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धान की फसल पर तना छेदक-शीत ब्लास्ट का हमला

रायपुर| संवाददाताः इस साल पार्याप्त बारिश होने से खेतों में धान की फसल अच्छी दिख रही थी. लेकिन मौसम बदलते ही फसलों को तरह-तरह की बीमारियों ने जकड़ लिया है. इन दिनों धान की फसलों में तना छेदक, चीतरी, शीत ब्लास्ट, पत्ती मोडक, झुलसा, माहू जैसी कई बीमारियों का प्रकोप बढ़ गया है.

किसान फसल बचाने के लिए दवा का छिड़काव कर रहे हैं, फिर भी बीमारी कम होने का नाम नहीं ले रही है.

इसे देखते हुए राज्य के कई इलाकों में बंपर फसल की उम्मीद लगाए किसानों के चेहरों पर चिंता की लकीरें गहराने लगी हैं.

छत्तीसगढ़ के किसानों को इस साल मौसम की दोहरी मार झेलनी पड़ रही है. पहले राज्य के अधिकांश हिस्सों में सूखे, फिर लगातार बारिश, अब तेज धूप और उमस का सामना करना पड़ रहा है.

इन दिनों प्रदेश के लगभग सभी इलाकों में तेज धूप निकल रही है. तेज धूप के साथ उमस और गर्मी भी बढ़ी है. इसका धान की फसलों पर विपरीत असर पड़ा है और फसल रोगों से ग्रसित हो रही है.

किसानों ने बताया कि फसलों पर इन दिनों तना छेदक, शीत ब्लास्ट, पत्ती मोडक, झुलसा सहित माहू का प्रकोप लगातार बढ़ता ही जा रहा है.

इन बीमारियों पर रोक लगाने लगातार कीटनाशक दवाओं का उपयोग कर रहे हैं. इसके बाद भी रोकथाम नहीं हो रही है.

किसानों का कहना है कि इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ है. एक बार दवा का छिड़काव करने के बाद धान की अधिकांश बीमारी से मुक्ति मिल जाती थी. लेकिन अब ऐसा नहीं है.

एक बार दवा डालने के बाद कम से कम 20 से 30 दिनों तक फसलों पर दोबारा दवाओं का छिड़काव नहीं करना पड़ता था.

इस साल स्थिति ऐसी हो गई है कि बड़ी संख्या में किसान, एक माह के अंदर दो से तीन बार दवा डाल चुके हैं.

किसानों को चिंता सता रही है कि अभी फसल पकने में समय है. हालत यही रही तो ना जाने और कितने बार दवा डालना पड़ेगा.

किसानों ने बताया कि इस साल तना छेदक ने भी फसलों को जकड़ लिया है. शुरू से अब तक इसका प्रभाव कम नहीं हुआ है.

किसानों के अनुसार बियासी और रोपाई के एक महीने के अंदर धान के पौधे लगभग एक से डेढ़ फीट तक बढ़ा जाते हैं.

इस बीच किसान कम से कम दो बार खाद का छिड़काव कर चुके होते हैं.

पहला खाद रोपाई और बियासी के समय डीएपी और सुपर फास्फेट यानी राखड़ डाला जाता है. उसके 15 से 20 दिन के अंदर दूसरा खाद यूरिया, पोटाश, डीएपी के साथ किसान अपनी सुविधा अनुसार कुछ और खाद डालते हैं.

दूसरी बार खाद डालने के बाद पौधा मुलायम हो जाता है. साथ ही हरा-भरा भी हो जाता है.

इसी समय तना छेदक अपना कहर बरसाना शुरू कर देता है.

फसलों का करें नियमित निरीक्षण-साहू

इस संबंध में वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक पाहंदा ईश्वरी साहू का कहना है कि धान की पैदावार के लिए यह समय बहुत महत्वपूर्ण है. फसल प्रबंधन के साथ कीट, बीमारियों के नियंत्रण के उपाय जरुरी है. वर्तमान में धान गभोट व दूध वाली अवस्था में है. इसी समय धान की फसल में बीमारी का अधिक खतरा रहता है. तना छेदक, पत्ती मोड़क, कटवा, माहू, मकड़ी, शीथ ब्लास्ट, लाई फूटना जैसे कई बीमारी आते हैं. इसलिए फसलों की नियमित निरक्षण जरुरी है.

ईश्वरी साहू ने बताया कि तना छेदक कीट तने को अंदर से खाता रहता है.

इस वजह से तना सूखा हुआ दिखाई देता है, उसके बाद पीला दिखाई पड़ने लगेगा. फिर कुछ दिन बाद पौधा लाल रंग का हो जाता है. ऐसी स्थिति आने के कुछ दिनों के भीतर पौधा पूरी तरह से सूख जाता है.

धान के पौधे के अंदर जो कीड़ा लगता है, वह चावल के दाने जैसा बिल्कुल सफेद होता है. इसका मुंह काला या भूरा होता है.

इस प्रकार से तना छेदक बीमारी को पहचान सकते हैं.

गर्म और आर्द्र मौसम में इस कीट का प्रकोप अधिक होता है.

कृषि वैज्ञानिक श्री साहू ने बताया कि तना छेदक के बचाव के लिए पिप्रोमिल 300 मिमी प्रति एकड़ या क्लोरेन्ट्रोनिलीप्रोल दानेदार 4 किलो या इसी का लिक्विड 60 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें.

