भोपाल| डेस्कः मध्यप्रदेश में अब नगर पालिका और नगर परिषदों के अध्यक्ष और उपाध्यक्षों को हटाना आसान नहीं होगा.
इसके लिए पार्षदों को तीन चौथाई बहुमत की आवश्यकता होगी.
इतना ही नहीं तीन साल तक तो अविश्वास प्रस्ताव के बारे में सोच भी नहीं सकते. तीन साल पूर्ण होने के बाद ही अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकेगा.
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की कैबिनेट ने इस पर अंतिम मुहर लगा दी है.
मंगलवार को मंत्रिमंडल की बैठक में नगर पालिका अधिनियम में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दी.
साथ ही नगर पालिका के अध्यक्ष और उपाध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के नियमों में बदलाव किया है.
पहले अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए दो साल का नियम था. अब इसमें परिवर्तन करते हुए एक साल और बढ़कर तीन साल कर दिया गया है.
साथ ही अब अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को हटाने के लिए दो तिहाई के बजाय तीन चौथाई पार्षदों के समर्थन की आवश्यकता होगी.
इस नये नियम के तहत अब नगर पालिका और नगर परिषदों के अध्यक्ष और उपाध्यक्षों को हटाना आसान नहीं होगा.
ज्ञात हो कि मध्यप्रदेश में नगरीय निकायों के चुनाव जुलाई-अगस्त 2022 में हुए थे.
नगर पालिका और नगर परिषद के अध्यक्ष का चुनाव जनता से सीधे न कराकर पार्षदों के माध्यम से कराया गया था.
इस दो साल के अवधि में बीनागंज-चाचौड़ा, गुना, मुरैना के बानमौर, भिंड सहित कई निकायों में अध्यक्ष के खिलाफ पार्षदों ने मोर्चा खोल दिया था.
समय पूर्ण नहीं होने के कारण अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाए थे.
खबर है कि कुछ निकायों के पार्षद अविश्वास प्रस्ताव लाने पूरी तैयारी में थे, वे सिर्फ नियम के तहत दो साल पूर्ण होने का इंतजार कर रहे थे. उन पार्षदों को नियम बदलने से बड़ा झटका लगा है.
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