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बीजेपी के चक्काजाम को कांग्रेस ने बताया नौटंकी, कहा- पूर्ववर्ती सरकार की लापरवाही के कारण आरक्षण रद्द हुआ

रायपुर. प्रदेश में आदिवासी आरक्षण को लेकर वार-पलटवार का दौर चल रहा है. इस बीच कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने निशाना साधते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी की पूर्ववर्ती सरकार की बदनीयती और लापरवाही के कारण आरक्षण के खिलाफ फैसला आया है. भारतीय जनता पार्टी इस मामले में चक्काजाम और आंदोलन की नौटंकी कर रही है. भारतीय जनता पार्टी के नेताओं में थोड़ी भी नैतिकता बची हो तो वे अपनी पूर्ववर्ती सरकार की गलती के लिए राज्य के आदिवासी समाज से माफी मांगे. कांग्रेस सरकार आदिवासी समाज को उनका पूरा हक दिलाने को प्रतिबद्ध है. हमारी सरकार हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ उच्चतम न्यायालय गई है. हमें पूरा भरोसा है सुप्रीम कोर्ट से हमें न्याय मिलेगा.

मरकाम ने कहा कि हमने हाईकोर्ट में दमदारी से लड़ाई लड़ी थी. हमारे महाधिवक्ता ने आरक्षण को बढ़ाने के पक्ष में दलीले रखी. लेकिन पूर्ववर्ती रमन सरकार ने मुकदमें की शुरूआत में जो लापरवाही बरती, उसका नुकसान आदिवासी समाज को उठाना पड़ा. पूर्ववर्ती रमन सरकार की लापरवाही के कारण हाईकोर्ट में 58 प्रतिशत आरक्षण रद्द हुआ. रमन सरकार ने अपने दायित्व का ईमानदारी से निर्वहन नहीं किया था. रमन सरकार ने 2011 में आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 58 प्रतिशत करने का निर्णय लिया था. 2012 में हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों जिसमें इंदिरा साहनी का फैसला प्रमुख के अनुसार कोई भी राज्य सरकार यदि 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण करती है तो अत्यंत विशेष परिस्थितियों, विचार और तथ्यों के साथ कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत करना होगा. इसका भी ख्याल नहीं किया गया. जब आरक्षण को बढ़ाने का निर्णय हुआ उसी समय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार राज्य सरकार को अदालत के सामने आरक्षण को 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ाने की विशेष परिस्थितियों और कारण को बताना था.

मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह ने भी इस मुद्दे पर कहा कि तत्कालीन रमन सरकार अपने इस दायित्व का सही ढंग से निर्वहन नहीं कर पाई. 2012 में बिलासपुर उच्च न्यायालय में 58 प्रतिशत आरक्षण के खिलाफ याचिका दायर हुई, तब भी रमन सरकार ने सही ढंग से उन विशेष कारणों को प्रस्तुत नहीं किया जिसके कारण राज्य में आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 58 प्रतिशत किया गया. रमन सरकार ने आरक्षण में संशोधन के पहले सुप्रीम कोर्ट के पूर्ववर्ती फैसले को ध्यान में नहीं रखा. बाद में दोबारा संशोधित जवाब पेश करते हुए कुछ डेटा प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया, लेकिन वो भी पर्याप्त नहीं थे. कांग्रेस की सरकार बनने के बाद अंतिम बहस में तर्क प्रस्तुत किया गया. मंत्रिमंडलीय समिति के बारे में जानकारी दी गई. लेकिन पुराने हलफनामे उल्लेख नहीं होने के कारण अदालत ने स्वीकार नहीं किया. इस प्रकरण में जब राज्य सरकार की अंतिम बहस हुई तो खुद महाधिवक्ता मौजूद थे. उन्होंने मंत्रिमंडलीय समिति की हजारों पन्नों की रिपोर्ट को कोर्ट में प्रस्तुत किया था. लेकिन कोर्ट ने ये कहते हुए उसे खारिज कर दिया कि राज्य शासन ने कभी भी उक्त दस्तावेजों को शपथ पत्र का हिस्सा ही नहीं बनाया. लिहाजा, कोर्ट ने उसे सुनवाई के लिए स्वीकार नहीं किया.

विशेष कारणों को बताने की जिम्मेदारी पूर्ववर्ती सरकार की थी- लखमा

वहीं मंत्री कवासी लखमा का कहनाव है कि यदि किसी वर्ग के आरक्षण में कटौती किए बिना ईमानदारी से दूसरे वर्ग के आरक्षण को बढ़ाया जाता तो यह स्थिति निर्मित नहीं होती. जब सभी वर्ग संतुष्ट होता तो कोई कोर्ट में चुनौती नहीं होती. छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को बढ़ाने के तमाम तर्कसंगत कारण और विशेष परिस्थितियां हैं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी और रमन सरकार की नीयत में खोट था. उन्होंने अदालत में राज्य की 95 प्रतिशत आबादी के हक में तर्क नहीं दिया और जनता को उसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. यदि आरक्षण बढ़ाया था तो उसके विशेष कारणों को बताने की जवाबदेही भी सरकार की थी. जिसे रमन सरकार ने नहीं बताया. हमारी सरकार ने ओबीसी वर्ग के आरक्षण को 27 प्रतिशत किया है, तो हम उसके लिये क्वांटीफायबल डाटा आयोग बना कर पिछड़ा वर्ग की राज्य में जनगणना करवा रहे हैं.

आरक्षण में कटौती ना हो- लखमा

लखमा ने कहा कि हरियाणा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु जैसे राज्यों के भी 50 प्रतिशत से भी अधिक आरक्षण है. अरूणांचल, मिजोरम, मेघालय जैसे राज्यों में अनुसूचित जाति वर्ग को 80 प्रतिशत आरक्षण है. आरक्षण रद्द किये जाने का विपरीत प्रभाव अब तक हुये एडमिशन में न पड़े और भर्तियां हुई है इस पर ना पड़े. इसके लिए अदालत से विशेष निवेदन किया गया है. अदालत ने इसको माना भी. इस फैसले का अभी तक की भर्तियों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. हमारा मानना है कि राज्य के सभी वंचित वर्ग को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण दिया जाए. एससी के आरक्षण में कटौती ना हो, एसटी को पूरा आरक्षण मिले. ओबीसी को पूरा मिले रमन सरकार ने यही सावधानी नहीं बरती थी.

मंत्री अनिला भेड़िया ने कहा कि आरक्षण को बढ़ाने के लिए तत्कालीन सरकार ने तत्कालीन गृहमंत्री ननकी राम कंवर की अध्यक्षता में 2010 में मंत्रिमंडलीय समिति का भी गठन किया था. रमन सरकार ने उसकी अनुशंसा को भी अदालत के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया. जिसका परिणाम है कि अदालत ने 58 प्रतिशत आरक्षण के फैसले को रद्द कर दिया.

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