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सर्वेश्वरी समूह के 63वां स्थापना दिवस धूमधाम से मनाया गया,अघोर मंत्र से गुंजा शहर

जशपुर नगर ।सर्वेश्वरी समूह का 63 वां स्थापना दिवस धूम धाम से मनाया गया । सर्वेश्वरी समूह की स्थापना 21 सितंबर 1961 को बाबा अघोरेश्वर भगवान राम के द्वारा की गई थी। आज समूह के सदस्यों के द्वारा लगभग तीस किलोमीटर तक सुबह प्रभात फेरी निकाली

कार्यक्रम का शुभारंभ प्रातः 5:30 बजे प्रभात फेरी से हुआ । प्रभात फेरी में सैकड़ों की संख्या में अनुयायी वाहनों से निकले प्रभात फेरी अघोर पीठ से निकल कर, प्रभात फेरी बांकी टोली होते हुए शहर के मुख्य मार्ग का भ्रमण करते हुए सती चौरा पहुँची ।

यहां ध्वजातोलन के बाद यात्रा अघोश्वर आश्रम सोगड़ा के लिए आगे बढ़ेगी। आश्रम में ध्वजातोलन के बाद शहर के मुख्य मार्ग से होते हुए प्रभात फेरी अघोर टेकरी होते होते हुए,वापस वामदेव नगर पहुँच कर सम्पन्न हुई.

अघोश्वर महाविभूति स्थल पर पूजन आरती पश्चात् सफल योनि पाठ किया गया.इसके बाद सुबह 9 बजे वामदेव नगर,अघोरपीठ में ध्वजपूजन, ध्वजतोलन,गुरुपूजन ,आरती, सफल योनी का पाठ के साथ 10:30 बजे लघु गोष्ठी का आयोजन किया गया ।

दोपहर 3 बजे आश्रम के स्वयं सेवक शहर के प्रमुख मंदिर, मस्जिद और चर्च में झाड़ू और 3:30 बजे जशपुर के विभिन्न चिकित्सालयों में मरीजों को फल बिस्किट एवं पोष्टिक आहार का वितरण किया गया .

कुष्ठ रोगियों की सेवा से प्रारंभ इस संस्था ने न सिर्फ चिकित्सा के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित की है, बल्कि अन्य सामाजिक कार्यों के साथ ही अघोर मत को एक नई भावभूमि, प्रतिष्ठा एवं दिशा प्रदान किए जाने के नाम से भी सर्वेश्वरी समूह को जाना जाता है। नगर में हर वर्ष 21 सितंबर का दिन यहां के लोगों के लिए खास दिन होता है।

हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी धर्म के लोग भाई चारे की भावना लिए सर्वेश्वरी समूह के कार्यक्रम में शामिल होते हैं। विशाल रैली निकाली जाती है, अस्पतालों में फलों का वितरण किया जाता है, सभी धार्मिक स्थलों में झाड़ू वितरण किए जाते हैं, साथ ही अवधूत भगवान के संदेशों को भी लेकर युवा सड़कों पर नजर आते हैं। नगरवासियों के लिए यह दिन एक उत्सव के समान होता है, जिसे लोग खूब धूमधाम से मनाते हैं।

सर्वेश्वरी समूह के स्थापना दिवस पर लोगों का उत्साह सर्वेश्वरी समूह के गम्हरिया आश्रम से लगभग 13 किलोमीटर दूर स्थित सोगड़ा आश्रम तक देखने को मिलता है। बाबा का संदेश लेकर यहां के महिला, पुरूष एक अदृश्य श्रृंखला का निर्माण करते हैं, जिसमें यहां के सती उद्यान में एक पड़ाव भी होता है।

नगर के मध्य में स्थित सती उद्यान का शुभारंभ भी 1960 के दशक में बाबा भगवान राम ने ही की थी। तब से इस स्थान को कल्प वृक्ष की तरह माना जाता है, जहां संकल्प लेने सहित श्रद्धालु मन्नत मांगने के लिए जाते हैं। बाबा भगवान राम के महानिर्वाण के बाद समूह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बाबा गुरुपद संभव राम अघोरेश्वर के द्वारा प्रांरभ की गई 19 सूत्रीय कार्यक्रम को मूर्त रूप देने में लगे हैं।

कौन थे अघोर्रेश्वर बाबा भगवान राम

सर्वेश्वरी समूह के संस्थापक बाबा भगवान राम थे। उनका बचपन का भगवान सिंह पिता बैजनाथ सिंह और माता लखराजी देवी थी। जिन्हें संन्यास के बाद माता महा मैत्रायणी योगिनी के नाम से सभी जानते हैं। बाबा का जन्म 12 सितंबर 1937 को बिहार के भोजपुर जिले में गुंडी ग्राम में हुआ था। बताया जाता है कि बचपन से ही बाबा भगवान राम घर छोड़ चुके थे। दुर्गम क्षेत्रों में कड़ी तपस्या कर उन्होंने आध्यात्म को समझा।बाबा भगवान राम का महानिर्वाण अमेरिका के न्यूयार्क मैनहैटन सिटी में 29 नंवबर 1992 को हुआ। 1 दिसंबर 1992 को उनके पार्थिव शरीर को भारत लाया गया। 3 दिसंबर को वाराणसी के राजघाट में उनका अंतिम संस्कार किया गया ।

तीन आश्रम की स्थापना

जशपुर रियासत के अंतिम राजा विजय भूषण के संपर्क और उनके अनुरोध पर अघोरेश्वर बाबा राम जशपुर आए थे। यहां उन्होंने तीन आश्रमों की स्थापना की। गम्हरिया, सोगड़ा और नारायणपुर आश्रम में स्थित मंदिर को जशपुर का त्रिकोणीय संरक्षित क्षेत्र एंव इन्हीं आश्रम में स्थित मंदिर के माध्यम से सुरक्षित माना जाता है। 21 सितंबर 1961 को बाबा ने सर्वेश्वरी समूह की स्थापना की जिसकी देश भर में सैकड़ों शाखाएं हैं। सर्वेश्वरी समूह के साथ ही सहयोगी संस्था के रूप में बाबा भगवान राम ट्रस्ट की स्थापना 60 के दशक में हुई और 26 मार्च 1985 को अघोर परिषद ट्रस्ट की स्थापना की गई। समूह 19 सूत्रीय कार्यक्रम के तहत कार्य करती है, जिसमें कुष्ठ रोगियों की चिकित्सा सेवा, प्राकृतिक आपदा में प्रभावितों की सहायता, निःशक्तों की सहायता, सभी धार्मिक स्थलों को सहयोग, गरीबों को अंत्येष्टि संस्कार में सहयोग, निर्धन कन्या विवाह, नेत्र शिविरों व चिकित्सा शिविरों का आयोजन कर पहुंच विहिन क्षेत्रों में चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराना, शिक्षा व्यवस्था में सहयोग, राष्ट्रीय भावना विकसित करने के लिए कार्य करना आदि शामिल है। संस्था की तब अंतराष्ट्रीय पहचान बनी, जब सबसे अधिक कुष्ठ रोगियों के लिए संस्था का नाम लिम्का एवं गिनिज बुक ऑफ़ दी वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज किया गया।

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