रायपुर | संवाददाता: राजस्थान को बिजली देने के नाम पर छत्तीसगढ़ के जिस हसदेव अरण्य के जंगल को उजाड़ने की तैयारी चल रही है, उस राजस्थान में अकेले सौर ऊर्जा से, मांग से लगभग दोगुनी बिजली उत्पादन क्षमता है.
राजस्थान सरकार की योजना है कि वह 2030 तक सौर ऊर्जा से इतनी बिजली पैदा करे कि वह देश के सभी राज्यों को बिजली बेच सके.
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि सौर ऊर्जा के कारण बिजली पर आत्मनिर्भर राजस्थान, आखिर छत्तीसगढ़ के लाखों साल पुराने जंगल को उजाड़ कर कोयले से बिजली क्यों पैदा करना चाहता है?
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला कहते हैं-“राजस्थान सरकार ने अडानी समूह के साथ जो करार किया है, केवल उसी के कारण हसदेव को उजाड़ा जा रहा है. इसका लाभ मूल रुप से अडानी समूह को होना है. न राजस्थान के लोगों को इसका विशेष लाभ होना है और ना ही छत्तीसगढ़ की जनता को.”
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के जो ताज़ा आंकड़े उपलब्ध हैं, उसके अनुसार जनवरी 2024 में राजस्थान को 18128 मेगावाट बिजली की ज़रुरत थी. फरवरी में यह घट कर 17867 मेगावाट हो गई. मार्च के महीने में यह 17030 मेगावाट हुई और अप्रैल में 14283 मेगावाट बिजली की मांग थी.
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के ही आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल 2024 में राजस्थान में अकेले सौर ऊर्जा से 26814.93 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता थी. कोयले से चलने वाले पावर प्लांट की राज्य में उत्पादन की क्षमता 9200 मेगावाट ही थी.
इन आंकड़ों को देखने से साफ पता चलता है कि अप्रैल में राज्य की कुल बिजली की मांग केवल 14283 मेगावाट थी और बिजली उत्पादन क्षमता 40208.76 मेगावाट थी.
मतलब ये कि राजस्थान की जितनी बिजली की मांग है, उससे लगभग दोगुना तो केवल सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन की राजस्थान की क्षमता है.
इसका जवाब ये है कि राजस्थान जो बिजली उत्पादन करता है, वह दूसरे राज्यों को भी बेचता है.
राजस्थान की तैयारी ऐसी है कि 2030 तक देश के लगभग सभी राज्यों को राजस्थान की सौर ऊर्जा से पैदा होने वाली बिजली खरीदनी पड़ेगी.
2030 तक राजस्थान ने सौर ऊर्जा से 100 गीगावाट बिजली पैदा करने का लक्ष्य रखा है.
राजस्थान की योजना है कि वह देश का अकेले 70 फ़ीसदी सौर उर्जा की बिजली का उत्पादन करे और इस दिशा में वह आगे भी बढ़ रहा है.
छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में राजस्थान सरकार को परसा ईस्ट केते बासन, परसा और केते एक्सटेंशन नामक खदान आवंटित है.
इन तीनों खदानों को राजस्थान सरकार ने एमडीओ के तहत अडानी समूह को सौंप दिया है.
कोयले की क़ीमत का हाल ये है कि राजस्थान सरकार अपने ही इस खदान से कोयले के लिए अडानी समूह को 3914.57 रुपये प्रति टन क़ीमत देती है.
जबकि कोल इंडिया से इससे कम क़ीमत पर राजस्थान को कोयला मिलता रहा है.
कोल इंडिया इसी ग्रेड का कोयला, राजस्थान के इन्हीं पावर प्लांट को 3405.19 प्रति टन की दर से देता रहा है.
इनमें से परसा ईस्ट केते बासन के पहले चरण में 2028 तक कोयले की खुदाई होनी थी. इसके बाद दूसरे चरण की खुदाई होनी थी.
लेकिन अडानी समूह ने 2022 में ही पहले चरण का यह खदान पूरा खोद दिया. लेकिन इसका पूरा कोयला राजस्थान को नहीं दिया गया.
बल्कि करार के अनुसार इसी खदान के कथित रिजेक्ट कोयले से अडानी समूह अपने पावर प्लांट चलाता रहा.
