पितृपक्ष में पितरों की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध किया जाता है। 15 दिनों के पितृपक्ष का समापन महालया अमावस्या पर माना जाता है। पितृपक्ष के अंतिम दिन महालया अमावस्या आती है।
पितृपक्ष में पितरों की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध किया जाता है। 15 दिनों के पितृपक्ष का समापन महालया अमावस्या पर माना जाता है। पितृपक्ष के अंतिम दिन महालया अमावस्या आती है। इस दिन को लेकर मान्यता है कि प्रत्येक वर्ष इसी दिन मां दुर्गा धरती पर आती हैं। महालया से ही दुर्गा पूजा उत्सव का आरंभ हो जाता है।
महालया को सर्व पितृ अमावस्या के रूप में भी जाना जाता है। महालया अमावस्या पर पवित्र नदी में स्नान कर पूर्वजों का तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध कर उनकी विदाई की जाती है। महालया अमावस्या के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर उनको दान दक्षिणा दें। ऐसा करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। महालया अमावस्या के दिन पितरों का दूध, तिल, कुशा, पुष्प मिश्रित जल से तर्पण करें। पूर्वजों के निमित्त उनकी पसंद का भोजन बनाकर कौए, गाय, कुत्ते को दें। अमावस्या पर उन पितरों का तर्पण करें जिनकी मृत्यु तिथि की जानकारी न हो। सर्वपितृ अमावस्या पर पितरों का श्राद्ध कर्म करने के साथ उन्हें विधिवत तरीके से विदा किया जाता है। इस दिन विधि विधान से पितरों का तर्पण करने से उस कर्म से मुक्ति मिल जाती है जो पूर्वजों को मुक्ति प्राप्त करने से रोक रहा है। इस दिन अपने सभी पूर्वजों का स्मरण करें। जिन पितरों के निधन की तिथि याद न हो तो सर्व पितृ अमावस्या के दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है। इस दिन शाम के समय मां दुर्गा अपनी योगनियां और श्रीगणेश, कार्तिकेय के साथ धरती पर आती हैं। महालया के दिन मां दुर्गा का सच्चे मन से आह्वान करें।