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छत्तीसगढ़ में डीएपी, यूरिया की कमी से जूझ रहे किसान

रायपुर। संवाददाताः छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के खाद की व्यवस्था सुनिश्चित करने के सारे निर्देश धरे रह गये. उनके बार-बार के दुहराने के बाद भी छत्तीसगढ़ के कई जिले डीएपी और यूरिया खाद की कमी से गुजर रहे हैं.

किसान खेती का काम छोड़ कर सहकारी समितियों के चक्कर लगा रहे हैं, फिर भी उन्हें खाद नहीं मिल रहा है.

दूसरी ओर अधिकारी प्रदेश में खाद की कमी नहीं होने की बात कह रहे हैं, लेकिन समितियों के गोदाम खाली हैं और किसान वहां से बैरंग ही लौट रहे हैं. मजबूरी में किसानों को बाजार से खाद खरीदना पड़ रहा है.

मौसम की बेरूखी से किसान पहले ही परेशान हैं, अब उनके सामने खाद नहीं मिलने का नया संकट आ गया है. पिछले दो दिनों से प्रदेश के कुछ हिस्सों में अच्छी तो कुछ में छिटपुट बारिश हो रही है. बारिश होने से कृषि कार्यों में गति आने की आस किसानों में जगी है.

खेतों में पानी भरने के बाद रोपा और बियासी के काम में किसान जुट गए हैं. रोपा और बियासी के समय ही किसानों को सबसे ज्यादा डीएपी खाद की जरूरत पड़ती है. लेकिन हाथ में खाद नहीं होने से किसान परेशान हो रहे हैं.

काम छोड़ समितियों के लगा रहे चक्कर

किसानों ने बताया कि समितियों में पिछले 10-15 दिनों खाद नहीं है. वे रोज-सुबह शाम समिति में जाकर खाद की जनाकारी ले रहे हैं.

किसानों का कहना है कि कई समितियों में डीएपी खत्म हुए काफी दिन हो गया हैं. किसानों द्वारा दबाव बनाने पर कुछ समितियों में डीएपी का खेप भेजा गया लेकिन मात्रा कम होने के कारण वह हाथों-हाथ बिक गया. डीएपी का मसला सुलझा भी नहीं है कि यूरिया मिलना बंद हो गया.

हमने कई ज़िलों में समिति प्रबंधकों से बात की. उनका कहना है कि उन्होंने मांग पत्र बना कर भेज दिया है, फिर भी खाद नहीं भेजा जा रहा है. खाद आते ही किसानों को बांट दिया जाएगा.

प्रबंधकों का कहना है कि कई समितियों के पास गोदाम की व्यवस्था नहीं है. गोदाम नहीं होने के कारण भंडारण नहीं हो पाता. इसी वजह से किसान खाद के लिए भटकते हैं.

लक्ष्य का 70 प्रतिशत खाद वितरण

चालू खरीफ सीजन के लिए किसानों को 13 लाख 68 हजार टन खाद वितरण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. जिसमें यूरिया 4 लाख 56 हजार 319 टन, 2 लाख 76 हजार टन डीएपी, एक लाख 13 हजार 544 टन एनपीके, 33 हजार 372 टन पोटाश तथा एक लाख 15 हजार 590 टन सुपर फास्फेट शामिल है.

वहीं किसानों को अब तक नौ लाख 57 हजार टन से अधिक उर्वरक का वितरण भी किया जा चुका है. जो लक्ष्य का 70 प्रतिशत है.

छत्तीसगढ़ में खाद की कमी नहीं- धुरंधर

रायपुर में कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक रोशन धुरंधर का कहना है कि प्रदेश में खाद की कमी नहीं है. पर्याप्त मात्रा में खाद का मंडारण है.

उन्होंने दावा किया कि मार्फेड से प्राथमिक सहकारी समितियों तक पहुंचने में जरूर विलंब हो सकता है. क्योंकि डबल लॉक सिस्टम है. पहले रेक में खाद आएगा, वहां से मार्फेड फिर समितियों तक छोड़ा जाता है. जिसे डबल लॉक कहते हैं.

उन्होंने सीजी ख़बर से कहा कि इस साल 3 लाख 40 हजार मिट्रिक टन डीएपी का टारगेट रखा गया था, जिसमें से 2 लाख 76 हजार मिट्रिक टन का मंडारण किया गया है. 2 लाख 31 हजार मिट्रिक टन का किसान अभी तक उठाव कर चुके हैं. 45 हजार मिट्रिक टन खाद की और मांग की गई है. जिसमें से 30 हजार मिट्रिक टन अभी आना है.

उन्होंने कहा कि डीएपी के विकल्प के तौर पर एनपीके समितियों में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है. पिछले साल 60 हजार मिट्रिक टन एनपीके बेचा गया था, लेकिन इस साल उससे दोगुना 120 हजार मिट्रिक टन एनपीके का उठाव अभी तक किसान कर चुके हैं.

रोशन धुरंधर ने कहा कि अभी भी हमारे पास 158 हजार मेट्रिक टन एनपीके भंडारण में है.

क्या है एनपीके

एनपीके को डीएपी का विकल्प माना जाता है. N (नाइट्रोजन) P (फॉसफोरस) K (पोटैशियम) के मिश्रण के कारण इसे एनपीके कहा जाता है.

विभाग का कहना है कि एनपीके का परिणाम डीएपी से अच्छा है क्योकि एनपीके संतुलित उर्वरक है.

डीएपी में नाइट्रोजन और फास्फोरस का मिश्रण होता है.

वहीं एनपीके में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम का मिश्रण कर बनाया गया है. इसमें पौधों को बढ़ने के लिए तीन आवश्यक पोषक तत्व शामिल है. जो तना को मजबूत करने के साथ कंसा भी अधिक देता है. कीट-पतंगों का प्रकोप भी कम आता है.

एनपीके खाद तीन तरह के अनुपात में आते हैं. ये हैं 18:18:18 , 19:19:19 तथा 12:32:16:.

इसमें पहला अंक नाईट्रोजन दूसरा अंक फास्फोरस तथा तीसरा अंक पोटेशियम की मात्रा को दर्शाता है.

डीएपी कम लेकिन एनपीके पर्याप्त- बघेल

दुर्ग डीएमओ भूमिक बघेल का कहना है कि दुर्ग में खाद की कमी कहीं भी नहीं हैं. यहां के सभी समितियों में स्थिति ठीक है. डीएपी जरूर कम आया है. लेकिन डीएपी की प्रतिपूर्ति के लिए एनपीके पर्याप्त मात्रा में है. किसानों को एनपीके बांटा जा रहा है.

दुर्ग जिले में अभी तक 7 हजार 7 सौ मेट्रिक टन डीएपी बेचा जा चुका है. 6 सौ मेट्रिक टन डीएपी और आया है जो एक-दो दिन में बिक जाएगा.

पिछले साल 8 हजार 9 सौ 90 मेट्रिक टन डीएपी आया था. पिछले साल की तुलना में इस साल 6 हजार 50 टन मैट्रिक टन कम आया है. डीएपी की और मांग की गई है. डीएपी की कमी को एनपीके ने पूरा कर दिया है.

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