बिलासपुर। हाईकोर्ट ने रोजगार एवं प्रशिक्षण विभाग के 50 अधिकारियों को बड़ी राहत दी है। सिंगल बेंच ने उन्हें पदोन्नत करने के आदेश दिया था जिसे सरकार ने चुनौती दी थी और पदोन्नति देने के बजाय उन्हें बर्खास्त कर दिया था। डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच के आदेश को यथावत रखा है। साथ ही बर्खास्तगी के नोटिस को निरस्त कर दिया है।
मिली जानकारी के मुताबिक सन् 2013 में रोजगार प्रशिक्षण विभाग में 723 प्रशिक्षण अधिकारियों की नियुक्ति की गई थी। विभाग में लंबे समय तक सेवा देने के बाद भी प्रमोशन नहीं मिलने पर आराधना नाथ, टिकेंद्र वर्मा, सुरेंद्र देवांगन सहित 50 अधिकारियों ने पदोन्नति के लिए विभाग में आवेदन दिया। इस पर निर्णय नहीं लेने पर उन्होंने हाई कोर्ट में याचिका लगाई। याचिका में उन्होंने बताया कि विभागीय पदोन्नति समिति ने कोई बैठक नहीं ली है, जिसके कारण वर्षों से उनकी वरिष्ठता सूची जारी नहीं की गई है और ना ही उन्हें पदोन्नति का लाभ मिल रहा है। याचिका पर सुनवाई करने के बाद हाईकोर्ट ने राज्य शासन को विभागीय पदोन्नति समिति की बैठक बुलाने और नियमानुसार पदोन्नति देने का आदेश दिया था।
याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए संचालक, रोजगार एवं प्रशिक्षण से पदोन्नति समिति की बैठक बुलाने की मांग की। पर विभाग ने समिति की बैठक नहीं बुलाई बल्कि उन्हें बर्खास्त कर दिया। बर्खास्तगी का आधार यह बताया गया कि उनकी नियुक्ति के समय आरक्षण के नियमों का पालन नहीं किया गया था।
सिंगल बेंच के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने डिवीजन बेंच में अपील की। सुनवाई के दौरान प्रशिक्षण अधिकारियों की ओर से अधिवक्ता ने तर्क दिया कि नियुक्ति के 8 साल बाद किसी कर्मचारी को आरक्षण नियमों का हवाला देकर बर्खास्त नहीं किया जा सकता। संविधान के अनुच्छेद 311 (2) के तहत बर्खास्तगी का आधार कर्मचारी को सौंपे गए दायित्व में लापरवाही या अनुशासनहीनता ही हो सकता है। यदि आरक्षण नियमों का पालन नहीं किया गया तो इसमें नियुक्त किए गए अधिकारियों की नहीं बल्कि नियुक्ति देने वाले अधिकारी की गलती है कार्रवाई उनके खिलाफ होनी चाहिए।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद डिविजन बेंच ने सिंगल बेंच के आदेश को यथावत रखा है जिसमें विभागीय पदोन्नति समिति की बैठक बुलाने कहा गया है। साथ ही डिवीजन बेंच ने बर्खास्तगी की नोटिस को भी निरस्त कर दिया है।
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