रायपुर। संवाददाताः छत्तीसगढ़ सरकार ने कोरोना काल के दौरान दवा और उपकरणों की खरीदी के घोटाले में चिकित्सा शिक्षा विभाग के तत्कालीन अतिरिक्त संचालक डॉ. निर्मल वर्मा को निलंबित कर दिया है.
डॉ. वर्मा के खिलाफ 2 करोड़ 65 लाख 29 हजार 296 रुपए की वित्तीय अनियमितता के आरोप थे.
इस घोटाले की की जांच के लिए 5 जनवरी 2022 को चिकित्सा महाविद्यालय रायपुर के फिजियोलाजी विभाग के प्राध्यापक डॉ. सुमित त्रिपाठी की अध्यक्षता में चार सदस्यीय जांच कमेटी बनाई गई थी.
समिति ने 18 अगस्त 2022 को अपनी रिपोर्ट चिकित्सा शिक्षा संचालक को सौंपी थी.
चिकित्सा शिक्षा संचालक ने जांच रिपोर्ट के आधार पर अपना प्रतिवेदन 2 सितंबर 2022 को सचिव चिकित्सा शिक्षा विभाग को सौंप दिया था, लेकिन सचिव की ओर से इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई.
अब करीब दो साल बाद इस घोटाले की फाइल एक बार फिर खुली और दोषी तत्कालीन अतिरिक्त संचालक के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई की गई है.
मामले की जांच रिपोर्ट के मुताबिक, डॉ. निर्मल वर्मा को 6 अप्रैल 2020 को संचालनालय चिकित्सा शिक्षा की ओर से वित्तीय अधिकार सौंपे गए थे.
इसके तहत डॉ. वर्मा संचालक के नोशनल अनुमोदन के बाद वित्तीय अधिकार का उपयोग कर सकते थे. किंतु डॉ. वर्मा ने लैब सामग्री, उपकरण आदि की खरीदी में छत्तीसगढ़ भंडार क्रय नियमों का पालन नहीं किया.
छत्तीसगढ़ भंडार क्रय नियमानुसार एक लाख रुपए से अधिक की खरीदी पर खुली निविदा आमंत्रित की जानी चाहिए थी.
लेकिन डॉ. वर्मा ने कोटेशन के आधार पर ही 2 करोड़, 65 लाख, 29 हजार, 296 रुपए के खरीदी के आदेश जारी कर दिए.
इन खरीदी आदेशों के लिए प्रशासकीय अनुमोदन भी नहीं लिया गया.
डॉ. निर्मल वर्मा को डीकेएस सुपर स्पेशलिटी हास्पिटल, रायपुर का भी वित्तीय अधिकार अस्पताल अधीक्षक के नोशनल अनुमोदन के बाद दिया गया था, लेकिन चिकित्सा शिक्षा विभाग ने नर्सेस काउंसिलिंग में किसी प्रकार की खरीदी के लिए वित्तीय अधिकार उन्हें नहीं दिया था.
इसके बाद भी डॉ. वर्मा ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए फर्नीचर, कंप्यूटर आदि सामान के लिए 7 लाख 39 हजार 179 रुपए के क्रय आदेश जारी किए.
छत्तीसगढ़ रजिस्ट्रार नर्सेस काउंसिल के नियमानुसार 50 हजार रुपए से अधिक के व्यय पर राज्य सरकार से पूर्व अनुमोदन लेना अनिवार्य है.
परंतु डॉ. निर्मल वर्मा ने किसी प्रकार के अधिकार न होने के बावजूद 7 लाख 39 हजार 179 रुपए के क्रय आदेश जारी किए.
डीकेएस सुपर स्पेशलिटी हास्पिटल के अधीक्षक ने डा. निर्मल वर्मा से क्रय आदेशों से संबंधित दस्तावेजों की मांग की थी, लेकिन उनके द्वारा कोई भी दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए गए.
जांच समिति ने चिकित्सा महाविद्यालय रायपुर के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. आशीष कुमार सिन्हा के 2019 एवं 2020 के गोपनीय प्रतिवेदनों के अवलोकन के बाद पाया कि डा. निर्मल वर्मा के द्वारा उक्त दोनों वर्षों में प्रतिकूल टिप्पणी की गई है.
जबकि इस संबंध में डा. वर्मा ने कोई प्रमाणित एवं साक्ष्य दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए.
इसलिए प्रथम और द्वितीय समीक्षक अधिकारियों ने 2019 और 2020 के गोपनीय प्रतिदेवनों की ग्रेडिंग में सुधार करते हुए उसे ‘ग’ से ‘क’ कर दिया. किंतु स्वीकारकर्ता अधिकारी, डॉ. निर्मल वर्मा के प्रभाव के कारण ग्रेडिंग से सहमत होते हुए दोनों वर्षों की ग्रेडिंग को फिर से ‘ग’ कर दिया.
जांच कमेटी के मुताबिक शासकीय कर्मचारियों की गोपनीय चरित्राविलयों में अंकित प्रतिकूल प्रविष्टियों की रिपोर्ट प्राप्ति की तारीख से एक महीने के भीतर संसूचित करते के निर्देश हैं.
