विजेन्द्र अजनबी
मानसून का मौसम है. यह अलग बात है कि समय पर या समय पूर्व दस्तक देता मानसून, जाने कहाँ अटका पड़ा है. उमस भरी रातों से लगता है, मानो शॉर्ट ब्रेक लेकर गरमी लौट आई है. खैर, यह मौसम है, जहां हरियाली हर तरफ पंख पसारे है, और साथ ही पसरे है वृक्षारोपण के अभियान. कुछ दिनों से सोशल मीडिया में सीड बॉल के चित्र और वीडियो क्लिप भी चल रहे हैं. आसान है, बस मिट्टी के लड्डू बनाओ, बीज डालो और फेंक आओ. लगता है, जंगल की कटाई की भरपाई यूं चुटकियों में हो जाएगी. पर सवाल अब भी बचा हुआ है, वृक्षारोपण की तरह, लगायेंगे कहाँ? सीडबॉल फेकेंगे कहाँ? जंगल या तो पहले से घना है, या तो उजाड़ है. और उजाड़ है तो इसलिए कि उन्हें बचाया नहीं गया.
पर अच्छा है कुछ नहीं से कुछ करना. सीडबॉल के लिए हाथ मिट्टी से सानना या साथ बैठ बॉल बनाते हुए कुछ गुनगुनाना, और बाद में उस छिड़कने, दूर चले जाना. मुझे भी सीडबॉल का आईडिया बहुत पसंद आया था. सीड बॉल के प्रयोग को समझने की मेरी यात्रा बहुत पुरानी नहीं है.
जापानी कृषि-विचारक मासानोबु फुकोओका के ‘वन-स्ट्रॉ क्रांति’ के विचार ने खेती को विषरहित और प्राकृतिक करने के प्रयोगों को बढ़ावा दिया. मध्य-प्रदेश में होशंगाबाद के पास राजू टाईटस अपने फार्म में इस तरह के प्रयोग करते थे, जहाँ बगैर जोते-रोपे अनाज की फसले उगाई जाती थी. बीजों को छिड़कने से उन्हें कीट, दीमक, चूहे, गिलहरी खा लिया करती थी. अतः, उन्होंने, बीजों को मिटटी की गेंदों के आवरण में छिपा कर छिड़कना शुरू किया.
यह विचार मुझे जंगल में नए पौधे उगाने के लिए अच्छा लगा, जहाँ एक बार पौधे लगाने के बाद, कोई देखने भी नहीं जाता. सरगुजा की एक संस्था के साथ हमने बड़े पैमाने पर सीड बॉल बनाकर छिड़कने का काम किया. पहले साल परिणाम उत्साहजनक रहे. लोगों ने सैकड़ों नन्हे पौधों को जंगल में उगते पाया. अगले साल तो तोरई, लौकी, करेला, सीताफल, पपीता आदि सब्जी के बीजों के सीड बॉल बड़े पैमाने पर छिड़के गए.
गाँव के लोगों का मानना था, इससे जंगल नहीं बनेगा तो क्या हुआ, बंदर, हाथी जैसे जानवरों को खाने को मिलेगा तो, वे गाँव में कम आएंगे.
हालांकि, हमें समझ आया कि ऐसे बेतरतीब कारनामों से जंगल में पुनर्जन या रिजनरेशन संभव नहीं. सीडबॉल भी तभी प्रभावी होगा, जब उससे उगने वाले नन्हे पौधों की सुरक्षा होगी. बाड़बंदी के बगैर या चराई के लिए खुला जंगल सीडबॉल छिड़कने के लिए मुफीद नहीं है.
सीड बॉल बनाना तो ठीक है लेकिन उसे ठीक ढंग से सुखा कर रखना भी एक कला है. मनमाने चुने बीजों से बने सीड बॉल कुछ ऐसे पौधे उगाते है, जिनका जंगल के साथ सामंजस्य बिठाना मुश्किल होता है. इसीलिए ऐसे बीजों का चयन बहुत महत्वपूर्ण होता है, जिनके सीडबॉल स्थानीय ईकोलॉजी को बिगाड़े नहीं.
जंगल में अलग-अलग समय में अलग-अलग तरह के बीज गिरते हैं, उनको सहेजना और सही समय पर सीड बॉल बनाने के लिए इस्तेमाल करना भी एक महत्वपूर्ण कला है.
सीड बॉल जंगल के पुनर्जनन के लिए प्रोपेगेशन तकनीक का अहम हिस्सा है.
इसमें बीजों से पौध तैयार करना और फिर उनका रोपण करना, पौधों से कटिंग लगाना, शाखों की प्रूनिंग करना, शाखों में गुट्टी बाँधना जिसे एयर लेयरिंग भी कहते हैं, आदि तकनीकें शामिल है. लेकिन सीड बॉल सबसे सस्ती, सबसे सुलभ और कारगर तकनीक है. यदि अधिक लोग इसे मिलकर करें तो पुनर्जनन संभव है.
सीड बॉल बनाने के लिए चिकनी मिटटी का इस्तेमाल होना चाहिए. इसमें एक अंश रेत और एक अंश गोबर खाद मिलाने से अच्छी बॉल बनती हैं. कुछ लोग थोड़ी मात्र में गौमूत्र भी मिलाते है, ताकि उसकी उर्वरा शक्ति तेज हो, और बीज कीटों से भी सुरक्षित रहे.
मिट्टी के गोले के बीच बीज भरने के बाद उसे इस तरह गोल करना चाहिए कि सूखने के बाद वह चटके नहीं. छाँव में सूखे हुए बॉल, जूट बैग या बारदानों में इतनी सावधानी से भरना चाहिए कि वे वजन से टूटे ना, और उन्हें तब तक किसी सूखी जगह में सुरक्षित रखा जाना चाहिए जब तक की बारिश की शुरुआत ना हो जाए.
