिहार के ग्रामीण क्षेत्र के लोग आमतौर पर बीमारी के प्रति ज्यादा जागरूक नहीं हैं, बीमारी बढ़ जाने के बाद ही बीमारी के प्रति संवेदनशील होते हैं। हमारी कोशिश रहती है कि बीमारियों को शुरू में ही पहचान कर मरीजों को बता दिया जाए, ताकि वह बीमारी शुरू में ही खत्म हो जाए।Women Day Special
उन्होंने बताया कि गांव में जिस किसी मरीज का इलाज करती हैं, उसके संपर्क में भी वह रहती हैं। वह बताती हैं कि सोमवार से लेकर शनिवार तक ऑन ड्यूटी रहती हैं और रविवार छुट्टी के दिन ग्रामीण इलाकों में पहुंच जाती हैं।
सही अर्थों में डॉ. सरिता ऐसे लोगों के लिए तो एक आदर्श स्थापित कर ही रही हैं, जो अभी एमबीबीएस की पढाई कर रहे हैं, उन महिलाओं के लिए भी प्रेरक बन रही हैं, जो गांव पहुंचने में संकोच करती हैं। वह कहती हैं कि किसी मरीज का गांवों में इलाज करके काफी संतोष मिलता है। नौकरी के एवज में जो वेतन मिलता है, उसका 50 फीसदी हिस्सा वह लोगों के मुफ्त इलाज पर खर्च कर देती हैं।