लेकिन डॉ. आशीष सिन्हा को निर्धारित समय सीमा के भीतर गोपनीय चरित्रावली में की गई प्रतिकूल टिप्पणी के संबंध में अवगत नहीं कराया गया. डॉ. वर्मा द्वारा शासन के नियमों की अवहेलना की गई.
दुर्ग के भारती कालेज आफ नर्सिंग को बीएससी नर्सिंग पाठ्यक्रम की 60 सीटों के साथ प्रारंभ करते हेतु अनापत्ति दिए जाने के संबंध में डॉ. निर्मल वर्मा की अध्यक्षता वाली कमेटी ने निरीक्षण किया था.
21 नवंबर 2017 को प्रस्तुत निरीक्षण रिपोर्ट में हास्पीटल की सुविधा के संबंध में टीप अंकित की गई थी.
उस टीप के मुताबिक अस्पताल के कुछ हिस्से में मरम्मत का कार्य हो रहा था और अस्पताल चालू हालत में नहीं था. फिर भी संस्था को 40 सीटों के साथ बीएससी नर्सिंग पाठ्यक्रम चालू करने की अनुशंसा की गई, जो कि असंगत और नियम विरुद्ध था.
छत्तीसगढ़ शासन चिकित्सा विभाग द्वारा 13 नवंबर 2015 को जारी पत्र के अनुसार रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग संभाग के जिलों में अनुसूचित जनजाति क्षेत्र (विकासखंड को छोड़कर) नवीन जीएनएम, बीएससी नर्सिंग, पोस्ट बेसिक (बीएससी नर्सिंग) संस्थाओं को प्रारंभ करने की अनुमति प्रदान नहीं थी.
साथ ही इन क्षेत्रों में पूर्व से संचालित संस्थाओं की सीटों में वृद्धि की भी अनुमति नहीं थी.
इन जिलों में मात्र ऐसी संस्थाओं को अनुमति देने की बात कही गई थी, जिनका स्वयं का काम से कम 100 बिस्तर अस्पताल हो, बशर्ते कि उस अस्पताल में कोई अन्य संस्था इन प्रशिक्षण पाठ्यक्रम हेतु संबद्ध न हो.
जांच कमेटी का आरोप है कि बावजूद इसके डॉ. निर्मल वर्मा ने सारे नियमों को ताक पर रखकर अनापत्ति जारी की.
इतना ही नहीं, डॉ. निर्मल वर्मा के खिलाफ फर्जी फोटो कापी बिल लगाकर भुगतान प्राप्त करने का आरोप भी जांच में सही पाया गया है.
जांच कमेटी ने इस घोटाले के संबंध में तीन फर्मों को स्पीड पोस्ट के माध्यम से पत्र भेजकर जानकारी मांगी थी.
इस संबंध में मां अष्टभुजी कापीयर्स उच्च न्यायालय परिसर, बोदरी, बिलासपुर ने 1 अगस्त 2022 को अपने पत्र के माध्यम से अवगत कराया कि बिल उनके संस्थान के द्वारा जारी नहीं किए गए हैं.
उन्होंने बताया कि बिल की प्रति देखने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि उक्त बिल उनके बिल वाउचर से पूरी तरह भिन्न है.
संस्था की ओर से कहा गया कि उनके द्वारा ऐसा कोई बिल किसी डॉ. निर्मल वर्मा को जारी नहीं किया गया है.
फर्म के लिखित बयान से यह साफ़ हुआ कि इस घोटाले को अंजाम देने के लिए फर्जी बिल का सहारा लिया गया था.
डॉ. निर्मल वर्मा के खिलाफ लाखे नगर ढाल एकता कैंपस निवास कोमल अग्रवाल, समता कालोनी निवासी आलोक जायसवाल, चिकित्सा महाविद्यालय, रायपुर के सहायक प्राध्यापक डॉ. आशीष सिन्हा और प्रियदर्शनी नगर निवासी डॉ. विजयशंकर मिश्रा ने चिकित्सा शिक्षा विभाग से शिकायत की थी.
इन शिकायतों के आधार पर चिकित्सा शिक्षा विभाग ने डॉ. वर्मा के खिलाफ जांच के निर्देश दिए थे.
जांच में सारे आरोप सही पाए गए, जिसके बाद डॉ. वर्मा के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई की गई है.
डॉ. वर्मा पं. जवाहरलाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय, रायपुर में कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष हैं. निलंबन के दौरान उन्हें मेडिकल कॉलेज कांकेर में अटैच किया गया है.
छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस चिकित्सा प्रकोष्ठ के संयोजक डॉ. राकेश गुप्ता ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग में फैले भ्रष्टाचार को नियंत्रित किए जाने की जरूरत है.
उन्होंने कहा कि इस तरह के कई घोटाले हैं, जो लंबे समय से लोगों की नजर में हैं. लेकिन उन पर कार्रवाई नहीं होती.
डॉक्टर राकेश गुप्ता ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई से भ्रष्ट लोगों पर लगाम लग सकेगी.
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