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महज़ औपचारिकता? छत्तीसगढ़ में भी महिलाओं के पीछे पुरुषों का दबदबा

(संदीप पौराणिक)। छत्तीसगढ़ देश के नवगठित राज्यों में से हैं जो अब अपने गठन के युवावस्था में पहुंच गया है। यहां वक्त के साथ महिलाओं की सत्ता में हिस्सेदारी बढ़ी है और संसद में पारित महिला आरक्षण विधेयक ने इस वर्ग में नई उम्मीद भी जगी है। इतना कुछ होने के बावजूद राज्य में निर्वाचित महिला प्रतिनिधि के फैसलों की बागडोर किसी और के हाथों में रहती है।

राज्य में पंचायत से लेकर विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व है। यह बात अलग है कि पंचायत में तो महिलाओं की 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी है मगर विधानसभा के अलावा अन्य संस्थाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी कम ही है। केंद्र सरकार के महिला आरक्षण विधेयक की पारित होने से इस राज्य की संस्थाओं की तस्वीर भी बदलेगी।

राज्य की पंचायत की स्थिति पर गौर करें तो यहां जिला पंचायत अध्यक्ष के 27 पद हैं जिनमें 15 महिलाओं के लिए आरक्षित हैं तो वहीं सदस्य के कुल 402 पद हैं जिनमें 223 महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। इसके अलावा जनपद अध्यक्ष के 146 पदों में से 90 पद महिलाओं को जनपद सदस्य के 2973 पदों में से 1595 पद महिलाओं के लिए आरक्षित है।

कुल मिलाकर एक बात साफ होती है कि राज्य में पंचायत के कुल 1,70,358 पद हैं, इनमें महिलाओं के लिए 93,392 पद आरक्षित हैं। वही नगरीय निकाय में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत पद आरक्षित हैं। राज्य सरकार पूर्व में महिला आरक्षण को 50 प्रतिशत करने पर अपनी सहमति जता चुकी है।

राज्य की वर्तमान विधानसभा की स्थिति पर गौर किया जाए तो राज्य में कुल 90 विधानसभा सीटें हैं इनमें से 16 महिला विधायक हैं तो वहीं लोकसभा की 11 सीटों में से तीन पर महिला काबिज हैं। इसके अलावा राज्यसभा की तीन सीटें महिलाओं के हिस्से में है।

राज्य का गठन हुए अभी लगभग 23 साल हुए हैं, मगर यहां महिलाओं को प्रतिनिधित्व ज्यादा से ज्यादा मिले इस दिशा में प्रयास हुए हैं। यहां रमन सरकार में नगरीय निकाय में महिलाओं को 33 फ़ीसदी आरक्षण का फैसला हुआ तो वहीं भूपेश सरकार ने इसे 50 प्रतिशत तक ले जाने पर सहमति जताई। इतना ही नहीं पंचायत में 50 फ़ीसदी महिलाओं की हिस्सेदारी है। वर्तमान में राज्य में 60 फ़ीसदी महिला जनप्रतिनिधि गांव की सरकार चला रही हैं।

अब महिला आरक्षण विधेयक पारित होने से इस इलाके की महिलाओं में नई उम्मीद जगी है। इसके लागू होने से राज्य का सियासी नक्शा ही बदल जाएगा, क्योंकि 90 में से 30 महिला विधायक होंगी, 11 लोकसभा सांसद में से चार महिला सांसद होंगी।

बात अगर हम पंचायत स्तर की करें तो राज्य में अब भी निर्वाचित जनप्रतिनिधि भले ही महिलाएं हों, मगर पंचायत के फैसले अब भी उनके पति या यूं कहें पुरुष लेते आए हैं। यही कारण है कि राज्य सरकार की ओर से कई बार यह हिदायत दी जा चुकी है कि फैसलों में महिलाओं की हिस्सेदारी हो।

क्षेत्र के जानकारों की मानें तो पंचायत की प्रतिनिधि भले महिलाएं हैं, मगर अधिकांश पंचायत में फैसला इन महिला जनप्रतिनिधियों के पति अथवा परिजन ले रहे हैं, आरक्षित सीटों पर महिलाएं खुद विकास के फैसले नहीं ले पाती। ऐसा नहीं है कि इस इलाके की महिलाएं फैसले लेने के मामले में पीछे हों, मगर जरूरत इस बात की है कि उन्हें उनके अधिकार बताए जाएं और उन्हें प्रशिक्षित किया जाए ऐसा करने पर स्थितियां बदली भी जा सकती है।

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