शीथ ब्लास्ट और झुलसा बढ़ रहे

कुछ इलाकों में धान पर शीथ ब्लास्ट और झुलसा जैसे बीमारी का प्रकोप हो गया है.

इसका फैलाव लगातार बढ़ता ही जा रहा है. खासकर पीआर किस्म में यह बीमारी ज्यादा दिखाई दे रही है.

धान की फसल में लंबे समय तक पानी भरे होने से यह बीमारी आती है.

पत्ती की शीथ पर प्राथमिक संक्रमण के कारण इस बीमारी को शीथ ब्लास्ट नाम दिया गया है.

शुरू में इसके प्रकोप से पत्ती के शीथ पर 2-3 सेंटीमीटर लम्बे हरे से भूरे रंग के धब्बे बनते हैं.

पहले धब्बे-चित्तियां पौधे के पानी में डूबे जगह पर दिखाई देती हैं.

पहले गहरे भूरे तथा बैंगनी रंग के होते हैं. बाद में इन धब्बों का रंग पैरा जैसा हो जाता है. इससे धान के पौधे का तना गलने से बाहरी पत्तियां सूखनी शुरू हो जाती हैं.

इस बीमारी की शुरुआत में धान के पत्ते पीले हो जाते हैं. बाद में धीरे-धीरे पूरा पौधा ही सूख जाता है.

वैज्ञानिकों का कहना है कि शीथ ब्लास्ट के लिए हेक्साकोनाजोल का 300 मिली प्रति एकड़ की दर छिड़काव करें. वहीं झुलसन के लिए ट्रायसाइक्लोजोल 100 ग्राम या आइसोप्रोथियोलेन 250 से 300 मिली, प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें.

पत्ती लपेटक से सूखने लगे पौधे

कुछ इलाकों में धान की फसल में पत्ती लपेटक की समस्या भी देखी जा रही है.

मौसम बदलने के साथ ही धान की फसलों में पत्ती लपेटक कीट के लक्षण दिखाई दे रहे हैं.

पत्ती लपेटक कीट एक हरे रंग की छोटी सी सुन्डी होती है.

यह सुन्डी आमतौर पर काफी चुस्त होती है. इसके प्रकोप से धान के पौधे सूखने लगते हैं.

पत्ती लपेटक सुंडियां पत्तों को लपेटकर अंदर ही अंदर खाने लगती हैं, जिससे पौधे के उपर सफेद धारियां दिखने लगती हैं.

सुंडियां पौधों से हरे पदार्थ को चूस लेती हैं, जिससे पत्ते सफेद पड़ने लगते हैं. इसका कीट सुनहरे पीले रंग का होता है.

पत्ती मोड़क के लिए तना छेदक के लिए सुझाए गए दवाइयों में किसी एक का उपयोग करने से इस बीमारी पर रोकथाम हो जाएगा.

माहू का भी कहर

प्रदेश में जल्दी पकने वाली धान में बालियां आ गई हैं. इन फसलों पर भूरा माहू ने हमला शुरू कर दिया है.

इसके अलावा बालियां नहीं आई हैं, उन किस्मों की धानों पर भी माहू आने शुरू हो गए हैं.

धान की फसलों के लिए माहू सबसे खतरनाक बीमारी है.

यह धान की फसल को पूरी तरह खराब कर देता है. इसलिए नियमित रूप से फसलों का निरीक्षण करना जरूरी है.

राज्य के कई हिस्सों में इस बीमारी ने अभी से किसानों की नींद उड़ा दी है.

रातों रात फसल को चौपट करने की क्षमता माहू में है.

माहू धान की फसल में आने वाली अंतिम बीमारी मानी जाती है लेकिन इस साल माहू ने पहले से ही हमला बोल दिया है.

माहू दो प्रकार का होता है एक सफेद और दूसरा भूरा. इसमें सफेद माहू ज्यादा खतरनाक होता है.

माहू एक कीट है. यह धान के पौधों के रस को चूसता है. इससे धान के पौधे पीले पड़ जाते हैं और तेजी से सूख जाते हैं.

शुरूआत में इसके प्रकोप से धान के पौधों में जगह-जगह गोल पीले धब्बे दिखाई देते हैं. यह काफी तेजी से फैलता है. जिस जगह माहू बैठता है, वहां की फसल पूरी तरह पुआल में तब्दील हो जाती है.

माहू के लिए मेटाराइजिम एनासोपिलिआई 2 लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 80 मिली या पायमेट्रोजिन 120 ग्राम या डिनोटेपुरान 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करने से माहू पर काबू पाया जा सकता है.

फर्जी दवाओं की भरमार

किसानों का कहना है कि इन दिनों किसान फर्ज़ी कीटनाशक दवाओं से भी परेशान हैं.

तना छेदक और चीतरी जैसी बीमारी, साधारण व कम क़ीमत वाली दवाओं से काबू में आ जाती थीं. इस बार महंगी दवा डाल रहे हैं, उसके बाद भी बीमारियों की रोकथाम नहीं हो रही है.

कृषि केन्द्रों में अनेक प्रकार की दवा है, इसमें से कई दवाएं बेअसर साबित हो रही हैं.

सरकार द्वारा कई कंपनियों की दवाओं को प्रतिबंधित किया गया है. ऐसी दवाएं भी बाज़ार में उपलब्ध हैं.

इन दवाओं की लगातार शिकायतें भी की जा रही हैं, इसके बाद भी ध्यान देने वाला कोई नहीं है.

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