बिलासपुर–आत्महत्या से पहले जिद्दी बहू ने कुछ ऐसा प्रबंध किया कि बूढ़ी सास को बेदाग साबित करने में 24 साल लग गए। आश्चर्य की बात तो यह है कि खुद को बेदाग साबित करने की जद्दोजहद करने वाला बूढ़ा श्वसुर फैसला आने से तीन साल पहले ही दुनिया छोड़ चुका है। कोर्ट ने बताया कि दोनो पर लगाया गया दहेज प्रताड़ना का आरोप झूठा है। मृतका जिद्दी स्वभाव और मनमर्जी करने वाली थी। फैसला सुनकर बुढ़ी आंख डबडबा गयी। उसे अब इस बात का दुख जरूर है कि बेदाग साबित होने से तीन साल पहले बुजुर्ग पति की मौत हो चुकी है।
रायपुर निवासी शोभा और सुधाकर राव के पुत्र सतीश रावन की शादी 16 जनवरी 2001 को मृतका कामिनी के बीच दो परिवार के सहमति से हुई। शादी के करीब 6 महीने बाद 14 अगस्त 2001 को कामिनि ने टाटानगर नागपुर पैंसेजर के सामने कूद कर आत्महत्या कर ली। छानबीन के दौरान जानकारी मिली कि आत्महत्या के पहले पहले मृतका ने एक सुसाइड नोट भी छोड़ा है।
दरअसल मायके नहीं छोड़ने से नाराज नव व्याहता ने आत्महत्या से पहले सुसाइड नोट में लिखा कि सास और ससुर रोज गाली देते है। कहते है कि तुम्हारे मा बाप की गलती का सजा अब तुम भुगतोगे। मैं जब से इस घर में आई हूं तब से आज तक मुझे सभी ने गाली ही दी है। कल मेरे बाबा ने हाथ पैर छूकर माफी मांगी थी…लेकिन इन लोगों का गुस्सा नहीं उतरा। इसलिए मैं यह कदम उठाने पर मजबूर हूं। अगर आप लोगों को मेरी लाश मिल जाए तो कृपा करके मेरे घर वालों को दे देंगे। पत्र लिखने के बाद मृतका कामिनि ने ट्रेन के सामने कूदकर आत्महतया कर ली।
कामिनि के हाथों लिखे पत्र के आधार पर पुलिस ने बुजुर्ग सास-ससुर के खिलाफ दहेज हत्या का अपराध दर्ज करने के बाद अदालत में मुकदमा पेश किया। विचारण न्यायालय ने अप्रैल 2002 में दोनों को धारा 304 (बी) दहेज हत्या के आरोप में 10 वर्ष की सजा सुनाई। कोर्ट का फैसला आने के बाद पति पत्नी ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
24 वर्ष बाद हाई कोर्ट ने अपील पर निर्णय सुनाया है। गवाह दस्तावेज और मृतका के माता पिता के बयान में हाईकोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता ने कभी भी दहेज की मांग नहीं की है। मृतका जिद्दी स्वभाव मनमर्जी की मालिक थी। हाईकोर्ट ने फैसला देते समय बुजुर्ग श्वसुर का नाम अपील से बाहर निकाला। क्योंकि बुजुर्ग श्वसुर की मौत मुकदमा लंबित रहने के दौरान साल 2021 में हो चुकी है। कोर्ट ने सास को सभी आरोप से दोषमुक्त कर दिया। फैसला आने से दहेज की मांग कर बहू की हत्या का माथे पर लगा कलंक 24 वर्ष बाद धुल गया। फैसला से बूढी सास की आंखें छलछळा गयी।