बिलासपुर (मनीष जायसवाल)। लोक सभा चुनाव की आचार संहिता लगने में बहुत कम वक्त बचा है। देश और प्रदेश में चुनावी सरगर्मियां बढ़ गई। इस चुनाव में भाग्य आजमाने के लिए संभावित उम्मीदवार टिकट के लिए जोर आजमाइश कर रहे है। इस बार कर्मचारी वर्ग से भी किसी चर्चित कर्मचारी नेता को लोकसभा में प्रतिनिधित्व दिया जाए, ऐसी चर्चाएं कर्मचारी वर्ग में हो रही है इसमें सबसे अधिक चर्चा स्कूल शिक्षा विभाग में है…। जिसकी वजह इस विभाग में शिक्षक, अधिकारी, लिपिक,भृत्य, रसोइया, सफाई कर्मी इनको मिला कर इस वर्ग को सबसे बड़ी संख्या बल बनाते है। यही वजह है कि लोकसभा में इस वर्ग को टिकिट दिए जाने की दावेदारी समाने आ रही है ।
इस विभाग के आम कर्मचारियों का मानना है कि जिन राज्यों में विधान परिषद होते हैं ,उसमें कर्मचारी वर्ग को परिषद में प्रतिनिधित्व मिलता है। छत्तीसगढ़ में 2018 में शिक्षक नेता को कांग्रेस ने मौका दिया ।उसका लाभ कांग्रेस को मिला। लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव में किसी भी सक्रिय शिक्षा विभाग से किसी कर्मचारी नेता प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है..! जिसकी वजह से शिक्षा विभाग के आम कर्मचारी और शिक्षक नेताओं का सीधा सा जुड़ाव और पहुंच न तो राज्य सरकार में है और ना ही केंद्र सरकार में रहा है।इसलिए इस बार स्कूल शिक्षा विभाग से कोई चर्चित योग्य व्यक्ति यदि लोकसभा में राजनीतिक पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ता है तो शिक्षा विभाग से जुड़े लोगों का सबसे अधिक झुकाव उस राजनीतिक पार्टी पर हो सकता है..!
चर्चाओं में यह बात उभर कर आई है कि शिक्षा विभाग के संभावित उम्मीदवारों का सबसे अधिक जोर बीजेपी के टिकट को लेकर दिखाई दे रहा है ..। वही संभावित उम्मीदवार कांग्रेस में ग्रामीण लोकसभा क्षेत्र को लेकर विचार कर रहे है।
चूंकी शिक्षा विभाग के कर्मचारी शिक्षक नेता शासकीय कर्मचारी हैं ,जिसकी वजह से सिविल सेवा आचरण नियम के तहत बंधे रहते हैं। किसी राजनीतिक दल के प्रति उनका झुकाव तो रहता है लेकिन वह खुलकर कुछ नहीं कह सकते है।
जिसकी वजह से संभावित उम्मीदवार कौन हो सकते हैं इसको लेकर स्पष्ट रूप से उनके नाम प्रकाशित भी नहीं किया जा सकते हैं। राजनीतिक पार्टियों की आंतरिक व्यवस्था के तहत शिक्षा विभाग से यदि किसी संभावित उम्मीदवार का चयन किया जाता है तब की स्थिति में उस उम्मीदवार को टिकट की गारंटी मिलती है तब ही वह चुनाव लड़ने के विषय में कुछ कह सकता है वह भी इस्तीफा देकर उससे पहले सिर्फ कयास लगाए जाते रहते हैं।
एक आम चर्चा में शिक्षक नेताओं का और कर्मचारी नेताओं का कहना है कि यदि शिक्षा विभाग में से किसी योग्य व्यक्ति को टिकट दिया जाता है तो स्कूल शिक्षा विभाग से जुड़े कर्मचारी उस राजनीतिक दल के निर्णय का स्वागत करेंगे। अपना नैतिक समर्थन भी देंगे। उम्मीद भी करेंगे कि वह व्यक्ति विभाग की समस्याओं को शासन और प्रशासन के सामने प्रमुखता से लेकर आएगा।