केवल एक साल का आंकड़ा ये है कि राजस्थान को आवंटित इस खदान से करीब 30 लाख टन कोयला अडानी समूह ने अपने पावर प्लांट और दूसरे उद्योगों को भेजा.
2021 में अडानी समूह ने इस खदान से 49 हज़ार 229 वैगन कोयला अपने पावर प्लांट समेत दूसरी कंपनियों को भेजा.
इसमें से अकेला 39 हजार 345 वैगन कोयला अडानी ने अपने पावर प्लांट में भेजा.
राजस्थान सरकार के साथ अडानी ने इस तरह का करार किया है कि राजस्थान के लिए आवंटित इस कोयला खदान के कोयले का उपयोग अडानी समूह अपना रायपुर का पावर प्लांट के लिए करता रहा.
अब अडानी समूह इस खदान के दूसरे चरण की खुदाई में अभी से जुटा हुआ है.
अकेले इस खदान के लिए हसदेव के घने जंगल के कम से कम 2,22,921 पेड़ों की कटाई की जानी है. पेड़ों का यह आंकड़ा बरसों पुराना है. इस बीच पेड़ों की संख्या भी बढ़ी है.
आदिवासी परसा और केते एक्सटेंशन खदान का भी विरोध कर रहे हैं.
आदिवासियों का कहना है कि इन दोनों ही खदानों की स्वीकृतियां ग़ैरकानूनी तरीके से हासिल की गई हैं.
छत्तीसगढ़ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए अपने हलफनामे में साफ कहा है कि राजस्थान के 4340 मेगावाट की ज़रुरत को अगले 20 साल तक इस एक अकेले पीईकेबी कोयला खदान से पूरा किया जा सकता है.
लेकिन सरकार ने अब नए खदान के लिए पेड़ों की कटाई की प्रक्रिया शुरु कर दी है.
छत्तीसगढ़ सरकार ने हसदेव अरण्य की जिस केते एक्सटेंशन खदान का विरोध किया था, अब उसी खदान की पर्यावरणीय स्वीकृति के लिए सरकार जन सुनवाई करने वाली है.
हसदेव अरण्य में केते एक्सटेंशन कोयला खदान की पर्यावरणीय स्वीकृति के लिए दो अगस्त को जन सुनवाई रखी गई है.
इस खदान में लगभग पांच लाख पेड़ काटे जाएंगे. यह इलाका लेमरु हाथी रिजर्व के 10 किलोमीटर की दूरी पर है. यही कारण है कि राज्य के वन विभाग ने इस खदान का विरोध किया था.
इस परियोजना की वन भूमि डायवर्सन और भूमि अधिग्रहण पर, राज्य सरकार की गंभीर आपत्तियां रही हैं लेकिन अब राज्य सरकार ही इसके खनन की तैयारी में जुट गई है.
छत्तीसगढ़ विधानसभा द्वारा हसदेव अरण्य के पर्यावरणीय एवं पारिस्थितिकीय महत्व, बांगो डैम का जलागम क्षेत्र, समृद्ध जैव विविधता और वन्य जीवों के महत्वपूर्ण रहवास के मद्देनज़र 26 जुलाई, 2022 को हसदेव अरण्य में प्रस्तावित सभी कोल ब्लॉक निरस्त किये जाने हेतु सर्वसम्मति से अशासकीय संकल्प पारित किया गया था.
भारतीय वन्यजीव संस्थान की रिपोर्ट और अनुशंसा के अनुसार हसदेव में किसी भी खनन परियोजना को बढ़ावा देना, इस क्षेत्र के पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर अपरिवर्तनीय प्रभाव डालेगा.
इस अध्ययन के अनुसार खनन से हाथियों के कॉरिडोर और हैबिटैट पर गंभीर प्रभाव पड़ रहे हैं और नए खदान खुलने से मानव हाथी द्वन्द की स्थिति बेकाबू हो जाएगी और सरकार इसे संभाल नहीं पाएगी.
इतनी गंभीर पर्यावरणीय चेतावनियों को अनसुना करके हसदेव अरण्य में किसी भी नई परियोजना को आगे बढ़ाना एक आत्मघाती कदम होगा.
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