सीड बॉल बनाने का काम सामूहिक रूप से होना चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे शादी में लड्डू बनाने का होता है. बड़ा रुचिकर लगता है जब महिलाएं एक घेरे में, ठंडी छांव के नीचे बैठ, अपने लोक गीत गाते हुए यह सीड बॉल बनाती हैं.
बीजों का चयन एक बहुत महत्वपूर्ण मसला होता है. कुछ ऐसे बीज होते हैं, जिनमें फलों से पककर अलग होने और फिर अंकुरित होने के बीच इतना कम समय होता है कि उनके सीड बॉल नहीं बन सकते है.
जैसे आम, जामुन व लीची, जो गर्मियों में पकते है और बरसात पाकर उगने लगते है. इन बीजों में सुप्तावस्था नहीं होती इसलिए प्रकृति ने उनको किसी आवरण में छुपकर रहना नहीं सिखाया, तो ऐसे बीजों से सीड बॉल नहीं बनाया जा सकता. नीम भी ऐसे ही गुणों वाला फल है. जंगल में कुछ फल या बीज सर्दियों के वक्त मिलने शुरू हो जाते है. इनको छांटना और इसमें से सबसे अच्छे अंकुरण के गुण वाले बीजों को जमा करना और इन्हें ऐसे सहेज के रखना कि न तो वे सड़े और ना ही अंकुरित हो, बहुत जरूरी होता है. जंगल पर आश्रित समुदाय इस कौशल में पारंगत होते हैं.
जंगल की प्रकृति से मेल खाते बीजों को ढूंढ लेना भी एक कला है. वे ही लोग ऐसा कर पाते हैं, जो अपने आस पास के जंगलों की प्रकृति को बेहतर ढंग से समझते हैं.
जैसे, यह जान लेना कि कौन-सी प्रजाति के वृक्ष पिछले वर्षों में कम हो गए हैं, या वह कौन-सी प्रजाति के वृक्ष हैं, जिनके न होने से पक्षियों और वन प्राणियों का पलायन हो गया है. जंगल में ऐसे बीजों का छिड़काव नहीं होना चाहिए जो आक्रामक और विलायती प्रजाति को बढ़ा कर स्थानीय पारिस्थितिकी को बिगाड़ती हैं.
आपने देखा होगा किसी बड़े वृक्ष के नीचे बीज गिरकर, ढेर सारे नन्हे पौधे बन जाते हैं. लेकिन, उस बड़े पेड़ के नीचे अधिकतम कितने पौधे आगे चलकर पेड़ बन सकते हैं? तो, जरूरत है, उन्हे उगने-बढ़ने के लिए विस्तार देना.
जैसे चिड़िया, बीजों को एक जगह से दूसरी जगह प्रसारित करती है, जिससे, हमारे घरों के आसपास की दीवारों से लगकर, कभी नीम, पीपल और बरगद के पौधे उग आते हैं. उसी तरह हमारे छोटे प्रयास से सीड बॉल के जरिए एक बीज, कहीं दूर की यात्रा करके उस प्रजाति का फैलाव कर सकता है.
यदि आप शहरी हैं, और गर्मियों में जब घूमने जाते हैं, तो सड़क किनारे जैसे किसी चाय गुमटी या ढाबे में रुकते हैं, उसी तरह किसी जंगल से गुजरते हुए, सड़क किनारे थोड़ा ठहर कर बीज इकट्ठा कर सकते हैं. आपको, जरूर बहुत से बीज, जैसे करंज, गुलमोहर, काठ-बादाम के पके फल या बीज मिल जाएंगे. आप उन्हें घर ला कर, खाली वक्त में सीड बॉल बना लें और जब बारिश के वक्त फिर कहीं की यात्रा करें तो चलती गाड़ी से आप उन्हें दूर दूर तक उछालकर फेंक सकते है.
अगर उनकी किस्मत अच्छी है तो आपके 100 में से 40 गेंद, नन्हे पौधे बन सकते हैं, और उनमें से दस आगे चलकर बड़े पेड़. दस फीसदी सफलता बहुत है, यदि इस काम को हर सक्षम परिवार करने लगे.
बहुत सारी जगह, सड़क से लगे खेत के बीच में थोड़ी गहरी नालियां या गड्ढे होते हैं जहां उगे पेड़ मवेशियों से भी बच सकते हैं और इंसानों से भी.
कुछ जगह तो सीधे गहरी घाटियां होती हैं और कुछ जगह सड़क से किसी निजी चारदीवारी, कैम्पस या फेन्सिंग के मध्य रिक्त स्थान, जहाँ वृक्षों के पनपने की गुंजाइश जिंदा रहती है. आपके शहर में कई वीरान पड़े कैंपस हैं, रेलवे की जमीन है, कब्रिस्तान है, बंद पड़ी फैक्ट्रियां हैं, तो उनके अहाते में भी आप सीड बॉल फेंक सकते हैं. आपको उस जगह पर अनाधिकृत प्रवेश करने की जरूरत भी नहीं है.
यदि आपको मिट्टी की गेंदें बनाना अच्छा नहीं लगता, तो घर में और पड़ोस से आप पुरानी जुराबें मांग लें और उसमें कुछ मिट्टी या कोकोपीट जैसे, अंकुरण को बढ़ावा देने वाले माध्यम को भरकर, उसमें बीज डालकर, गांठ लगा ले. अब, इन्हें ऐसी ही जगह फेंक आएं. हो सकता है आपका प्रयास, उस वीरान पड़े जमीन के टुकड़े, जहां सिर्फ कचरा उगा हो, को देशी प्रजाति के पेड़ों से आबाद कर दे.
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