मणिपुर सरकार के सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह ने बताया कि राज्य में हाल की हिंसक झड़पों में अब तक प्रदेश के 71 लोगों की मौत हो गई है। जातीय संघर्ष के दस दिनों के बाद हजारों लोग अपने घरों से विस्थापित हो गए हैं।
हिंसा के दौरान उनके घर नष्ट हो गए और अब उनके पास लौटने की कोई जगह नहीं बची है। हालात इतने बेकाबू हो चुके हैं कि आदिवासी कुकी विधायकों ने अलग राज्य की मांग कर दी है।
उन्होंने कहा कि यह नेतृत्व परिवर्तन की बात नहीं है। हमारे लोगों को मारा गया, घरों को जलाया गया है, ऐसे में मैतेई समुदाय के साथ नहीं रहा जा सकता। मणिपुर में मैतेई और कुकी के बीच संघर्ष ने हजारों लोगों को विस्थापित कर दिया, घरों को जमीन पर गिरा दिया और पूजा स्थलों को नष्ट कर दिया, जो लोग हिंसा से बचने के लिए राजधानी इंफाल से भागे थे, उनके लिए यादें अभी भी दर्दनाक हैं।
बचे हुए कई लोग जो अपने रिश्तेदारों के साथ रहने के लिए गुवाहाटी भाग गए हैं, उनका कहना है कि हिंसा के दौरान उनके घर नष्ट हो गए हैं और उनके पास लौटने के लिए कोई जगह नहीं है। उनमें से कुछ ने यह भी बताया कि प्रकाश के एकमात्र स्त्रोत के रूप में मोबाइल फोन, टार्च के साथ अपने घरों में खुद को बंद कर लिया। दस आदिवासी कुकी विधायकों ने अलग राज्य की मांग कर दी है। लोगों को मारा गया, घरों को जलाया गया है, ऐसे में मैतेई के साथ नहीं रहा जा सकता।
इन आदिवासी विधायकों ने कहा कि पहाड़ी आदिवासियों के खिलाफ की गई हिंसा ने मणिपुर राज्य में अलगाव की भावना प्रबल हुई है। विधायकों ने मणिपुर में बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के लोगों को राज्य में आदिवासियों के खिलाफ बेरोकटोक हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराया।
विधायकों ने मणिपुर सरकार पर हिंसा में शामिल उपद्रवियों का ‘समर्थन’ करने का भी आरोप लगाया। आदिवासी विधायकों ने कहा कि मणिपुर राज्य हमारी रक्षा करने में बुरी तरह से विफल रहा है। ऐसे में हम भारत के संविधान के तहत एक अलग प्रशासन की मांग करते हैं। मणिपुर राज्य के साथ पड़ोसियों के रूप में शांति से रहना चाहते हैं।
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