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महात्मा गांधी जी की हत्या से पहले ही सरदार पटेल को था हमले का शक, पढ़े पूरी खबर

हत्या से थोड़ी देर पहले तक महात्मा गांधी बिरला हाउस में अपने कमरे में सरदार वल्लभभाई पटेल से बात कर रहे थे। बातचीत लंबी चली और उस दिन महात्मा गांधी 5 बजकर 10 मिनट पर प्रार्थना सभा पहुंचे। वह आभाबेन और मनुबेन के कंधे पर हाथ रखकर उन्हें डांटते हुए बाहर आए। उस दिन गांधी जी को प्रार्थना सभा में पहुंचने में देरी हो गई थी। लोग उनके अभिवादन के लिए खड़े थे। महात्मा गांधी आगे बढ़े तो लोगो्ं ने रास्ता खाली कर दिया लेकिन वहीं भीड़ में से नाथूराम गोडसे निकलकर बाहर आया और उसने गांधी जी को अभिवादन करने के बाद तीन गोलियां सीने में उतार दीं। इसी के साथ 30 जनवरी 1948 को सत्य और अहिंसा का पुजारी दुनिया छोड़कर चला गया।

गांधी जी के कई करीबियों ने उनकी जीवनी लिखी। शरत कुमार महांति ने ओडिया में ‘गांधी मानुष’ नाम की किताब लिखी थी जिसे साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था। उन्होंने लिखा कि 20 जनवरी को भी गांधी जी की सभा में विस्फोट हुआ था और इसके बाद से ही सरदार पटेल उनकी सुरक्षा को लेकर बहुत चिंतित थे। उन्हें साजिश का अंदेशा हो गया था। सरदार पटेल ने उनकी सुरक्षा में बदलाव किए थे। 55 लोगों को सुरक्षा में तैनात किया गया था। सरदार पटेल चाहते थे कि गांधी जी की सभा में आने वाले हर शख्स की तलाशी ली जाए। लेकिन गांधी जी ने ही ऐसा करने से मना कर दिया था। उन्होंने कहा कि इसका मतलब होगा ईश्वर के कार्य में अड़ंगा लगाना। गांधी जी की बात सुनकर सरदार पटेल शांत हो गए थे। जाहिर सी बात है कि अगर तलाशी ली जाती तो उस दिन नाथूराम का प्लान फिर फेल हो जाता।

बता दें कि गांधी जी बंटवारे की त्रासदी के बाद बहुत टूट गए थे। उनकी उम्र भी 79 साल की हो  चुकी थी। कमजोरी आ गई थी। ऐसे में वह मौत के बारे में काफी चर्चा किया करते थे। वह कहते थे कि मैं चाहता हूं जब मरूं तो कर्तव्य पालन करते हुए मरूं। आजादी के बाद जब गांधी जी कोलकाता से वापस लौटे तो दिल्ली में मुर्दों, बेघरों और लुटे हुए लोगों का अंबार था। रॉबर्ट पेन ने लिेखा है, गांधी जी को डरावने सपने आते थे और वे खुद को हिंसक भीड़ के बीच खड़ा पाते थे।

17 नवंबर 1947 को नारायण आप्टे और दिगंबर बड़गे पूना में मिले थे। यहीं हथियारों का इंतजाम करने की बात कही गई। 9 जनवरी को नारायण आप्टे दिगंबर बड़गे के पास या और कहा कि विष्णु करकरे कुछ लोगों के साथ आएगा और हथियार देखेगा। इसके बाद विष्णु करकरे शस्त्र भंडार जाकर हथियार देखता है। इसके बाद बड़गे हथियारों का बंदोबस्त करता है। 14 जनवरी को नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे मुंबई पहुंचे। इसी दिन बड़गे भी मुंबई पहुंच गया। वह दो गन कॉटन स्लैब और पांच हैंड ग्रेनेड लेकर गया था। फिर सभी सावरकर सदन में मिलते हैं। 15  जनवी को नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे ने 17 जनवरी की दिल्ली फ्लाइट का टिकट लिया। दोनों ने अपने बदले हुए नाम से टिकट लिया था। नारायण आप्टे ने सामने करकरे को दे दिया और वह ट्रेन से रवाना हो गया।

विष्णु करकरे शरीफ होटल में रुके और नाथूराम गोडसे, नारायण आप्टे मरीना होटल में रुके। 20 जनवरी को विष्णु करकरे, दिगंबर बड़गे , शंकर किस्तैया बिरला हाउस पहुंचे और रेकी करके लौट आए। नारायण आप्टे ने उन्हें पूरी जगह दिखाई।

सारी प्लानिंग के बाद हथियारों का बंटवारा किया गया। नाथूराम गोडसे और करकरे के पासहैंड ग्रेनेड था।वहीं किस्तैया के पास रिवॉल्वर था। 20 जनवरी को हत्या की कोशिश की गई लेकिन ये कामयाब नहीं हुए। इसके बाद 21 जनवरी को नाथूराम गोडसे कानपुर पहुंच गया। 23 जनवरी को नाथूराम और नारायण आप्टे मुंबई पहुंच गए। पहले वे आश्रम में रुके और फिर 24 जनवरी को होटल में शिफ्ट हो गए। इसके बाद 2 को गोडसे और अप्टे ने फिर से गलत नाम से फ्लाइट की टिकट ली और दिल्ली पहुंच गए। इसके बाद उन दोनों ने गंगाधर दंडवते से मुलाकात कर रिवॉल्वर का इंतजाम किया। 29 जनवरी को दोनों  दिल्ली पहुंचे। उस दिन महात्मा गांधी देर से प्रार्थना सभा में पहुंचे थे। महात्मा गांधी गुरबचन से बात करते हुए बढ़ रहे थे तभी नाथूराम गांधी जी के पैर छूने बढ़ा और गोलियां चला दीं। गांधी जी वहीं गिर पड़े। इसके बाद नाथूराम को भी पकड़ लिया गया।

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